Advertisment

Maharashtra Assembly election result 2019: विरासत बचेगी या जाएगी, फैसला चंद घंटे बाद

Maharashtra Assembly election result 2019: महाराष्‍ट्र (Maharashtra) की राजनीति में 5 परिवारों का अबतक दबदबा रहा है.

author-image
Drigraj Madheshia
New Update
Maharashtra Assembly election result 2019: विरासत बचेगी या जाएगी, फैसला चंद घंटे बाद

प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर( Photo Credit : फाइल)

Advertisment

महाराष्‍ट्र (Maharashtra) की राजनीति में 5 परिवारों का अबतक दबदबा रहा है. 38 की उम्र में महाराष्‍ट्र (Maharashtra) के मुख्यमंत्री बनने वाले शरद पवार का परिवार हो या बिना विधायक, सासंद बने करीब चार दशकों से महाराष्‍ट्र (Maharashtra) की सियासत की धुरी बनकर उभरे ठाकरे परिवार. या फिर बाला साहब ठाकरे की उंगली पकड़ कर अपराध से राजनीति में उतरने वाला नारायाण राणे परिवार. इन तीनों के अलावा देशमुख परिवार भी है जहां अब सियासत की विरासत संभालने और बचाने के लिए चुनाव मैदान में हैं. एक और परिवार है गोपीनाथ मुंडे का.

सबसे पहले बात महाराष्‍ट्र (Maharashtra) की सियासत के की. जी हां, शरद पवार को महाराष्‍ट्र (Maharashtra) की सियासत का चाणक्‍य कहा जाता है. उनकी मां शारदा बाई 1936 में पूना लोकल बोर्ड की सदस्य थीं. शरद पवार 38 की उम्र में महाराष्‍ट्र (Maharashtra) के मुख्यमंत्री बने और चार बार सीएम रहे. कांग्रेस का हाथ पकड़ कर सियासत की जंग में उतरे शरद पवार ने 1999 में एनसीपी का गठन किया. परिवार का सबसे ज्यादा राजनीतिक प्रभाव मराठवाड़ा इलाके के बारामती और ग्रामीण पुणे के आसपास के इलाकों में है.

शरद पवार के सबसे बड़े भाई दिनकरराव गोविंदराव पवार ऊर्फ अप्पा साहेब पवार थे. वह पवार परिवार से राजनीति में उतरने वाले पहले सदस्य थे.
अप्पा साहेब ने अपने छोटे भाई शरद पवार को कांग्रेस से जुड़ने के लिए राजी किया. 1999 में सोनिया गांधी से टकराव के बाद कांग्रेस से निकाले जाने के बाद शरद पवार ने नेशनल कांग्रेस पार्टी बनाई.

इसके बाद महाराष्‍ट्र (Maharashtra) की राजनीति में पवार परिवार का दबदबा और कायम हुआ. बेटी सुप्रिया सुले पार्टी से सांसद बनती रहीं.
एक अन्य भाई अनंतराव के बेटे अजित पवार महाराष्‍ट्र (Maharashtra) में राजनेता के रूप में उभरने में सफल रहे. वह एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन में डिप्टी सीएम भी बने.
अप्पा साहेब के पोते रोहित 2017 में बारामती के होम टाउन से जिला परिषद का चुनाव जीता था. राकांपा में कई पार्टी कार्यकर्ता उन्हें शरद पवार के बाद वास्तविक जननेता के रूप में देखते हैं.

महाराष्‍ट्र (Maharashtra) की राजनीति का वारिस बनने के लिए इन दो पोतों में अंदरखाने जंग छिड़ी है. हालांकि दो लाख से भी अधिक वोटों से पार्थ पवार के चुनाव हार जाने के बाद अब रोहित पवार का पलड़ा मजबूत लग रहा है. दादा शरद पवार की सीट गंवाकर पार्थ पवार परिवार से चुनाव हारने वाले पहले सदस्य बन गए हैं.

ठाकरे परिवार

महाराष्‍ट्र (Maharashtra) की सियासत में बाला साहब ठाकरे परिवार के दबदबे का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकते हैं कि बिना विधायक, सासंद बने ही करीब चार दशकों से महाराष्‍ट्र (Maharashtra) की सियासत को यह परिवार प्रभावित कर रहा है.
ठाकरे परिवार की सियासत हमेशा गैर मराठियों के खिलाफ ही घूमती रही. बाल ठाकरे के निधन के बाद उनके बेटे उद्धव ठाकरे और पोते आदित्य ठाकरे के हाथों शिवसेना की कमान संभाल है.

