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सांकेतिक चित्र( Photo Credit : (फाइल फोटो))
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सांकेतिक चित्र( Photo Credit : (फाइल फोटो))
विनोद तावड़े, एकनाथ खड़से, प्रकाश मेहता और राज पुरोहित को महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं देकर बीजेपी आलाकमान ने अपनी ही पार्टी के दिग्गज नेता प्रमोद महाजन-गोपीनाथ मुंडे के दौर पर अंततः पूरी तरह से पर्दा डाल दिया है. एक तरह से बीजेपी आलाकमान ने महाराष्ट्र की राजनीति में बीजेपी को फर्श से अर्श तक पहुंचाने वाले नेताओं को ही किनारे लगा दिया है. इसके साथ ही यह संदेश भी दिया है कि बीजेपी में कोई भी पार्टी से बड़ा नहीं है और पार्टी लाइन से अलग हटने का मतलब पार्टी से बाहर होना है.
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खड़से-तावड़े का योगदान कम नहीं
1995 में जब पहली बार बीजेपी ने शिवसेना की मदद से महाराष्ट्र में भगवा सरकार बनाई थी, उस दौर में तावड़े और खड़से का उदय हुआ था. इन दोनों ने ही बीजेपी को राज्य में अपने पैरों पर खड़ा करने में अहम भूमिका निभाई थी. यही हाल मेहता और पुरोहित का भी था. गोपीनाथ मुंडे की सरकार में इन दोनों को जगह देने के साथ ही बीजेपी ने गुजराती समाज में अपनी घुसपैठ सुनिश्चित की थी. कीरीट सौमेया ने भी शहर के व्यापारी वर्ग में बीजेपी का जनाधार मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई थी. हालांकि कीरीट सौमेया की अति महत्वाकांक्षाओं पर विराम लगाते हुए बीजेपी आलाकमान ने इस साल की शुरुआत में ही उन्हें लोकसभा के लिए उत्तर-पूर्व से टिकट नहीं दिया.
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पोस्टर ब्वॉय रहे खड़से
खड़से और तावड़े की जोड़ी तो फ्लोर मैनेजमेंट में सिद्धहस्त मानी जाती थी. 1999 के विधानसभा चुनाव में शिकस्त के बाद खड़से-तावड़े ने गोपीनाथ मुंडे के साथ मिलकर विधानसभा में कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन सरकार पर नकेल कसने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. इस लिहाज से देखें तो बीजेपी आलाकमान ने एक ही झटके में उन नेताओं को किनारे लगा दिया, जिन्होंने 90 के दशक में पार्टी की जड़ों को मजबूती देने के लिए अपना खून-पसीना लगाया था. एकनाथ खड़से तो अर्से तक उत्तरी मुंबई में बीजेपी के पोस्टर ब्वॉय रहे.
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बीजेपी ने दिया अन्य को कड़ा संदेश
बताया जाता है कि मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस इस घटनाक्रम से खुश नहीं हैं. उन्होंने बीजेपी के केंद्रीय संसदीय बोर्ड को इतना बड़ा फैसला नहीं लेने के लिए एक हद तक मनाने की अथक कोशिशें भी की, लेकिन नाकाम रहे. पार्टी सूत्रों की मानें तो तावड़े का आक्रामक अंदाज और मेहता की ताड़देव झुग्गी परियोजना में मनमानी ने ही उन्हें इस गति को प्राप्त कराया. पार्टी आलाकमान की नाराजगी इस मसले पर दोनों पर भारी पड़ गई. कह सकते हैं कि इस तरह आलाकमान ने उन नेताओं को कड़ा संदेश दिया है जो पार्टी लाइन से अलग चलने में यकीन करते हैं.
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