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Delhi Assembly Elections 2020: दिल्ली की सल्तनत को बदलने में यूपी-बिहार की बड़ी भूमिका

दिल्ली विधानसभा के 70 सीटों के लिए चुनावी बिगुल बज चुका है, सभी राजनीतिक पार्टीयों ने भी यहां की सल्तनत पर राज करने के लिए कमर कस ली है. ऐसे में हम राजधानी की जनता के बारे में बात करेंगे कि आखिर कैसे यहां सालों सालों इनका योगदान वर्गों के साथ बदलता ग

Updated on: 23 Jan 2020, 02:35 PM

नई दिल्ली:

दिल्ली विधानसभा के 70 सीटों के लिए चुनावी बिगुल बज चुका है, सभी राजनीतिक पार्टीयों ने भी यहां की सल्तनत पर राज करने के लिए कमर कस ली है. ऐसे में हम राजधानी की जनता के बारे में बात करेंगे कि आखिर कैसे यहां सालों सालों इनका योगदान वर्गों के साथ बदलता गया. दरअसल, 90 के दशक से दिल्ली में बदलाव आना शुरू हुआ. यहां देखते-देखते पूर्वांचली राजधानी की सत्ता में अहम किरदार बन गए. दिल्ली में रोजगार की तलाश में आने वाले सबसे ज्यादा यूपी और बिहार के लोग ही है, इनकी संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी देखने को मिला है.

पश्चिमी दिल्ली के सागरपुर, डाबड़ी, उत्तम नगर और पालम जैसे इलाकों में ही नहीं बल्कि उत्तरी दिल्ली के किराड़ी, यमुनापार, उत्तर पूर्वी दिल्ली और बुराड़ी के घनी आबादी वाले इलाकों में पूर्वांचल के आने वालों की लगातार संख्या बढ़ी है.

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वहीं पंजाबियों के मामले में इसका बिल्कुल उलट होने लगा है. पंजाबियों को दिल्ली में जो मकान मिले थे उसकी कीमत में हर दिन उछाल आ रहा है इसलिए वो इसे ऊंचे दामों में बेचकर दिल्ली से सटे इलाके नोएडा और गुड़गांव में जाने लगे हैं.

कांग्रेस नेता चतर सिंह के मुताबिक, दिल्ली में पूर्वांचल के दबदबे का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस समय राजधानी दिल्ली के डेढ़ दर्जन से अधिक सीटें ऐसी हैं, जिसमें उम्मीदवारों की जीत हार में पूर्वांचल के वोटरों की निणर्याक भूमिका है.

इनमें से ज्यादातर पश्चिमी आउटर और पूर्वी दिल्ली में हैं. हालांकी इसके अलावा भी लगभग एक दर्जन ऐसी कॉलोनियां हैं , जहां पूर्वांचल वोटरों की संख्या अधिक है. इसी कारण इस समय हर राजनीतिक पार्टी ने किसी न किसी पूर्वांचल के नेता को बड़ी और अहम जिम्मेदारी दी है. बीजेपी ने मनोज तिवारी, आम आदमी पार्टी ने संजय सिंह और कांग्रेस ने कीर्ति आजाद को दिल्ली चुनाव की अभियान की कमान सौंप रखी है.

इस मामले में बीजेपी नेता डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा का कहना है कि पंजाबी शरणार्थी जब यहां बसे तो उसके बाद पहली जनगणना सन् 1951 में की गई थी और इसके वजह से ही दिल्ली की आधी आबादी सीधे दुगुना हो गई. पंजाबियों की पकड़ का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कांग्रेस हो या बीजेपी दोनों ही पार्टी में पंजाबी नेताओं का ही बोलबाला था. डॉ मल्होत्रा के अलावा मदनलाल खुराना, केदार नाथ साहनी की तिकड़ी दिल्ली पर राज करती थी. कांग्रेस से इंद्रकुमार गुजराल और जगप्रवेश चंद्र भी पंजाबी ही थे.

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बता दें कि दिल्ली विधानसभा की 70 सीटों पर 8 फरवरी को वोट डाले जाएंगे और 11 फरवरी को नतीजे आएंगे.  गौरतलब है कि साल 2015 के विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल की पार्टी 'आप' ने सबको चौंकाते हुए 54.3 फीसदी वोट शेयर हासिल किए थे. मत प्रतिशत के मामले में बीजेपी 32.3 फीसदी वोट के साथ दूसरे नंबर पर रही तो कांग्रेस का वोट शेयर 9.7 फीसदी पर आ गया था.