  • 1950 में बाल ठाकरे फ्री प्रेस में कार्टूनिस्ट थे. मुंबई मराठो का है और इस पर मराठियों का ही राज होना चाहिए. उनकी यह विचारधारा उनके कार्टून में तीखे व्यंग्य के रूप में दिखने लगी. बाल ठाकरे ने 19 जून 1966 को अपनी पार्टी शिवसेना बनाई. दादर के शिवाजी पार्क में दशहरे के दिन पहली रैली आयोजित की गई. थाणे म्युनिसिपल चुनाव में शिवसेना ने 40 में से 15 सीटें जीतीं. 1970 के बाद बाल ठाकरे खुद को एक हिंदूवादी नेता के तौर पर उभारने लगे . 1989 में पहली बार शिवसेना का एक उम्मीदवार संसद पहुंचा. 1995 के विधानसभा चुनावों में शिवसेना बीजेपी गठबंधन की जीत हुई. 1996 में बाल ठाकरे के सबसे छोटे बेटे उद्धव ठाकरे की एंट्री हुई.
  • 1996 में ही राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के बीच की लड़ाई सामने आने लगी. दोनों की लड़ाई का नतीजा 1999 में विधानसभा में देखने को मिला. इन चुनाव में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन की करारी हार हुई.
  • 2002 में राज ठाकरे ने पहली बार खुली बगावत कर दी. 2003 में उद्धव ठाकरे को शिवसेना का कार्यकारी अध्यक्ष चुना गया .
  • 2005 में राज ठाकरे ने शिवसेना छोड़ने की घोषणा कर दी. 2006 में राज ठाकरे ने महाराष्‍ट्र (Maharashtra) नवनिर्माण सेना नाम से नई पार्टी बनाई. 2009 के विधानसभा के चुनावों में शिवसेना के वोट बैंक में सेंध लगाकर राज ठाकरे की पार्टी ने 13 सीटों पर कब्जा कर लिया.
  • उद्धव ठाकरे का बड़े बेटे आदित्य दादा और पिता की तरह राजनीति में सक्रिय हैं . आदित्य ठाकरे इस बार महाराष्‍ट्र (Maharashtra) विधानसभा चुनाव वर्ली से उम्‍मीदवार हैं.

नारायण राणे परिवार

नारायण राणे ने मध्य मुंबई के चेंबूर इलाके में शिवसेना के शाखा प्रमुख से अपनी राजनीतिक पारी शुरू की. इससे पहले वो अपराध जगत से जुड़े थे. 1985 में मुंबई म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन का चुनाव जीतकर राणे पार्षद बने. शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे ने उन्हें कोकण में मालवण विधानसभा क्षेत्र से टिकट दिया और राणे विधायक बने.

  • 1995 में शिवसेना बीजेपी गठबंधन महाराष्‍ट्र (Maharashtra) में सत्ता में आया और राजस्व मंत्री बन गए. वह ठाकरे के चहेते मंत्री थे.
  • 1999 में मनोहर जोशी करपशन के केस में हाईकोर्ट से फटकार मिलने के बाद ठाकरे ने राणे को मुख्यमंत्री बनाया। मुख्यमंत्री पद पर राणे को महज नौ महीने मिले।
  • 1999 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और एनसीपी के गठबंधन ने सत्ता संभाली। हालांकि दोनों गठबंधन में सिर्फ 8 सीटों का फर्क था. नारायण राणे विपक्ष दल नेता बने.
  • राज ठाकरे के करीबी राणे को उद्धव ने 3 जुलाई 2005 को शिवसेना से निकाला दिया.
  • 30 जुलाई को राणे ने कांग्रेस का हाथ थामा और एक बार फिर राजस्व मंत्रालय पर कब्‍जा किया
  • 2009 में कांग्रेस एनसीपी गठबंधन फिर से सत्ता में आया. राणे को उद्योग मंत्रालय पर संतुष्ट रहना पड़ा.
  • 2014 में बीजेपी शिवसेना गठबंधन सत्ता में आया. 21 सितम्बर 2017 को राणे ने कांग्रेस छोड़ी
  • 1 अक्टूबर 2017 को महाराष्‍ट्र (Maharashtra) स्वाभिमान पार्टी की स्थापना राणे ने की.
  • 2009 में नारायण राणे के बड़े बेटे नीलेश राणे रत्नागिरी सिंधुदुर्ग लोकसभा क्षेत्र से सांसद निर्वाचित हुए.
  • छोटा बेटा नितेश राणे 2014 में कणकवली विधानसभा क्षेत्र से विधायक है.

विलासराव देशमुख
मराठा जागीरदार घराने से ताल्‍लुक रखने वाले विलासराव देशमुख ने पुणे में कॉलेज की पढ़ाई की. इंडियन लॉ सोसायटी के लॉ कॉलेज से वकालत करते समय उनकी मुलाक़ात और दोस्ती गोपीनाथ मुंडे से हुई.

