जहां खुद है सरकारी टीचर, उसी स्कूल में अपनी तीनों बेटियों का कराया एडमिशन, हर तरफ हो रहा नाम

अच्छी शिक्षा की वजह से लोग प्राइवेट स्कूल में भेजते हैं लेकिन आज भी कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इस इमेज से अलग खुद को रखते हैं. प्रयागराज की एक टीचर ने इस भ्रम को पूरी तरह से नकार दिया है.

अच्छी शिक्षा की वजह से लोग प्राइवेट स्कूल में भेजते हैं लेकिन आज भी कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इस इमेज से अलग खुद को रखते हैं. प्रयागराज की एक टीचर ने इस भ्रम को पूरी तरह से नकार दिया है.

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Priya Gupta
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सरकारी स्कूलों के शिक्षकों के बारे में अक्सर एक नेगेटिव इमेज बन जाती है. अक्सर ऐसा देखा भी जाता है कि सरकारी स्कूल में पढ़ाई नहीं होती वहां के टीचरों को लेकर एक अजीब से इमेज बनी हुई है, इस वजह से लोग प्राइवेट स्कूल में भेजते हैं लेकिन आज भी कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इस इमेज से अलग खुद को रखते हैं. प्रयागराज की एक शिक्षिका ने इस भ्रम को पूरी तरह से नकार दिया है और यह साबित कर दिया है कि सरकारी स्कूलों में भी उच्च गुणवत्ता की शिक्षा दी जा सकती है.

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अपनी बेटी के अपने सरकारी स्कूल में एडमिशन कराया

आज शिक्षक दिवस के अवसर पर, जब पूरे देश में शिक्षकों को उनकी मेहनत और योगदान के लिए सम्मानित किया जा रहा है, प्रयागराज की इस टीचर ने इस दिन को खास बना दिया. हम बात कर रहे हैं श्रीमती वंदना मौर्या की, जो यूपी के प्रयागराज जिले के बहरिया ब्लॉक के प्राथमिक विद्यालय भवानीगढ़ में सहायक अध्यापक के पद पर तैनात हैं. वंदना मौर्या की कहानी प्रेरणादायक है. उन्होंने अपने सरकारी स्कूल में ही अपनी तीन बेटियों का एडमिशन कराया है.

 जबकि आज की दुनिया में लोग अपने बच्चों को अंग्रेजी मीडियम और महंगे स्कूलों में भेजना पसंद करते हैं, वंदना ने अपने बच्चों को अपने ही स्कूल में पढ़ाकर शिक्षा के प्रति अपनी सच्ची प्रतिबद्धता को साबित किया है. उनकी बड़ी बेटी मौर्या कक्षा 8 में है, छोटी बेटी व्यंजना मौर्या कक्षा 7 में पढ़ रही है और वंदना अपनी सबसे छोटी बेटी उपाधि का कक्षा 1 में एडमिशन कराने वाली हैं.


रिपोर्ट के मुताबिक, वंदना मौर्या का मानना है कि यदि शिक्षक अपने बच्चों को बेसिक स्तर पर अपने ही स्कूल में पढ़ाते हैं, तो वे उन्हें सही संस्कार दे सकते हैं और दूसरों के लिए भी प्रेरणा बन सकते हैं. वह अपनी क्लास के बच्चों को पजल, खेल, ब्लॉक्स और अलग-अलग एक्टिविटिज के जरिए रोचक तरीके से पढ़ाती हैं. उनका यह दृष्टिकोण न केवल शिक्षा को मजेदार बनाता है बल्कि बच्चों के बीच सीखने के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण भी विकसित करता है. 

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