महाराष्ट्र में रातों रात सरकार बनने के बाद अब एनसीपी के विधायकों पर दल बदल कानून होने या न होने की बहस तेजी से हो रही है. आखिर इस कानून का विधायकों को क्या डर रहता है. सरकार में शामिल होने के लिए किसी पार्टी के कितने विधायकों के टूटने की जरूरत होती है जिस पर यह कानून लागू न हो. दल-बदल, हॉर्स ट्रेडिंग, विधायकों का अपना दल छोड़ दूसरे में शामिल होने की घटनाएं बढ़ती जा रही है. ऐेसे में सवाल उठता है कि इस तरह के मामलों से दल बदल कानून कैसे निपटता है.
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दल बदल कानून की क्यों पड़ी जरूरत
दरअसल 1960-70 के दशक में एक समय ऐसा भी आया जब नेताओं ने एक दिन में दो-दो दल बदले. 30 अक्टूबर, 1967 को हरियाणा के विधायक गया लाल ने एक दिन के भीतर दो दल बदले. उन्होंने 15 दिन में तीन दल बदले थे. गया लाल पहले कांग्रेस से जनता पार्टी में गए, फिर वापस कांग्रेस में आए और अगले नौ घंटे के भीतर दोबारा जनता पार्टी में लौट गए. जब गया लाल ने यूनाइटेड फ्रंट छोड़कर कांग्रेस में शामिल होने का फैसला किया, तब कांग्रेस नेता राव बीरेंद्र सिंह उन्हें चंडीगढ़ ले गए, जहाँ उन्होंने गया लाल का परिचय ‘आया राम-गया राम’ के तौर पर कराया. इसके बाद आया राम-गया राम को लेकर तमाम चुटकुले और कार्टून बने और ‘आया राम गया राम स्लोगन चर्चा में आ गया.
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कब बना कानून
भारतीय संविधान के 10वीं अनुसूची में इस कानून को शामिल किया गया. इसे संसद में 1985 में पारित किया गया. यह कानून 1 मार्च 1985 से लागू हो गया. इस कानून की ऐसे समय में ज्यादा जरूरत महसूस होने लगी, जब विधायिका (संसद या विधानसभा) के सदस्य लाभ के लिए एक दल से दूसरे दल का रुख करने लगे. एक वक्स में आया राम गया राम की उक्ति काफी प्रचलित हो चुकी थी. ऐसे हालात में राजनीतिक अस्थिरता का खतरा पैदा हो गया था. स्थित को भांपते हुए नीति निर्धारकों ने दल दबल विरोधी कानून बनाने पर विचार किया. शुरूआत में अभिव्यक्ति का स्वतंत्रता का हवाला देकर इसका विरोध किया गया. संसद और विधानसभा के सदस्यों को लगता था कि सख्त कानून लागू होने से उनकी अभिव्यक्ति खतरे में आ सकती है. लिहाजा काफी समय तक यह मुद्दा लटका रहा. आखिरकार 1985 में राजीव गांधी की सरकार ने इसे संसद से पारित करा दिया.
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कानून में क्या हैं प्रावधान
-दल-बदल करने वाले सांसद एवं विधायक की सदस्यता स्वतः ही समाप्त हो जाएगी.
-दल-बदल करने वाले सदस्य किसी भी प्रकार का सरकारी एवं लाभ का पद प्राप्त नहीं कर सकेंगे.
-सदन की सदस्यता हासिल करने के लिए पुनः चुनाव जीतना होगा.
-मंत्रिपरिषद् का आकार केन्द्र एवं बड़े राज्यों में लोकप्रिय सदन की सदस्य संख्या का 15 प्रतिशत ही हो सकेगा.
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दल-बदल विरोधी कानून निम्न आधार पर लागू नहीं होगा
-सदन के सदस्यों की सदस्यता तब समाप्त नहीं होती, अगर सदन के सदस्यों की कुल संख्या के 1/3 सदस्य राजनीतिक दल के विभाजन के परिणामस्वरूप उसकी सदस्यता का परित्याग करते हैं या 2/3 सदस्य किसी अन्य राजनीतिक दल में शामिल हो जाते हैं और पृथक् समूह के रूप में कार्य करने का निश्चय करते हैं तथा बाद में उनका विलय किसी अन्य राजनीतिक दल में हो जाता है.
-लोकसभा एवं विधानसभा के अध्यक्ष और राज्यसभा का उपसभापति चाहे तो अपने निर्वाचन के पश्चात् अपनी पार्टी से इस्तीफा दे सकते हैं. किन्तु एक बार इस्तीफा देने के बाद पद पर रहते हुए वे पुनः पार्टी में शामिल होते हैं तो अयोग्य घोषित किये जाते हैं. इसका निर्णय पीठासीन अधिकारी करेगा.
-यदि किसी राजनैतिक पार्टी का अन्य दल में विलय हो रहा है और यदि उसका कोई सदस्य उससे बाहर होना चाहता है तो उस पर दल बदल कानून लागू नहीं होगा, साथ ही, कोई पार्टी किसी सदस्य की पार्टी सदस्यता समाप्त कर दे तो उसकी सदन की सदस्यता समाप्त नहीं की जाएगी.
एनसीपी के कितने विधायकों का चाहिए अजीत पवार को साथ
एनसीपी के कुल विधायकों की संख्या 54 है. ऐसे में अजीत पवार को 2/3 सदस्यों का चाहिए. मतलब अगर 36 विधायक बीजेपी को समर्थन करते हैं तो उन पर दल बदल कानून लागू नहीं होगा
Source : कुलदीप सिंह