कौन थे 'मैसूर के शेर' टीपू सुल्तान, जानिए उनके जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें
टीपू सुल्तान की आकृति में अंग्रेजों को नेपोलियन की तस्वीर दिखाई पड़ती थी।
highlights
- टीपू सुल्तान को मैसूर का शेर कहा जाता है.
- टीपू सुल्तान ने अंग्रजों को भगाने का किया था प्रयास.
- 4 मई सन् 1799 को राजधानी श्रीरंगापट्नम की रक्षा करते हुए युद्ध में हुए थे वीर गति को प्राप्त.
नई दिल्ली:
18वीं सदी में टीपू सुल्तान मैसूर के शासक रहे थे. टीपू सुल्तान का जन्म 10 नवंबर 1750 को वर्तमान कर्नाटक में स्थित बेंगलुरू के निकट कोलार जिले के देवनहल्ली में हुआ था हुआ था. उनका पूरा नाम सुल्तान फतेह अली खान शाहाब था. उनके पिता का नाम हैदर अली और माता का नाम फ़क़रुन्निसा था. उनके पिता हैदर अली मैसूर साम्राज्य के सैनापति थे जो अपनी ताकत से 1761 में मैसूर साम्राज्य के शासक बने. टीपू को मैसूर के शेर के रूप में जाना जाता है.
18 वीं शताब्दी के अन्तिम चरण में टीपू के पिता हैदर अली का स्वर्गवास हो गया और उनकी जगह पर टीपू सुल्तान को मैसूर की गद्दी मिली. टीपू सुल्तान के आगमन के साथ ही अंग्रेजों कि साम्राज्यवादी नीति पर जबरदस्त आधात पहुँचा जहाँ एक ओर कम्पनी सरकार अपने नवजात ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार के लिए प्रयत्नशील थी तो दूसरी ओर टीपू अपनी वीरता एवं कुटनीतिज्ञता के बल पर मैसूर कि सुरक्षा करते हुए अपनी मातृभूमि को अंग्रजों से दूर रखे हुए थे. 18 वी शताब्दी के उत्तरार्ध में टीपू ने अंग्रेजों को भारत से निकालने का प्रयास किया.
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हालांकि, वर्साइल की संधि पर हस्ताक्षर करने के बाद से फ्रांसीसियों ने भी टीपू का साथ छोड़ दिया और यह संयुक्त सैन्य बल टीपू के लिए बहुत अहम साबित हुआ और इस युद्ध में वह श्रीरंगापट्नम की राजधानी में पराजित हो गये. इस प्रकार टीपू को सन् 1792 की एक संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य होना पड़ा और उनके साम्राज्य के आधे हिस्से को भयंकर युद्ध में हुई क्षतिपूर्ति के लिए जब्त कर लिया था.
अपने शत्रुओं को पराजित करने के लिए युद्ध में रॉकेट तोपखाने की एक पुरानी और सफल सैन्य रणनीति के साथ एक बेहतर सेना का गठन किया. अंततः टीपू सुल्तान बड़ी वीरता के साथ लड़ते हुए, 4 मई सन् 1799 को अपनी राजधानी श्रीरंगापट्नम की रक्षा करते हुए युद्ध में वीर गति को प्राप्त हो गये.
ऐसी थी उनकी राजनीति
अपने पिता की तरह ही वह भी अत्याधिक महत्वांकाक्षी कुशल सेनापति और चतुर कूटनीतिज्ञ थे यही कारण था कि वह हमेशा अपने पिता की पराजय का बदला अंग्रेजों से लेना चाहते थे अंग्रेज उनसे काफी भयभीत रहते थे. टीपू सुल्तान की आकृति में अंग्रेजों को नेपोलियन की तस्वीर दिखाई पड़ती थी. वह अनेक भाषाओं का ज्ञाता थे अपने पिता के समय में ही उन्होंने प्रशासनिक सैनिक तथा युद्ध विधा लेनी प्रारंभ कर दी थी परन्तु उनका सबसे बड़ा अवगुण उनके पराजय का कारण बना वह फ्रांसिसियों पर बहुत अधिक भरोसा करते थे, वह अपने पिता के समान ही निरंकुश और स्वंत्रताचारी थे लेकिन फिर भी प्रजा के तकलीफों का उनहे काफी ध्यान रहता था. अत: उनके शासन काल में किसान प्रसन्न थे. वह कट्टर व धर्मान्त मुस्लमान थे वह हिन्दु, मुस्लमानों को एक नजर से देखते थे.
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टीपू और उनके पिता हैदर अली ने सन् 1766 में हुए प्रथम मैसूर युद्ध में अंग्रेजों को हरा दिया और सन् 1782 के द्वितीय मैसूर युद्ध में भी अंग्रेजों को हराने में सफल हो गए और इसके साथ ही मैंगलोर की संधि कर ली थी. अपने शत्रुओं को पराजित करने के लिए युद्ध में रॉकेट तोपखाने की एक पुरानी और सफल सैन्य रणनीति के साथ एक बेहतर सेना का गठन किया. अंततः टीपू सुल्तान बड़ी वीरता के साथ लड़ते हुए, 4 मई सन् 1799 को अपनी राजधानी श्रीरंगापट्नम की रक्षा करते हुए युद्ध में वीर गति को प्राप्त हो गये.
टीपू का साम्राज्य
श्रीरंगपट्टनम टीपू की राजधानी थी और यहां जगह-जगह टीपू के युग के महल, इमारतें और खंडहर आज भी नजर आती हैं. टीपू के मक़बरे और महलों को देखने के लिए हजारों की संख्या में लोग श्रीरंगपट्टनम जाते हैं. टीपू के साम्राज्य में हिंदू बहुमत में थे. टीपू सुल्तान धार्मिक सहिष्णुता और आज़ाद ख़्याल के लिए भी काफी जाना जाता है. इतिहास की मानें तो टीपू सुल्तान ने श्रीरंगपट्टनम, मैसूर और अपने राज्य के कई अन्य स्थानों में कई बड़े मंदिर बनाए, और मंदिरों के लिए ज़मीन दी.
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