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MP: 41 लाख किसानों पर 56 हजार करोड़ रुपये का कर्ज, जानें कर्जमाफी से आप पर क्‍या होगा असर

प्रदेश के किसानों पर सहकारी बैंक, राष्ट्रीयकृत बैंक, ग्रामीण विकास बैंक और निजी बैंकों का 70 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज है.

Updated on: 18 Dec 2018, 09:22 AM

नई दिल्‍ली:

मध्‍य प्रदेश के किसानों पर सहकारी बैंक, राष्ट्रीयकृत बैंक, ग्रामीण विकास बैंक और निजी बैंकों का 70 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज है. इसमें 56 हजार करोड़ रुपये का कर्ज 41 लाख किसानों ने लिया है. वहीं, लगभग 15 हजार करोड़ रुपये डूबत कर्ज (एनपीए) है. कमलनाथ सरकार द्वारा किसानों के दो लाख (2 लाख) की सीमा तक का 31 मार्च, 2018 की स्थिति में बकाया फसल ऋण माफ करने का आदेश जारी कर दिया गया. राज्य शासन के इस निर्णय से लगभग 34 लाख किसान लाभान्वित होंगे. फसल ऋण माफी पर संभावित व्यय 35 से 38 हजार करोड़ रुपये अनुमानित है.

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किसानों द्वारा ट्रैक्टर व कुआं सहित अन्य उपकरणों के लिए कर्ज लिया गया है तो उसे कर्ज माफी के दायरे में नहीं लिया जाएगा. सिर्फ खेती के लिए उठाए कर्ज पर माफी मिलेगी. इसमें भी यदि किसान ने दो या तीन बैंक से कर्ज ले रखा है तो सिर्फ सहकारी बैंक का कर्ज माफ होगा. कर्ज माफी कुल दो लाख रुपये तक ही होगी. इसके लिए पहले किसान को कालातीत बकाया राशि बैंक को वापस लौटानी होगी. हालांकि, अधिकारियों का कहना है कि इस बारे में अंतिम निर्णय मुख्यमंत्री बनने और उनके साथ होने वाली बैठक में होगा.

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बता दें कि मध्य प्रदेश विधानसभा के लिए 28 नवंबर को मतदान हुआ था और 11 दिसंबर को आए चुनाव परिणाम में प्रदेश की कुल 230 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस को 114 सीटें मिलीं. यह संख्या साधारण बहुमत, 116 सीट, से दो कम हैं. हालांकि बसपा के दो, सपा के एक और चार अन्य निर्दलीय विधायकों ने कांग्रेस को समर्थन दिया है. जिससे कांग्रेस को फिलहाल कुल 121 विधायकों का समर्थन हासिल है. वहीं, BJP को 109 सीटें मिली हैं.

आम जनता को होता है नुकसान 

राज्य सरकारें या केंद्र सरकार अगर किसानों का कर्ज माफ करती हैं तो उनको माफ किए गए कर्ज की भरपाई बैंकों को करनी पड़ती है. राज्य सरकारें या केंद्र सरकार यह पैसा आम जनता की हितों की कीमत पर ही बैंकों देती हैं. अगर कर्ज माफ नहीं हुआ होता है तो सरकार यह पैसा विकास से जुड़ी गतिविधियों पर या स्वास्थ्य या शिक्षा से जुड़ी सुविधाओं को बढ़ावा देने पर खर्च करती. यानी कर्ज माफी से आखिरकार जनता को ही नुकसान उठाना पड़ता है.

1. कृषि ऋण माफी से अन्य राज्यों पर पड़ा दबाव 

कृषि ऋण माफी की राज्य को भारी कीमत चुकानी पड़ती है. हर विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दलों की यह जैसे आदत सी बनती जा रही है कि कृषि ऋण माफी उनके चुनावी घोषणा पत्र का हिस्सा होना ही होना है. हर विधानसभा चुनाव में ऋण माफी की घोषणा की जा रही है. RBI के अनुसार 2014 में राष्‍ट्रीय ऋण माफी के तहत 52, 260 करोड़ माफ किए गए वहीं आंध्र प्रदेश में 24000 करोड़ माफ किए गए. 2016 में तेलंगाना ने 17000 करोड़, तमिलनाडु ने 2017 में 6000 करोड़, उप्र ने 2017 में 36000 करोड़, महाराष्‍ट्र ने 217 में 34000 करोड़, पंजाब ने 2018 में 10000 करोड़, कर्नाटक ने 2018 में 34000 करोड़ और राजस्‍थन ने इसी साल 8000 करोड़ रुपए के कर्ज माफ किए.

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2. खेती से मुश्किल हो रहा जीवन-यापनः राजनीतिक दलों द्वारा कृषि ऋण माफी से कृषि संकट के मूल कारणों का समाधान नहीं होता है. सबसे बड़ी बात यह है कि किसान खेती से पर्याप्त कमाई नहीं कर पा रहे हैं.

