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Indian Students (AI)
अंडोरा, अंगोला, एस्तोनिया, यमन, युगांडा, टोगो, सीरिया सूडान, रवांडा! मुमकिन है मुल्क की बड़ी आबादी ने इनमें से कुछ देशों का नाम सुना ही न हो! सुना भी हो तो बदनाम या बर्बाद मुल्क के तौर पर लेकिन ये देश भी दुनिया के सौ से ज्यादा उन देशों में शामिल हैं जहाँ इंडियन स्टूडेंट पढ़ने जाते हैं. बीते 3 साल में विदेश से भारत पढ़ने आये डेढ़ लाख से कम स्टूडेंट्स, जबकि इन्हीं 3 सालों में भारत छोड़कर विदेश पढ़ने गए 24 लाख से ज्यादा इंडियंस.
यानी करीब 15 गुना ज्यादा. तब जबकि भारत में सरकारें बेहतर एजुकेशन इंफ्रास्ट्रचर का दावा करती हों. फिर भी तालीम के लिए मुल्क छोड़ने की वजह क्या हो सकती हैं? स्टूडेंट्स के पास अब्रॉड पढ़ने के लिए पर्याप्त पैसा होना, इंडिया में सीटें कम होना, कई देशो के मुकाबले इंडिया में हायर एजुकेशन का महंगा होना या इंडिया में क्वालिटी एजुकेशन न होना?
3 साल में 800 से ज्यादा बच्चे पाकिस्तान पढ़ने गए?
बेशक बीतते वक़्त के साथ मुल्क में अमीरों की तादाद बढ़ी है! वहीं करीब 1 लाख मेडिकल सीट के लिए 20 लाख से ज्यादा बच्चे अप्लाई करते हैं. तो इंजीनियरिंग की सरकारी 50-60 हजार सीट के लिए ऍप्लिकैंट्स होते हैं 13 लाख से ज्यादा! स्किल डेफिसिट से जुड़ी ढेरों रिपोर्ट्स बताती हैं कि हमारी यूनिवर्सिटीज में जो पढ़ाया जा रहा है वो नौकरी दिलाने लायक नहीं.
आज़ादी के 75 साल बाद तक देश की एक भी यूनिवर्सिटी ग्लोबली टॉप 100 तक में जगह नहीं बना सकी हैं. तो पढ़ाई के लिए देश छोड़ना फाइनेंसियल स्ट्रांग होने की निशानी है या सरकारी पालिसी फेलियर की? ये सारे सवाल उस देश में हैं, जहां दुनिया की पहली रेजिडेंशियल यूनिवर्सिटी नालंदा थी, जिसमें 800 सालों तक चीन, कोरिया, जापान समेत दुनिया भर के 10 हजार से ज्यादा स्टूडेंट्स पढ़ने आते रहे थे! वैसे सवाल ये भी कि इन 3 साल में 800 से ज्यादा बच्चे पाकिस्तान भला क्या पढ़ने गए?
(ये सारे आंकड़ें सरकारी हैं).
(अनुराग दीक्षित, न्यूज़ नेशन में सीनियर एडिटर और एंकर के रूप में कार्यरत हैं. 20 वर्षों के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में अनुभव के साथ देश के प्रतिष्ठित हिंदी अख़बारों में नियमित लिखते रहे हैं.)