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संसदीय समिति के कहने पर भी डीयू में नहीं मिला प्रिंसिपल पद पर आरक्षण

पिछले छह साल से संसदीय समिति की रिपोर्ट पर धूल पड़ रही है. विश्वविद्यालय द्वारा उस पर कोई कार्यवाही नहीं की.

Updated on: 03 Jul 2021, 02:58 PM

highlights

  • विशेष भर्ती अभियान के तहत एससी, एसटी के अभ्यर्थियों से इन पदों को भरा जाए
  • दिल्ली सरकार के कॉलेजों में 20 से अधिक प्रिंसिपलों के पदों पर स्थायी नियुक्ति होनी

नई दिल्ली:

दिल्ली यूनिवर्सिटी एससी, एसटी ओबीसी टीचर्स फोरम ने राष्ट्रीय अनुसूचित जाति, जनजाति आयोग, ओबीसी कमीशन, एससी, एसटी के कल्याणार्थ संसदीय समिति को एक पत्र लिखा है. अपने पत्र में टीचर्स फोरम के चेयरमैन डॉ कैलास प्रकाश सिंह यादव ने कहा कि समिति, दिल्ली विश्वविद्यालय में छह साल पहले प्रोफेसर के पदों पर आरक्षण लागू कराने और प्रिंसिपल के पदों पर आरक्षण लागू करने का आश्वासन देकर गयी थी. हालांकि यह आरक्षण अभी भी लागू नहीं किया गया है. इस विषय पर शिक्षा मंत्रालय, यूजीसी व डीओपीटी के अधिकारियों की टीम के साथ 9 जुलाई 2015 को दिल्ली विश्वविद्यालय में मीटिंग भी हुई थी.

डॉ यादव का कहना है कि पिछले छह साल से संसदीय समिति की रिपोर्ट पर धूल पड़ रही है. विश्वविद्यालय द्वारा उस पर कोई कार्यवाही नहीं करने पर उन्होंने गहरा रोष व्यक्त किया है. उन्होंने इसकी जांच समिति के उच्चाधिकारियों से कराने की मांग की है. डॉ यादव ने बताया है कि संसदीय समिति ने दिल्ली विश्वविद्यालय में पाया है कि यहां प्रोफेसर के पदों में आरक्षण नहीं दिया जा रहा है और न ही प्रिंसिपल के पदों में किसी तरह का आरक्षण है. साथ ही पोस्ट बेस रोस्टर को भी यूजीसी व डीओपीटी के निर्देशानुसार लागू नहीं किया जा रहा है. समिति ने इस पर गहरी चिंता जताई थी.

उनका कहना है कि प्रिंसिपल के पदों को क्लब करके रोस्टर रजिस्टर तैयार कर इन पदों पर आरक्षण लागू करते हुए पदों को विज्ञापित किया जाए. विशेष भर्ती अभियान के तहत एससी, एसटी के अभ्यर्थियों से इन पदों को भरा जाए, लेकिन फोरम ने खेद व्यक्त करते हुए कहा है कि पिछले छह साल से संसदीय समिति की रिपोर्ट को आज तक दिल्ली विश्वविद्यालय ने लागू नहीं किया है. उन्होने कहा कि कॉलेजों में प्रिंसिपल के पदों पर आरक्षण देने के लिए एससी, एसटी की कल्याणार्थ संसदीय समिति ने 9 जुलाई 2015 को और 18 दिसम्बर 2015 को दिल्ली विश्वविद्यालय में अपनी टीम के साथ आई थी. समिति ने एक रिपोर्ट लोकसभा में प्रस्तुत की थी. इसमें कहा गया था कि दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेजों के प्रिंसिपल पदों को क्लब करके रोस्टर रजिस्टर बनाया जाये.

उन्होंने बताया है कि दिल्ली सरकार के कॉलेजों में 20 से अधिक प्रिंसिपलों के पदों पर स्थायी नियुक्ति होनी है. इन पदों पर ऑफिसिएटिंग प्रिंसिपल लगे हुए हैं. पांच साल से अधिक का कार्यकाल पूरा कर चुके प्रिंसिपलों को हटाकर आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों की नियुक्ति किया जाए.