यूपी चुनाव परिणाम 2017: न अखिलेश का काम बोला न वोटर को राहुल के साथ उनका दोस्ताना पसंद आया

चुनाव के दौरान अखिलेश यादव और राहुल गांधी दोनों ने 250 से अधिक रैलियां की।

चुनाव के दौरान अखिलेश यादव और राहुल गांधी दोनों ने 250 से अधिक रैलियां की।

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Deepak Kumar
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यूपी चुनाव परिणाम 2017: न अखिलेश का काम बोला न वोटर को राहुल के साथ उनका दोस्ताना पसंद आया

File photo- Getty image

उत्तर प्रदेश में समाजवादी-कांग्रेस गठबंधन को मिली जबरदस्त हार के बाद 'राहुल औऱ अखिलेश के साथ' को लेकर सवाल उठने लगे हैं। मुलायम सिंह यादव परिवार में चल रही उठा-पटक के बाद अखिलेश ने समाजवादी पार्टी की कमान अपने हाथ में लेते हुए कांग्रेस के साथ गठबंधन का फैसला लिया था।

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चुनाव के ऐन वक्त पहले हुए इस गठबंधन को लेकर कई सवाल उठे थे लेकिन डिंपल यादव और प्रियंका गांधी की पहल की वजह से न केवल गठबंधन हुआ बल्कि कांग्रेस को सपा ने न चाहते हुए भी 105 सीटें दे डाली।

सपा के 25 सालों के सफर में पार्टी ने पहली बार कांग्रेस से हाथ मिलाया। जाहिर तौर पर यह इसलिए हो पाया कि सपा अब अखिलेश की हो चुकी थी औऱ पार्टी पर मुलायम का वर्चस्व खत्म हो चुका है।

सपा और कांग्रेस की सियासी लड़ाई ऐतिहासिक है, जिसमें कांग्रेस की कीमत पर सपा ने प्रदेश की राजनीति में अपना स्थान बनाया। इसका पटाक्षेप 1998 के लोकसभा चुनाव में हुआ जब सोनिया गांधी देश की प्रधानमंत्री बनने की दहलीज पर खड़ी थी और मुलायम सिंह उनके इस सपने में सबसे बड़ी रुकावट बनें। लेकिन पिछले दो दशकों में अब मुलायम अपनी ही पार्टी में भीष्म पितामह के रोल में है और उनके बेटे ने पार्टी की कमान अपने हाथ में लेते ही सबसे पहले उसी कांग्रेस के साथ गठबंधन का ऐलान किया।

गठबंधन के तहत समाजवादी पार्टी 298 जबकि कांग्रेस 105 सीटों पर चुनाव लड़ी। गठबंधन को सिरे से खारिज करते हुए मुलायम सिंह यादव ने इसके लिए प्रचार करने से मना कर दिया था। तब मुलायम ने कहा था, 'कांग्रेस ने अपने स्वार्थ के लिए यह गठबंधन किया है और सपा इस गठबंधन के बिना भी चुनाव जीत सकती थी।' नतीजों के बाद मुलायम सिंह यादव की बात सच साबित हुई। 

उत्तर प्रदेश की जनता को राहुल और अखिलेश का दोस्ताना पसंद नहीं आया। दोनों ने यूपी में लगातार कई जनसभाएं की, रोड शो किए। सभाओं में अखिलेश को देखने औऱ सुनने पहुंची जनता अखिलेश के लिए मतदाता साबित नहीं हुई। यूपी की जनता अखिलेश की बजाए मोदी के वादों पर भरोसा करती दिखी।

हार कि जिम्मेदारी स्वीकारते हुए अखिलेश यादव ने कहा, 'हमारी सभा में भीड़ आई लेकिन हमें सीट नहीं मिले।' कांग्रेस के साथ गठबंधन को जारी रखने का ऐलान करते हुए अखिलेश ने मोदी पर तंज करते हुए कहा, 'लोगों को समझाने से नहीं बहकाने से वोट मिलता है।' 

पिछले विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को अकेले 224 जबकि कांग्रेस को 28 सीटें मिली थीं। 2017 में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन करीब 60 सीटों पर सिमटता नजर आ रहा है। इसके अलावा दोनों दलों की वोट हिस्सेदारी में भी गिरावट आई है।

पीएम मोदी ने गठबंधन को लेकर अखिलेश पर निशाना साधा, जिस पर जनता ने भी यकीन कर लिया। मोदी ने अखिलेश के 'काम बोलता है' के नारे को कानून व्यवस्था की खराब हालत से जोड़ते हुए 'कारनामा' करार दिया।

पीएम मोदी अखिलेश सरकार के खिलाफ कानून व्यवस्था के मुद्दे को भुनाने में सफल रहे। उत्तर प्रदेश में सपा के शासनकाल में कानून और व्यवस्था मुद्दा था, जिसे मोदी ने यह कहते हुए मजबूत बनाया कि सपा के कार्यकाल में 'पुलिस थाने पार्टी कार्यालय' में बदल गए हैं। 

अखिलेश यादव ने राहुल गांधी के साथ को दो युवाओं का गठबंधन करार दिया था लेकिन यूपी के लोगों ने मोदी-शाह की जोड़ी को प्राथमिकता दी। समाजवादी पार्टी को यकीन था मुजफ्फरनगर दंगों के बाद कांग्रेस के साथ आने से उसे मुस्लिम मतदाताओं का साथ मिलेगा, वहीं पिछले कई दशकों से यूपी में जमीन तलाश रही कांग्रेस को सपा गठबंधन से प्रदेश की सत्ता में वापसी की उम्मीद थी।

लेकिन कांग्रेस सपा के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर का अंदाजा लगाने में पूरी तरह विफल रही। वहीं मुलायम सिंह यादव के प्रचार नहीं किए जाने से सपा, मुस्लिम-यादव वोट बैंक को बनाए रखने में सफल नहीं हो सकी। दरअसल दोनों यह सोचकर साथ आए कि वह एक दूसरे का सहारा बनेंगे लेकिन नतीजों के बाद यह कहना उचित होगा अब वह एक दूसरे के लॉयबिलिटी साबित हुए। 

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Source : Deepak Singh Svaroci

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