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Uttar Pradesh Assembly Election 2022 : चुनावी मुद्दे, चेहरे, समीकरण- सब कुछ

कोरोना महामारी के बीच देश में सबसे ज्यादा निगाहें आकर्षित करने वाले उत्तर प्रदेश में जारी चुनाव प्रक्रियाओं के बीच हालात, प्रमुख मुद्दे, मुख्यमंत्री पद के चेहरे, समीकरण, चुनाव आयोग की तैयारी और प्रचार अभियान के बारे में जानते हैं.

Updated on: 09 Feb 2022, 02:22 PM

highlights

  • सभी 403 सीटों के लिए 10 फरवरी से 7 मार्च 2022 तक सात चरणों में चुनाव
  • यूपी विधानसभा चुनाव को लोकसभा चुनाव 2024 का सेमीफाइनल कहा जाता है
  • 18 मंडल और 75 जिलों वाले उत्तर प्रदेश में देश की सबसे बड़ी आबादी रहती है

नई दिल्ली:

उत्तर प्रदेश विधानसभा के सभी 403 सीटों के लिए 10 फरवरी से 7 मार्च 2022 तक सात चरणों में चुनाव होंगे. 2017 में चुने गए मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल 14 मई 2022 को समाप्त होगा. चुनाव आयोग ने इस साल पहली छमाही में देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा करते हुए बताया कि उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा यानी सात चरणों में चुनाव संपन्न करवाए जाएंगे. देश में साल 2022 में उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव को लोकसभा चुनाव 2024 का सेमीफाइनल बताया जाता है. राजनीतिक जगत में एक मशहूर कहावत है कि दिल्ली की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है. देश में सबसे ज्यादा लोकसभा सीट भी उत्तर प्रदेश में ही है.

कोरोना महामारी के बीच देश के सबसे ज्यादा निगाहें आकर्षित करने वाले राज्य उत्तर प्रदेश में जारी चुनाव प्रक्रियाओं के बीच स्थानीय हालात, प्रमुख राजनीतिक मुद्दे, मुख्यमंत्री पद के घोषित चेहरे, दलीय समीकरण, चुनाव आयोग की तैयारी और प्रचार अभियान के बारे में विस्तार से जानने की कोशिश करते हैं. 

कोरोना को लेकर तैयारी 

देश के मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा ने चुनाव की तारीखों की घोषणा से पहले बताया था कि कोरोना के चलते चुनाव कराना काफी चुनौतीपूर्ण है. जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे है वहां पर कोरोना महामारी और चुनाव से जुड़ी तैयारियों पूरा जायजा लिया गया है. आयोग ने राज्यों के पॉजिटिविटी रेट और वैक्सीनेशन की पूरी जानकारी भी ली थी. आयोग ने इसकी विस्तार से तैयारी की है. उन्होंने बताया कि इस बार 80 वर्ष से अधिक उम्र के वरिष्ठ नागरिक, दिव्यांग व्यक्ति और कोविड-19 पॉजिटिव व्यक्ति पोस्टल बैलेट से मतदान कर सकते हैं. फिजिकल रैली, रोड शो, पदयात्रा, साइकिल-बाइक रैली की इजाजत नहीं दी जाएगी.  

सात चरणों में चुनाव का पूरा कार्यक्रम 

राजनीतिक रूप से अहम उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में इस बार सात चरणों में मतदान संपन्न होगा. इसकी शुरुआत 10 फरवरी को राज्य के पश्चिमी हिस्से के 11 जिलों की 58 सीटों पर मतदान के साथ होगी. दूसरे चरण में 55 सीटों पर मतदान होगा. 20 फरवरी को तीसरे चरण में 59 सीटों पर, 23 फरवरी को चौथे चरण में 60 सीटों पर, 27 फरवरी को पांचवें चरण में 60 सीटों पर, तीन मार्च को छठे चरण में 57 सीटों पर और सात मार्च को सातवें चरण में 54 सीटों पर मतदान होगा. मतों की गिनती 10 मार्च को की जाएगी. 

सात चरणों में होने वाले चुनावों के लिए पहले चरण की अधिसूचना 14 जनवरी को जारी की जाएगी और नामांकन 21 जनवरी तक दाखिल किया जा सकेगा. नामांकन की जांच 24 जनवरी तक की जाएगी और इसे 27 जनवरी तक वापस लिया जा सकेगा. मतदान 10 जनवरी को होगा. 