  • 1974 में सरपंच का चुनाव जीते और राजनीति में उनकी करियर शुरू हुयी।
  • 1975 में उस्मानाबाद जिला यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष बने. संजय गाँधी से प्रभावित होकर फाइव्ह पॉइंट प्रोग्राम के अमल के लिए यूथ कांग्रेस के जरिए उन्होंने प्रयास किया।
  • 1980 में उन्हें शिवराज पाटिल की जगह पर लातूर विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवारी मिली। उसके बाद लगातार तीन बार वह विधायक बने.
  • 1980 में ही मंत्री बने और लगातार पंद्रह साल अलग अलग मंत्रालय का काम संभाला। इस दौरान महाराष्‍ट्र (Maharashtra) में आठ मुख्यमंत्री बने पर हर मुख्यमंत्री के मंत्रिमंडल में विलासराव का मंत्री पद कायम था.
  • 1995 के विधानसभा चुनाव में विलास राव को पहली बार हार का सामना करा पड़ा. ३५ हजार वोटों से उनकी हार हुयी।
  • 1996 में विलासराव ने कांग्रेस छोड़ कर विधानपरिषद का चुनाव लड़ा पर नसीब ने उनका साथ नहीं दिया। वह फिर से कांग्रेस में आये.
  • 1999 के चुनाव में विधायक बने और मुख्यमंत्री भी बने. महाराष्‍ट्र (Maharashtra) प्रदेश अध्यक्ष पद पर बैठी प्रभा राव के साथ अनबन होने के कारण 2003 में उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाया गया और उनके जानी दोस्त सुशीलकुमार शिंदे को मुख्यमंत्री पद की कमान सौँपी गयी.
  • 2004 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस एनसीपी गठबंधन फिर से सत्ता में आया पर मुख्यमंत्री विलासराव बने. 2008 में आतंकी हमले के बाद फिर एक बार विलासराव को मुख्यमंत्री पद की गद्दी छोड़नी पड़ी.
  • अशोक चव्हाण मुख्यमंत्री बने तो विलासराव देशमुख को 28 मई 2009 को केंद्र में मंत्री पद मिला।
  • ग्रामीण विकास, सायन्स एंड टेक्नोलॉजी, हेवी इंडस्ट्रीज, पंचायती राज यह मंत्रालय उन्होंने संभाले।
  • 14 अगस्त 2012 को 67 वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ.
  • विलासराव देशमुख को अमित, रितेश और धीरज यह तीन बेटे है. अमित और धीरज राजनीति में है तो रितेश ने बॉलीवुड में नाम कमाया है.

मुंडे परिवार

गोपीनाथ मुंडे की बेटी और ग्रामीण विकास मंत्री पंकजा मुंडे परली सीट से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के उम्मीदवार के तौर पर चुनावी मैदान में हैं. वर्ष 2014 में केंद्रीय मंत्री पद की शपथ लेने के चंद दिनों बाद ही गोपीनाथ मुंडे दिल्ली में एक सड़क दुर्घटना में मारे गए थे। लेकिन महाराष्‍ट्र (Maharashtra) विधानसभा चुनावों (Maharashtra Assembly Elections) में उनका नाम छाया रहा था. गोपीनाथ मुंडे की दोनों बेटियां राजनीति में सक्रिय हैं. उनकी बड़ी बेटी पंकजा मुंडे महाराष्‍ट्र (Maharashtra) सरकार में मंत्री हैं, जबकि उनकी छोटी बेटी प्रीतम मुंडे गोपीनाथ मुंडे की परंपरागत बीड लोकसभा से दूसरी बार सांसद हैं.

यह भी पढ़ेंः हरियाणा विधानसभा चुनाव: टिक-टॉक (TikTok) स्‍टार सोनाली फोगाट (Sonali Phogat) ने इन नेताओं को पीछे छोड़ा, गूगल सर्च में निकलीं आगे

पंकजा मुंडे का जन्म 26 जुलाई, 1979 को परली में हुआ था. पंकजा के दो भाई-बहन हैं जिनके नाम यशहारी और प्रीतम हैं. पंकजा मुंडे ने एक डॉक्टर से उद्योगपति बने अमित पालवे से शादी की है और उनका आर्यमन नामक एक बेटा है.

यह भी पढ़ेंः रोचक तथ्‍यः ये हैं हरियाणा विधानसभा चुनाव (Haryana Assembly Election) के टॉप 10 युवा उम्‍मीदवार

पंकजा साइंस से ग्रेजुएट हैं और उन्होंने एमबीए की पढाई भी की है. परली निर्वाचन क्षेत्र से विधायक के रूप में चुने जाने से पहले वह एक गैर सरकारी संगठन का हिस्सा थीं.
2009 में वह परली निर्वाचन क्षेत्र से महाराष्‍ट्र (Maharashtra) विधानसभा की विधायक बनीं लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने अपने पिता के लिए आक्रामक रुख अख्तियार करते हुए प्रचार किया. पंकजा ने 27 अगस्त 2014 को 14 दिनों की यात्रा शुरू होने के दौरान 600 रैलियों और 3500 किलोमीटर सड़क यात्रा करके 79 विधानसभा क्षेत्रों को कवर किया. साल 2014 में उन्होंने 31 अक्टूबर को महाराष्‍ट्र (Maharashtra) के कैबिनेट मंत्री के रूप में शपथ ली. उन्हें ग्रामीण विकास, महिला और बाल कल्याण मंत्रालय आवंटित किया गया था.

Source : न्‍यूज स्‍टेट ब्‍यूरो

Maharshtra Assembly election 2019
Advertisment
Advertisment
Advertisment