यूपी में अब विधान परिषद की लड़ाई, सपा-बीजेपी में असली फाइट
विधान सभा में पिछले पांच साल से तो बीजेपी का दबदबा और बहुमत है, लेकिन विधान परिषद में आंकड़ों के लिहाज से समाजवादी पार्टी भारी रही है इसलिए विधान परिषद में बहुत से विधेयक पास कराने में बीजेपीसरकार को परेशानी हुई है...
highlights
- विधान परिषद के लिए सपा-बीजेपी में जंग
- बीजेपी ने सपा से आए नेताओं को दिये टिकट
- विधान परिषद में दबदबे को बढ़ाना चाहती है बीजेपी
लखनऊ:
विधान सभा चुनाव में प्रचण्ड बहुमत हासिल करने के बाद बीजेपी की नजरें अब विधान परिषद चुनाव में भी भगवा लहराने पर है. विधान परिषद की 36 सीटों पर होने वाले चुनाव के मद्दे नजर बीजेपी और समाजवादी पार्टी में सीधा मुकाबला है और दोनों दलों ने अपने अपने उम्मीदवार भी घोषित कर दिए हैं. बीजेपी ने समाजवादी पार्टी से आए कई विधान परिषद सदस्यों को फिर से उम्मीदवार बनाया है, जबकि पश्चिम यूपी की दो सीटें समाजवादी पार्टी ने अपने सहयोगी आरएलडी के लिए छोड़ दी हैं.
विधान परिषद में दबदबा चाहती है बीजेपी
विधान सभा में पिछले पांच साल से तो बीजेपी का दबदबा और बहुमत है, लेकिन विधान परिषद में आंकड़ों के लिहाज से समाजवादी पार्टी भारी रही है इसलिए विधान परिषद में बहुत से विधेयक पास कराने में बीजेपीसरकार को परेशानी हुई है. ऐसे में 36 में से ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतकर बीजेपी परिषद में भी अपना दबदबा कायम करना चाहती है.
विधान परिषद में कुल 100 सीटें
उत्तर प्रदेश की 100 सदस्यीय विधान परिषद में वर्तमान में बीजेपी के 35 सदस्य, सपा के 17 और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के चार सदस्य हैं. उप्र विधान परिषद में कांग्रेस, अपना दल (सोनेलाल) और निषाद पार्टी के एक-एक सदस्य हैं. फिलहाल 37 सीटें खाली हैं. परिषद में विपक्ष के नेता अहमद हसन का पिछले दिनों लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया था. वहीं, उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले सपा के कई विधान पार्षद बीजेपी में शामिल हो गए थे. इनमें नरेंद्र सिंह भाटी, शतरुद्र प्रकाश, रमा निरंजन, रविशंकर सिंह पप्पू, सीपी चंद्र, घनश्याम लोधी, शैलेंद्र प्रताप सिंह और रमेश मिश्रा शामिल थे. बसपा के विधान पार्षद सुरेश कश्यप भी बीजेपी में शामिल हो गए.
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हालांकि समाजवादी पार्टी दावा कर रही है कि पंचायत चुनाव में उसका दबदबा था लिहाजा विधान परिषद चुनाव में भी समाजवादी पार्टी भारी पड़ेगी, लेकिन सभी को पता है कि विधान परिषद चुनाव में सत्ताधारी दल की सफलता के मौके विपक्ष के मुकाबले बेहद ज्यादा होते हैं. यही वजह है कि बीजेपी परिषद चुनाव में भी विधान सभा चुनाव की तरह सफलता को लेकर आश्वस्त है.
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