दूसरे चरण के लिए अधिसूचना 21 जनवरी को जारी की जाएगी और नामांकन 28 जनवरी तक दाखिल किया जा सकेगा. नामांकन की जांच 29 जनवरी तक की जाएगी और नाम वापसी 31 जनवरी तक हो सकेगी. मतदान 14 जनवरी को होगा. 

तीसरे चरण के लिए अधिसूचना 25 जनवरी को जारी की जाएगी और नामांकन एक फरवरी तक दाखिल किया जा सकेगा. नामांकन की जांच दो फरवरी तक की जाएगी और इसे वापस लेने की आखिरी तारीख चार फरवरी होगी. मतदान 20 फरवरी को होगा. 

चौथे चरण के लिए अधिसूचना 27 जनवरी को जारी की जाएगी और नामांकन तीन फरवरी तक दाखिल होंगे. नामांकनों की जांच चार फरवरी तक की जाएगी और इसे सात फरवरी तक वापस लिया जा सकेगा. मतदान 23 फरवरी को होगा. 

पांचवें चरण के लिए अधिसूचना एक फरवरी को जारी की जाएगी और नामांकन आठ फरवरी तक दाखिल हो सकेंगे नामांकन की जांच नौ फरवरी तक की जाएगी और नाम वापसी 11 फरवरी तक की जा सकेगी. मतदान 27 फरवरी को होगा. 

छठे चरण के लिए अधिसूचना चार फरवरी को जारी की जाएगी और नामांकन 11 फरवरी तक दाखिल हो सकेंगे. नामांकन की जांच 14 फरवरी तक की जाएगी और नाम वापसी की आखिरी तारीख 16 फरवरी होगी. मतदान तीन मार्च को होगा. 

सातवें और अंतिम चरण चरण के लिए अधिसूचना 10 फरवरी को जारी की जाएगी और नामांकन 17 फरवरी तक दाखिल होंगे. नामांकन की जांच 18 फरवरी तक की जाएगी और नाम वापसी की तिथि 21 फरवरी होगी. मतदान सात मार्च को होगा.

चुनाव के प्रमुख मुद्दे

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में सबसे बड़े मुद्दे के तौर पर योगी आदित्यनाथ का कार्यकाल ही माना जा रहा है. अयोध्या में श्रीरामजन्मभूमि मंदिर का निर्माण, वाराणसी में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का बनना भी बड़ा मुद्दा है. वहीं चुनाव के दौरान मथुरा में श्रीकृष्णजन्मभूमि पर भी चर्चा जोरों पर है. इसके अलावा विकास कार्यों को जैसे मेट्रो, एक्सप्रेसवे वगैरह को लेकर पक्ष-विपक्ष में क्रेडिट की होड़ भी एक बड़ा मुद्दा बन गया है. कोरोना महामारी में मैनेजमेंट, किसान आंदोलन, पुलिस कार्रवाई जैसे मुद्दों पर भी राजनीतिक बयानबाजी जोरों पर है. देर-सबेर जातीय और धार्मिक समीकरणों को लेकर भी चुनावी मुद्दा उभरने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता.

मुख्यमंत्री पद के दावेदार

उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ बीजेपी की ओर से मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ही इस बार भी घोषित दावेदार है. वहीं विपक्ष में समाजवादी पार्टी और उनकी सहयोगी पार्टियों की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ही सीएम फेस हैं. बीएसपी की ओर मायावती ही मुख्यमंत्री पद की एकमात्र घोषित दावेदार हैं. इसके अलावा फिलहाल मौजूदा दौर में और कोई चेहरा सामने नहीं आया है.

प्रचार के बड़े चेहरे

2014 के लोकसभा चुनाव से ही उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार में बीजेपी की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रचार अभियान के सबसे बड़े चेहरे हैं. काशी से सांसद पीएम मोदी के बाद पार्टी के पूर्व अध्यक्ष और यूपी के प्रभारी रह चुके केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रचार के बड़े चेहरे हैं. सपा की ओर से अखिलेश यादव, बीएसपी की ओर से मायावती, कांग्रेस की ओर से प्रियंका गांधी और राहुल गांधी, आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल समेत तमाम पार्टियों के प्रमुख ही उसके चुनावी चेहरे भी है.

