उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों में आखिरी दो चरणों में 102 सीटों पर होने वाला चुनाव लखनऊ का रास्ता तय करेगा।
पिछले लोकसभा चुनाव में प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से 71 सीटों पर जीत दर्ज करने वाली बीजेपी (भारतीय जनता पार्टी) के लिए पूर्वी उत्तर प्रदेश के 17 जिलों में आने वाली 102 सीटें कितनी अहम हैं, इसका अंदाजा वाराणसी में पार्टी के दिग्गज नेताओं की मौजूदगी को देखकर लगाया जा सकता है।
पिछले विधानसभा चुनाव के आंकड़े समाजवादी पार्टी के पक्ष में जाते दिखाई देते हैं जिसमें 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी सेंध लगाने में सफल रही।
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ऐसे में समाजवादी पार्टी के सामने जहां 2012 के प्रदर्शन को दोहराने का दबाव होगा वहीं बीजेपी के सामने 2014 के लोकसभा चुनाव की वोटिंग को इस बार सीटों में तब्दील करने की चुनौती होगी। बीजेपी ने ध्रुवीकरण और जातीय समीकरण को आधार बनाते हुए पूर्वांचल में फतह करने की योजना बनाई है।
यूपी चुनाव की शुरुआत से ही बीजेपी विकास को एजेंडे पर लेकर चल रही थी लेकिन पूर्वांचल में चुनाव से पहले पार्टी ने ध्रुवीकरण की रणनीति अपना ली। श्मशान, कब्रिस्तान, रमजान और दिवाली पर प्रधानमंत्री मोदी का बयान इसी रणनीति के तहत की गई कोशिश थी। इसके बाद तो बीजेपी नेता योगी आदित्यनाथ भी मैदान में उतर आए।
पूर्वांचल की कई सीटों पर आदित्यनाथ का दबदबा माना जाता है। आखिरी दो चरणों में आजमगढ़, जौनपुर, मऊ, जैसे अच्छी खासी मुस्लिम आबादी वाले जिलों में अगर ध्रुवीकरण की रणनीति काम कर गई तो बीजेपी को इसका अच्छा-खासा फायदा मिलेगा।
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पूर्वी उत्तर प्रदेश के 17 जिलों में शनिवार और बुधवार को चुनाव होने हैं जहां की कुल आबादी में ओबीसी और एमबीसी की करीब 40 फीसदी आबादी है।
पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 60 फीसदी एमबीसी का समर्थन मिला था। लेकिन अखिलेश यादव ने 17 अति पिछड़ी जातियों (एमबीसी) को अनुसूचित जाति (एससी) का दर्जा देकर इस वोट बैंक में सेंध लगा दी है।
जिसके जवाब में बीजेपी ने इन जातियों को सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण देने का वादा किया है जो अभी तक ओबीसी को मिलता रहा है। साथ ही पार्टी ने अति पिछड़ी और गैर यादव ओबीसी पृष्ठभूमि के 170 उम्मीदवारों का चयन किया है।
समाजवादी पार्टी के सामने इस बार पिछले विधानसभा चुनाव के प्रदर्शन को दोहराने की चुनौती होगी। 2012 में सपा ने यहां की 49 सीटों में से 27 सीटें जीती थीं।
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बाकी सीटों में से नौ बसपा, सात बीजेपी, चार कांग्रेस और दो अन्य की झोली में गए थे। जबकि बीजेपी के लिए 2017 का चुनाव अभूतपूर्व प्रदर्शन करने की होगी। वैसे भी बीजेपी पूर्वांचल के समीकरण को अपनी राजनीति के लिहाज से मुफीद मानकर आगे चल रही है।
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HIGHLIGHTS
- उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों में आखिरी दो चरणों में 102 सीटों पर होने वाला चुनाव लखनऊ का रास्ता तय करेगा
- बीजेपी ने ध्रुवीकरण और जातीय समीकरण को आधार बनाते हुए पूर्वांचल में फतह करने की योजना बनाई है
- 2017 में समाजवादी पार्टी के सामने 2012 के प्रदर्शन को दोहराने का दबाव होगा
- वहीं बीजेपी के सामने 2014 के लोकसभा चुनाव की वोटिंग को इस बार सीटों में तब्दील करने की चुनौती होगी
Source : Abhishek Parashar