3. हर किसी को समान फायदा नहीं ः सबसे बड़ी बात यह है कि कृषि ऋण माफी का हर किसान को फायदा नहीं मिलता. इसमें किसानों द्वारा बैंकों से लिया गया लोन तो माफ हो जाता है, लेकिन जो किसान अनौपचारिक क्षेत्र से ऋण लेते हैं, वे जस के तस रहते हैं.

4. अमीरों को सर्वाधिक फायदा 

कृषि ऋण माफी का सर्वाधिक फायदा अमीर किसानों को मिलता है. इसके तीन प्रमुख कारण हैं. 
1. उन्हें बैंकों से आसानी से ऋण मिल जाता है. 
2. सिस्टम तक उनकी पहुंच बेहतर होती है. 
3. उनमें वित्तीय साक्षरता और जागरूकता अधिक होती है.

5. ऋण माफी से क्रेडिट कल्चर पर असर और नैतिक खतरा

इससे सबसे बड़ा खतरा यह है कि इससे वैसे किसान जो ऋण का भुगतान करने में सक्षम हैं, वे भी ऋण भुगतान से पीछे हट सकते हैं. वित्त वर्ष 2015-16 में कृषि क्षेत्र का एनपीए 5.44 फीसदी, वित्त वर्ष 2016-17 में 5.61 फीसदी, जबकि वित्त वर्ष 2017-18 में यह 7.18 फीसदी रहा. 

6. किसानों के लिए बैंकों से लोन लेना हुआ मुश्किल 

चूंकि बैंक समझ गया है कि उसके द्वारा किसानों को दिया गया ऋण चुनाव में माफ कर दिया जाएगा और इस तरह उसका कर्ज डूब जाएगा. इसलिए बैंक भी अब किसानों को कर्ज देने से ऐहतियात बरतने लगे हैं.

7. विकास को झटका 

कृषि ऋण माफी से विकास को गहरा आघात पहुंचता है, क्योंकि सरकार को हर क्षेत्र में खर्च में कटौती करनी पड़ती है. इससे सिंचाई और इंफ्रास्ट्रक्चर की योजनाओं पर खर्च में कमी लानी पड़ती है. कृषि ऋण माफी (जीएसडीपी का प्रतिशत) का राजकोषीय घाटे में योगदान सर्वाधिक उत्तर प्रदेश में रहा है. 

बेहतर ताल्लुकात वाले लोगों को ही मिलता है कृषि कर्ज माफी का लाभ 

'ऐन इकनॉमिक स्ट्रेटेजी फॉर इंडिया' नामक रिपोर्ट जारी करते हुए राजन ने कहा, 'कृषि कर्ज माफी का लाभ बेहतर ताल्लुकात वाले लोगों को ही मिलता है, न कि किसी गरीब किसान को. दूसरी बात, कृषि कर्ज माफी राज्यों की अर्थव्यवस्था के लिए भारी परेशानी का सबब बन जाती है और इससे कृषि क्षेत्र में निवेश पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है.' भारतीय रिजर्व बैंक पहले किसानों की कर्ज माफी स्कीम को लेकर राज्य और केंद्र सरकार को चेतावनी दे चुका है. रिजर्व बैंक के पूर्व गर्वनर ऊर्जित पटेल एक बयान में कहा है कि किसानों की कर्ज माफी उनकी समस्याओं का समाधान नहीं है और इसका नकारात्मक असर पड़ सकता है. उन्होंने कहा कि किसानों की कर्ज माफी से राज्यों की वित्तीय स्थिति कमजोर हो सकती है और इससे महंगाई बढ़ सकती है. कृषि ऋण माफी किसानों का संकट दूर करने में बिल्कुल भी कारगर साबित नहीं हुआ है, बल्कि इससे मुश्किलें और बढ़ी ही हैं.

सत्‍ता की चाबी रही है कर्जमाफी का वादा

  • साल 2017 में उत्तर प्रदेश चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी ने किसानों के कर्ज माफी का वादा किया था. इस चुनाव में भाजपा ने 400 में से 325 सीटों पर जीत हासिल की थी. सीएम योगी ने सरकार बनने के बाद 36 हजार करोड़ रुपए का कर्ज माफ करने का ऐलान किया था.
  • पंजाब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने किसानों से कर्ज माफी का वादा किया था. कांग्रेस को 117 सीटों में 77 सीटें मिली थीं. सरकार बनने के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार ने 10 हजार करोड़ रुपए का कर्ज माफी का एलान भी किया था.
  • साल 2018 में हुए कर्नाटक विधानसभा चुनाव के दौरान जेडीएस ने कर्ज माफी का वादा किया था. इसके बाद एचडी कुमारस्वामी ने कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई.
  • इसके साथ हुए गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा ने किसानों से वादा किया था कि अगर वह सत्ता में आती है तो उनके कर्ज का ब्याज सरकार चुकाएगी.