Madhya Pradesh Election: इन्‍हें वोट से नहीं कोई मतलब, जानें क्‍यों बुंदेलखंड के वोटर पकड़ रहे दिल्‍ली की ट्रेन

मध्य प्रदेश के चुनाव में राजनीतिक दलों के लिए बुंदेलखंड की समस्याएं भले ही मायने न रखती हों, मगर वोट तो उनके लिए अहमियत रखता है, इसके बावजूद कोई भी दल और नेता 'वोटरों' का पलायन रोक नहीं पा रहे हैं.

मध्य प्रदेश के चुनाव में राजनीतिक दलों के लिए बुंदेलखंड की समस्याएं भले ही मायने न रखती हों, मगर वोट तो उनके लिए अहमियत रखता है, इसके बावजूद कोई भी दल और नेता 'वोटरों' का पलायन रोक नहीं पा रहे हैं.

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Drigraj Madheshia
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Madhya Pradesh Election: इन्‍हें वोट से नहीं कोई मतलब, जानें क्‍यों बुंदेलखंड के वोटर पकड़ रहे दिल्‍ली की ट्रेन

प्रतीकात्मक तस्वीर

मध्य प्रदेश के चुनाव में राजनीतिक दलों के लिए बुंदेलखंड की समस्याएं भले ही मायने न रखती हों, मगर वोट तो उनके लिए अहमियत रखता है, इसके बावजूद कोई भी दल और नेता 'वोटरों' का पलायन रोक नहीं पा रहे हैं. कई गांव तो ऐसे हैं, जहां एक तिहाई आबादी पलायन कर गई है और इसका सीधा असर मतदान प्रतिशत के साथ जीत-हार पर पड़ने की संभावना को नहीं नकारा जा सकता. दमोह के रेलवे स्टेशन के बाहर रात को डेरा डाले परिवारों की हालत को देखकर समझा जा सकता है. बटियागढ़ से जा रहे कालूराम और उनके साथी बस एक ही रट लगाए हुए हैं कि "क्या करें.. रोजगार है नहीं, खेती में कोई काम अभी नहीं है, दूसरी ओर ठेकेदारों के काम बंद पड़े हैं. ऐसे में उनके लिए दिल्ली और दूसरे स्थानों पर जाने के अलावा केाई रास्ता नहीं है."

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टीकमगढ़ जिले के कटेरा गांव की लगभग एक तिहाई आबादी गांव छोड़ गई है, कई घरों में बुजुर्ग लोग ही हैं. कमल लोधी (60) बताते हैं, "गांव में पलायन होना आम बात है, त्योहार के समय आते हैं और फिर वापस चले जाते हैं, अभी वही हाल है, 550 की वोटिंग वाले इस गांव से लगभग 150 लोग बाहर है. यहां कोई काम है नहीं, बाहर न जाएं तो करें क्या, मजबूरी है."इसी तरह गांव के खुमान सिंह (58) बताते हैं कि गांव के लोगों को तो काम चाहिए, बगैर काम के जीवन चल नहीं सकता. विकास काम रुके पड़े हैं, नियमित रूप से काम मिलता नहीं, जिसके चलते लोग गांव छोड़ने को मजबूर हैं. बुंदेलखंड में तो पलायन आम है.

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सामाजिक कार्यकर्ता मनोज बाबू चौबे कहते हैं कि बुंदेलखंड में रोजगार की अनुपलब्धता एक बड़ी समस्या है, खेती के लिए पर्याप्त पानी नहीं मिलता, जिसके चलते बड़ी मात्रा में जमीन खाली पड़ी रहती है. दूसरी तरफ, अन्य कोई काम ऐसा नहीं है जिसके जरिए वे अपना उदर पोषण कर लें, जिसके चलते बड़ी संख्या में घर छोड़ जाते हैं. अब चुनाव है, जिससे मतदान का प्रतिशत प्रभावित होने की संभावना को नकारा नहीं जा सकता.

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गांव के लोग बताते हैं कि दिवाली पर बड़ी संख्या में लोग त्योहार मनाने आए थे, भाईदूज तक रुके भी, जब यहां कोई काम मिलता नजर नहीं आया तो परिवार के परिवार फिर गांव छोड़ गए हैं. वजह यह है कि इस समय खेती का कोई काम नहीं है, वहीं चुनाव होने के कारण सरकारी और निजी अधिकांश निर्माण कार्य रुके पड़े हैं. काम मिल जाता तो लोग रुके रहते, मगर ऐसा नहीं था, इसलिए बाहर चले गए.

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वहीं चुनाव सुधार के लिए काम करने वाली संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोकट्रिक रिफॉर्म के संजय सिंह का कहना है कि चुनाव लोकतंत्र का एक उत्सव है, जिसमें सभी वर्गो की हिस्सेदारी जरूरी है. इसके लिए निर्वाचन आयोग के साथ एडीआर भी अपने तरह से अभियान चला रही है, गांव बुंदेलखंड से लेागों के पलायन की बात सही है, फिर भी यह प्रयास किए जा रहे हैं कि लोग चुनाव के मौके पर लौटें और मतदान में अपनी हिस्सेदारी निभाएं.

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भारत निर्वाचन आयोग मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए लगातार जागरूकता अभियान चला रहा है. इतना ही नहीं, जिला स्तर पर भी इस तरह के प्रयास हो रहे हैं. एक तरफ घरों में मौजूद मतदाताओं को मतदान के लिए प्रेरित किया जा रहा है तो दूसरी ओर बुंदेलखंड से बड़ी संख्या में मतदाता पलायन कर गए हैं, उन्हें लौटाने का कोई प्रयास नहीं हो रहा है. नतीजत, यहां मतदान का प्रतिशत कम तो रहेगा ही, साथ ही नतीजे भी प्रभावित होने की आशंका को नकारा नहीं जा सकता.

Source : IANS

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