यूपी विधानसभा चुनावः सरकार के गठन में अजित सिंह की भूमिका कितनी होगी अहम

अगर पार्टी ज्यादा सीट जितने में कामयाब रही और सरकार बनाने में भूमिका निभाई तो अजित सिंह मंत्रालय को लेकर काफी मोल-तोल कर सकते हैं।

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abhiranjan kumar
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यूपी विधानसभा चुनावः सरकार के गठन में अजित सिंह की भूमिका कितनी होगी अहम

यूपी विधानसभा चुनावः सरकार के गठन में अजित सिंह की भूमिका कितनी होगी अहम

पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की विरासत को संभाल रहे उनके पुत्र और राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष अजित सिंह को पश्चिमी यूपी का कद्दावर नेता माना जाता है। आरएलडी के नेता अजित सिंह का गन्ना बेल्ट' के नाम से मशहूर इस क्षेत्र की जाट बहुल सीटों पर खासा प्रभाव भी माना जाता है।

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ऐसा माना जा रहा है कि अगर पार्टी ज्यादा सीट जीतने में कामयाब रही और सरकार बनाने में भूमिका निभाई तो अजित सिंह मंत्रालय को लेकर काफी मोल-तोल कर सकते हैं।

अजित सिंह भारतीय राजनीति के ऐसे पुरोधा है जो लगभग हर सरकार में मंत्री रहे हैं. वे कपड़ों की तरह सियासी साझेदारी बदलते रहे हैं। 1989 के बाद वे बागपत से लगातार सांसद रहे हैं। साल 1999 में वे पहली बार चुनाव हारे। जिसके बाद एक बार फिर उन्हें 2014 में पराजय का मुंह देखना पड़ा।

2014 लोकसभा चुनाव में वे मुंबई के पुलिस कमिश्नर रहे सत्यपाल सिंह से हार गए। जिसका कारण बताया गया मुजफ्फरनगर दंगों के बाद जाटों का बीजेपी के पक्ष में लामबंद हो जाना।

ऐसा माना जाता है कि पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चौधरी साहब की ही तूती बोलती थी। यानी राज्य की 150 सीटों पर उनका प्रभाव था। वे किसानों, खासतौर पर जाटों के नेता माने जाते थे।

2012 विधानसभा चुनाव में नौ सीट पर जीत दर्ज करने वाली आरएलडी इस चुनाव में सरकार बनाने में कितनी अहम भूमिका निभा पाएगी ये तो अभी तय नहीं है लेकिन पहले चरण में होने वाले 73 सीटों के लिए मतदान के परिणाम के बाद ही तय हो पाएगा कि अजित सिंह की भूमिका यूपी सरकार में होगी या नहीं।

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2017 के उत्तर प्रदेश चुनाव के दौरान ऐसा लगने लगा था कि आरएलडी समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ सकती है। लेकिन सीटों के बंटवारे पर मतभेद के कारण यह गठबंधन मूर्त रूप नहीं ले पाया।

पार्टी ने 120 से ज्यादा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। लेकिन 11 मार्च को परिणाम आने के बाद ही पता चल पाएगा कि पार्टी के कितने उम्मीदवार जीत दर्ज कर पाते हैं।

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो अगर सपा-कांग्रेस गठबंधन बहुमत से कुछ दूर रह जाती है और आरएलडी की भूमिका सरकार बनाने में होती है तो अजित सिंह मंत्रिमंडल में अपने नेताओं के लिए कई अहम मंत्रालय लेना चाहेंगे।

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विश्लेषकों की मानें तो राज्य में अगर त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति बनती है और अजित सिंह अहम मंत्रालय लेने में कामयाब हो जाते हैं तो सरकार में रहते हुए एक बार फिर से वेस्टर्न यूपी में पूरी तरह से पकड़ बनाने की कोशिश करेंगें।

2014 के लोकसभा चुनावों में पार्टी का प्रदर्शन बहुत खराब रहा था। जयंत चौघरी और अजित सिंह खुद चुनाव हार गए थे। पार्टी इन चुनावों में खाता भी नहीं खोल पाई थी। बताया जाता है कि इसका कारण 2013 के मुजफ्फरनगर दंगे हैं। दो संप्रदायों के बीच इस दंगे के कारण जाट-मुस्लिम वोट बैंक आरएलडी के खाते से खिसक गया था।

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अजित सिंह इस बार फिर से अपने खोए सियासी रसूख को वापस पाने की कोशिशों में हैं। इस कारण चुनावी मैदान में ताबड़तोड़ रैली कर वोटरों को अपने पक्ष में रिझाने की कोशिश की। आरएलडी नेता के अनुसार इस बार उनकी रैलियों में भारी संख्या में भीड़ देखी जा रही है।

लेकिन भविष्य में चुनाव बाद राज्य सरकार के गठन में अजित सिंह और उनकी पार्टी की कितनी अहम भूमिका होती है यह पार्टी की सीटों पर भी निर्भर करेगा। । लेकिन इतना तो तय है कि अगर सरकार बनाने में आरएलडी की भूमिका होगी तो उसका कीमत अजित सिंह वसूलने की कोशिश ज़रूर करेंगे।

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Source : Abhiranjan Kumar

Ajit singh RLD
      
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