सियासी समीकरण

पहले चरण के लिए उम्मीदवारों के नाम का ऐलान और दल-बदल के बाद कई सियासी समीकरणों में बदलाव देखा जा रहा है. गठबंधन में कुछ बदलाव सामने आए हैं. बीजेपी का साथ छोड़कर स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान जैसे मंत्री सपा में गए. वहीं राजभर की पार्टी सुभासपा पहले ही सपा से जुड़ चुकी है. ओवैसी की पार्टी मुस्लिम सीटों पर उम्मीवार उतार रही हैं तो आम आदमी पार्टी भी अकेले चुनाव लड़ रही है. इस तरह से विपक्षी पार्टियों की एकता नहीं बन पाई है. सपा ने छोटे-छोटे दलों से गठबंधन किया है. बीएसपी और कांग्रेस भी लगभग अकेले ही चुनाव मैदान में है.

क्षेत्रीय संतुलन

18 मंडल और 75 जिलों वाले उत्तर प्रदेश में देश की सबसे बड़ी आबादी निवास करती है. पश्चिमी यूपी जाटलैंड, हरित प्रदेश मध्य यूपी में बुंदेलखंड, अवध के अलावा पूर्वांचल जैसे कई क्षेत्रीय विविधताओं वाले राज्य में कई बार बंटवारे की बात भी राजनीति में जोर पकड़ती रहती है. तमाम तरह की भिन्नताओं के बावजूद उत्तराखंड के अलग होने के बाद इस ओर कोई बड़ी कवायद होती नहीं दिखी. मगर राजनीतिक वर्चस्व के लिए इन क्षेत्रों में संतुलन सबसे बड़ी जरूरत बताई जाती है. अलग-अलग सामाजिक वोट बैंक का इन अलग-अलग क्षेत्रों में प्रभाव है. जैसे जाट और दलितों का खासकर पश्चिमी यूपी में ज्यादा असर है तो पूर्वांचल में सवर्णों की ताकत बड़ी बताई जाती है. मध्य और सीमावर्ती यूपी में मुसलमानों के वोट को निर्णायक बताया जाता है. अलग-अलग क्षेत्रों के मुद्दे भी भिन्न होते हैं. हरित प्रदेश में गन्ना किसानों को साधना चुनौती मानी जाती है.  

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धर्म और जाति का गणित

उत्तर प्रदेश की विधानसभा में अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए 86 सीटें आरक्षित हैं. इनमें से 84 सीटें एससी और 2 सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं. प्रदेश में जातीय समीकरणों का जो आंकड़ा बताया जाता है उसमें पहले नंबर पर पिछड़ा वर्ग का है. दूसरे नंबर पर दलित और तीसरे पर सवर्ण और चौथे नंबर पर मुस्लिमों का होना बताया जाता है. आंकड़े के मुताबिक ओबीसी वोटर्स की संख्या सबसे अधिक 42 से 45 फीसदी बताई जा रही है. इसके बाद दलित वोटरों की संख्या करीब 21 से 22 फीसदी है. वहीं सवर्ण तबके की अनुमानित संख्या 18 से 20 फीसदी है. इसके साथ ही मुसलमान वोटरों की संख्या करीब 16 से 18 फीसदी बताई जाती है. हाल के चुनावों की तरह वोटों के लिहाज से इस बार भी गैर-यादव ओबीसी वोट और गैर-जाटव दलित वोटों को इकट्ठा करने की मारामारी इस बार भी सामने आ सकती है.

धार्मिक नजरिए से देखें तो लगभग 20 करोड़ की आबादी वाले उत्तर प्रदेश में साल 2011 की जनगणना के मुताबिक कुल जनसंख्या में हिंदू 79.8 फीसदी, मुसलमान 19.3 फीसदी है. यानी यूपी की कुल आबादी में हिंदू और मुस्लिम मिलाकर 99 फीसदी है. बाकी महज एक फीसदी आबादी में सिख 0.3 फीसदी, ईसाई 0.2 फीसदी, जैन और बौद्ध 0.1-0.1 फीसदी और बाकी धार्मिक समुदाय 0.3 फीसदी दर्ज किए गए थे. 

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विधानसभा चुनाव 2017 का हाल

2017 के विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों में से भारतीय जनता पार्टी ने अकेले 312 और उसके सहयोगियों ने 13 सीटें जीती थीं. प्रमुख विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी को सिर्फ 47 सीटों पर जीत मिली थी. बहुजन समाज पार्टी को 19 और कांग्रेस को सात सीटों पर जीत मिली थीं. बीजेपी की सहयोगी अपना दल (एस) को नौ और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) को चार सीटों पर जीत मिल थी. वहीं राष्‍ट्रीय लोकदल और निषाद पार्टी ने एक-एक सीट पर कब्जा जमाया था. साल 2014 और 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में भी उत्तर प्रदेश में बीजेपी को भारी जीत मिली थी.