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कर्नाटक में कांग्रेस और जद(एस) के मतभेद देंगे बीजेपी को फायदा

वोकलिंगा और लिंगायत मतदाता भूतपूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया से अभी भी खासे नाराज है. जाहिर है ऐसे में कांग्रेस-जद (एस) गठबंधन होने के बावजूद इनका वोट खिसक सकता है.

Updated on: 10 Apr 2019, 11:41 AM

बेंगलुरु.:

कर्नाटक में सरकार गठन के बाद से कांग्रेस और जनता दल (एस) (JD (S)-Congress alliance) एक बने रहने के लिए हर दिन संघर्ष कर रहे हैं. मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी (HD Kumaraswamy) के स्थानीय कांग्रेस नेतृत्व को लेकर समय-समय पर दिए गए बयानों ने दिल्ली में बैठे हाईकमान को असहज करने का ही काम किया है. जाहिर है लोकसभा चुनाव में प्रदेश स्तर पर गठबंधन की इन दो पार्टियों के अंतर्विरोध प्रमुख विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी को कहीं न कहीं से फायदा ही पहुंचाएंगे.

दक्षिण-पूरब का अंतर
कर्नाटक का सियासी गणित जाति केंद्रित है, जिसे अपने-अपने समीकरणों से भुनाने का प्रयास राज्य के तीन प्रमुख दल कांग्रेस, जद (एस) और बीजेपी कर रहे हैं. राज्य के मतदाता प्रदेश और केंद्र में सरकार के लिए अलग मनास्थिति से वोट करता है. जद (एस) का दक्षिणी जिलों के बाहर खास प्रभाव नहीं है, तो बीजेपी मुंबई-कर्नाटक सीमा से लगने वाले इलाकों समेत तटीय क्षेत्रों पर अपना दावा ठोंकती आई है. एक लिहाज से कांग्रेस (Congress) ही अकेली पार्टी है, जो समग्र कर्नाटक में अपनी उपस्थिति रखती है. यह अलग बात है कि जद(एस) के कुछ क्षेत्रों में ताकतवार बनने के बाद कांग्रेस से सरकार गठन के बावजूद व्याप्त मतभेद इस लोकसभा चुनाव में बीजेपी की ही मदद करने वाले हैं. राज्य के मतदाता क्षेत्र के आधार पर भी बंटे हुए हैं. दक्षिण की सिंचाई तक बेहतर पहुंच, आईटी और इस कारण आए तुलनात्मक विकास से औद्योगिक विकास दर अधिक है. इसके उलट पूर्वी इलाके देश के पिछड़े इलाकों में शुमार होते हैं.

राज्य का सियासी गणित
कांग्रेस और जद (एस) राज्य स्तर पर गठबंधन कर लोकसभा चुनाव में बीजेपी (BJP) से मुकाबला कर रहे हैं. जद (एस) को वोकलिंगा समुदाय पर भरोसा है, तो बीजेपी को स्वर्ण वर्ग के लिंगायत का समर्थन प्राप्त है. कांग्रेस को अल्पसंख्यकों के अलावा पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जाति का समर्थन प्राप्त है. यह अलग बात है कि वोकलिंगा (Vokkaligas) और लिंगायत (Lingayats) दोनों ही मतदाता भूतपूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया (Siddaramaiah) से अभी भी खासे नाराज है. जाहिर है ऐसे में कांग्रेस-जद (एस) गठबंधन होने के बावजूद इनका वोट इधर-उधर खिसक सकता है. इसके अलावा दोनों ही दल अपने-अपने परंपरागत जाति केंद्रित मतदाताओं को भी एक-दूसरे से बंटने नहीं देंगे.

कर्नाटक इसलिए हुआ महत्वपूर्ण
राज्य में कांग्रेस का ही आधिपत्य रहा है, लेकिन यह भी सच है कि दक्षिण में बीजेपी की पहली सरकार 2007 में ही बनी थी. जद (एस) और कांग्रेस गठबंधन गठबंधन के बावजूद अपने-अपने वोटरों को इधर से उधर खिसकने नहीं देना चाहेंगे. दिल्ली में एनडीए (NDA)की सरकार के गठन के लिए कर्नाटक (Karnataka) में अच्छी-खासी सीटों पर जीत की तलबगार बीजेपी है.

कांग्रेस-जद (एस) गठबंधन पर आम चुनाव परिणामों का असर
गठबंधन बतौर कांग्रेस और जद (एस) 28 में से 12 संसदीय सीटों पर प्रभाव रखते हैं. हालांकि दोनों दलों के प्रादेशिक और स्थानीय नेताओं की परस्पर समस्याएं राज्य सरकार को कमजोर करने का काम ही करती आई हैं. देखा जाए तो धुर विरोधी दलों का यह गठबंधन राज्य में बीजेपी को सरकार बनाने से दूर रखने के लिए ही हुआ है. राज्य के दक्षिणी इलाकों में तो कांग्रेस औऱ जद (एस) के बीच कड़वाहट कहीं गहरी है. इन इलाकों में गठबंधन अपनी समस्याओं से पार पाने में सफल नहीं रहा है. इससे सरकार को लेकर तो अनिश्चित्ता तो बरकरार ही है, लेकिन बीजेपी के लिए परस्पर मतभेद की यही स्थिति लाभ का सौदा बनती दिख रही है.

प्रमुख मुद्दे
सूखा राहत से लेकर किसानों को पर्याप्त ऋण माफी नहीं मिलने समेत रोजगार की कमी ने सिद्धारमैया को सरकार से बाहर किया था. यह अलग बात है कि कांग्रेस येन केन प्रकारेण जद (एस) से गठबंधन कर सरकार का हिस्सा बन गई. राज्य के मतदाताओं में राष्ट्रीयता की भावना का जोर भी प्रमुखता से है, जो उसे बीजेपी के करीब लेकर आता है. हालांकि आमजन अभी तक बीएस यदियुरप्पा (BS Yeddyurappa) सरकार का भ्रष्टाचार भूला नहीं है. माना जाता है कि महज इसी कारण राज्य में बीजेपी पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने से बाल-बाल चूकी. यह अलग बात है कि इस लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) का फैक्टर भी काम कर सकता है.