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Birth Anniversary: जानें देश की महिलाओं में शिक्षा का अलख जगाने वाली सावित्रीबाई फुले के बारे में

समाज की महिलाओं के अंदर शिक्षा की मशाल जगाने वाली सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले की आज जयंती हैं, वो भारत की पहली महिला शिक्षिका, समाज सुधारिका और मराठी कवयित्री थीं.

Updated on: 03 Jan 2020, 09:38 AM

नई दिल्ली:

समाज की महिलाओं के अंदर शिक्षा की मशाल जगाने वाली सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले की आज जयंती हैं, वो भारत की पहली महिला शिक्षिका, समाज सुधारिका और मराठी कवयित्री थीं. सावित्रीबाई ने अपने पति के साथ मिलकर स्त्री अधिकारों एवं शिक्षा के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण कार्य किए थे. वहीं बता दें कि उन्हें आधुनिक मराठी काव्य का अग्रदूत माना जाता है इसके साथ उन्होंने 1852 में लड़कियों के लिए एक स्कूल की भी स्थापना की थी. उनका जन्म 3 जनवरी 1831 को हुआ था और उनके पिता का नाम खन्दोजी नेवसे और माता का नाम लक्ष्मी था. सावित्रीबाई फुले का विवाह 1840 में ज्योतिबा फुले से हुआ था.

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महिलाओं के लिए किया था तमाम काम

सावित्रीबाई फुले भारत के पहले बालिका विद्यालय की पहली प्रिंसिपल और पहले किसान स्कूल की संस्थापक थीं. महात्मा ज्योतिबा को महाराष्ट्र और भारत में सामाजिक सुधार आंदोलन में एक सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में माना जाता है. उनको महिलाओं और दलित जातियों को शिक्षित करने के प्रयासों के लिए जाना जाता है. ज्योतिराव, जो बाद में ज्योतिबा के नाम से जाने गए सावित्रीबाई के संरक्षक, गुरु और समर्थक थे.

सावित्रीबाई ने अपने जीवन को एक मिशन की तरह से जीया जिसका उद्देश्य था विधवा विवाह करवाना, छुआछूत मिटाना, महिलाओं की मुक्ति और दलित महिलाओं को शिक्षित बनाना. वो एक कवियत्री भी थीं उन्हें मराठी की आदिकवियत्री के रूप में भी जाना जाता था.

जब रास्ते में लोग उनपर फेंकते थे गोबर

जब वो स्कूलों में पढ़ाने जाती थीं, तो लोग रास्ते में उन पर कीचड़ और गोबर फेंका करते थे, इसलिए सावित्रीबाई अपने थैले में दूसरी साड़ी लेकर चलती थी और स्कूल में बदल लिया करती थीं. सन 1854 में उनकी पहली पुस्तक 'काव्य फुले' प्रकाशित हुई थी. इसके अलावा सावित्रीबाई ने कई कविताओं और भाषणों से वंचित समाज को जगाया, लेकिन अभी भी उनकी कहानी देश की 70 प्रतिशत से ज़्यादा आबादी से दूर है.

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24 सितंबर 1873 को ज्योतिराव फुले ने 'सत्यशोधक समाज' की स्थापना की, जो दहेज मुक्त और बिना पंडित पुजारियों के विवाह संपन्न कराती थी. सावित्रीबाई इस संस्था की एक सक्रिय कार्यकर्ता बनी, बाद में सावित्रीबाई ने अपने दत्तक पुत्र यशवंत का इसी संस्था के तहत पहला अंतरजातीय विवाह करवाया.

इस साल मिला सम्मान

भारतीय डाक ने 10 मार्च 1998 को सावित्रीबाई के सम्मान के रूप में डाक टिकट जारी किया. साल 2015 में पुणे विश्वविद्यालय का नाम सावित्रीबाई फुले विश्वविद्यालय किया गया. इसी साल 3 जनवरी 2017 को गूगल ने सावित्रीबाई फुले के 186वीं जयंती पर अपना 'गूगल डूडल' बनाया.

सन 1897 में ली आखिरी सांस

28 नवंबर 1890 को अपने पति ज्योतिबा फुले के मरने के बाद, सावित्रीबाई लगातार उनके अधूरे समाज सुधारक कार्यों में लगी रहीं. 1896 में पुणे में आए भीषण अकाल में इस क्रांतिकारी महिला ने पीड़ितों की काफी सहायता की.

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इसके साल भर बाद ही पूरा पुणे प्लेग की चपेट में आ गया, जिसमें सैकड़ों बच्चे मर रहे थे. सावित्रीबाई ने बेटे यशवंत को बुलाकर एक हॉस्पिटल खुलवाया, जिसमें वह ख़ुद दिन- रात मरीजों की देखभाल करने लग गई. आख़िरकार 10 मार्च 1897 को सावित्रीबाई ख़ुद इस संक्रामक बीमारी की चपेट में आकर दुनिया को अलविदा कह गई.