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प्रतापगढ़ सदर विधानसभा में निर्णयाक होगा ब्राह्मण और दलित मतदाता, देखें क्या है समीकरण

उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले का नाम आते ही जहन में राजा भैया और प्रमोद तिवारी का सबसे पहले नाम आता है, लेकिन इन दो नामों से जुड़ी राजनीति के बारे में हम बाद में बात करेंगे.

Updated on: 29 Jan 2022, 09:33 PM

प्रतापगढ़:

UP assembly election 2022 : उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले का नाम आते ही जहन में राजा भैया और प्रमोद तिवारी का सबसे पहले नाम आता है, लेकिन इन दो नामों से जुड़ी राजनीति के बारे में हम बाद में बात करेंगे अभी यह देखना ज़रूरी है कि यदि इन दो नामों को न लिया जाए तो प्रतापगढ़ की राजनीति कैसी हो सकती है? प्रतापगढ़ जिले में कुल सात विधानसभा सीटें हैं. रामपुर खास, कुंडा, बाबागंज, प्रतापगढ़ सदर, विश्वनाथगंज, पट्टी और रानीगंज. आइये हम बात करते हैं कि प्रतापगढ़ सदर विधानसभा की.

प्रतापगढ़ सदर की सीट की बात करने का मतलब न सिर्फ मुख्यालय की बात होगी, बल्कि यह प्रतापगढ़ शहर की सीट है. इस सीट पर फिलहाल उपचुनाव के दौरान अपना दल गठबंधन से राजकुमार पाल विधायक है. इसके पूर्व हुए 2017 के चुनाव में अपना दल से संगम लाल विधायक थे, जिनके सांसद बनने के बाद इस सीट पर उपचुनाव हुआ था.

इसके पूर्व 2012 में नागेंद्र सिंह उर्फ़ मुन्ना यादव विधायक रहे और 2007 में बसपा के संजय तिवारी यहां से विधायक रहे. विधायक चाहे जो रहा हो लेकिन सदर विधानसभा का विकास नहीं हो पाया और मतदाताओं को इस बार के चुनाव में असमंजस की स्थित में है. शहरीय क्षेत्र होने की वजह से जहां एक तरफ ब्राह्मण, बनिया वोटर्स की संख्या बहुतायत है तो वहीं कोहड़ौर इलाके के कांधरपुर समेत कई गांवों में पटेल मतदाता भी निर्णायक होता है. सदर में विधायक कई बदले, लेकिन कोई भी सदर की जनता को संतुष्ट नहीं कार पाया. इसकी वजह है सदर विधानसभा के मतदाता प्रत्येक चुनाव में विधायक बदल देते हैं. 

यदि सदर में ब्राह्मण कैंडिडेट की बात की जाए तो 2017 के विधानसभा में बसपा से जब अशोक त्रिपाठी चुनाव मैदान में आए तो उन्हें एक योग्य प्रत्याशी के रूप में लोगों ने देखा, लेकिन भाजपा की प्रचंड लहर के चलते जनता ने नकार दिया और उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. नीरज त्रिपाठी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. हालांकि, उन्होंने सदर की जनता के मन में विश्वास जरूर पैदा किया. कुल मिलाकर 2007 के बाद सदर ने सवर्ण प्रत्याशी को पसंद नहीं किया और पिछड़ी जाति के प्रत्याशी चाहे वह सपा के मुन्ना यादव हो या फिर संगम लाल गुप्ता या राजकुमार पाल के सिर पर सेहरा बांधकर जनता ने उन्हें विधानसभा भेज दिया. हालांकि, इसमें से कोई भी विधायक जनता के उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा.  

प्रतापगढ़ के जातीय समीकरण की बात करें तो करीब 75 हजार ब्राह्मण मतदाता, 70 हजार दलित, 10 हजार कुशवाहा वोटर, 60 हजार यादव वोटर, 50 हजार पटेल वोटर, 23 हजार पाल वोटर, 20 हजार वैश्य वोटर, 35 हजार मुस्लिम वोटर, सात हजार पांच सौ प्रजापति, 14-13 हजार कायस्थ, कुछ मुसहर व चौहान बिरादरी की भी तादात करीब पांच हजार के आसपास है.

अब बात करते हैं 2022 के इस महत्वपूर्ण चुनाव में जहां आप, कांग्रेस और बसपा ने ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या को देखते हुए ब्राह्मण प्रत्याशी उतारा है, जिसमें कांग्रेस के जनाधार को बचाना डॉ नीरज त्रिपाठी के लिए बड़ी चुनौती है. जबकि आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी को संघर्ष करने के लिए अभी लंबा सफर तय करने की जरूरत पद रही है तो वहीं सपा और अपना दल का उम्मीदवार घोषित न होने की वजह से बसपा के आशुतोष त्रिपाठी को चहुओर हरियाली दिखाई दे रही है.

हालांकि, सभी प्रत्याशी दिन रात एक करके मतदाताओं के पास पहुंच रहे हैं, जहां डोर-टू-डोर मतदाताओं को रिझाने में जुट गए हैं. कोहड़ौर के सौरभ शुक्ला का मानना है कि नीरज त्रिपाठी को अच्छे व्यक्ति हैं और उन्हें पार्टी बदलने की जरूरत है, जबकि सपा और अपना दल का कैंडिडेट घोषित न होने की वजह उनके पास विकल्प के रूप में बसपा के आशुतोष त्रिपाठी के रूप में अभी तक सिर्फ एक ही विकल्प है, जिनकी सरलता और एक फिक्स वोट बैंक होने की वजह से वह मतदताओं को रिझाने का काम कर रहे हैं. 

कटरा मेदनीगंज इलाके के 55 वर्षीय माता फेर वर्मा बताते हैं कि प्रतापगढ़ की सदर की लड़ाई हमेशा जाति पर ही हुई है. आप जहां भी जाइए, वोटर को इससे मतलब नहीं है कि विधायक ने विकास किया है या नहीं, या विधायक प्रदेश सरकार से कितना जुड़ा हुआ है. अव्वल तो यह है कि विधायक चुनने में पहले जाति देखो और फिर देखो कि आपसे मिलता कितना है।

प्रतापगढ़ सदर में इस समय की लड़ाई जाति से मजबूती से प्रभावित हो रही है. सीट अपना दल में जाने की वजह से भाजपा का मूल वोटर खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं और सपा के शासनकाल में गुंडागर्दी को आज भी सदर की जनता नहीं भूली है. मनीष हरिजन कहते हैं कि हम लोगों से क्या पूछ रहे हैं, कहीं भी चले जाइए. किसी से भी पूछिए कि सपा और भाजपा सरकार में किस तरह से दलितों का उत्पीड़न किया गया और उन विकास के लिए क्या हुआ.