Birth Anniversary: 1971 के हीरो सैम मानेकशॉ जिनके एक इशारे पर पाक के हुए थे दो टुकड़े
मानेकशॉ को सन् 1971 में पाकिस्तान पर मिली जीत का मुख्य नायक माना जाता है. 1971 के युद्ध के बाद ही बांग्लादेश का जन्म हुआ था और वो पाकिस्तान से अलग होकर एक स्वतंत्र देश बना था.
नई दिल्ली:
सैम होर्मूसजी फ्रेमजी जमशेदजी मानेकशॉ की 107वीं जयंती है, उनका जन्म 3 अप्रैल 1914 को अमृतसर में एक पारसी परिवार में हुआ था. उनका परिवार गुजरात के शहर वलसाड से पंजाब आया था. सैम मॉनेकशॉ (Sam Manekshaw) भारतीय सेना के अध्यक्ष थे, जिनके नेतृत्व में भारत नें 1971 (भारत-पाकिस्तान युद्ध) की लड़ाई जीतीं थी. सैम मानेकशॉ को सन् 1971 में पाकिस्तान पर मिली जीत का मुख्य नायक माना जाता है. 1971 के युद्ध के बाद ही बांग्लादेश का जन्म हुआ था और वो पाकिस्तान से अलग होकर एक स्वतंत्र देश बना था.
और पढ़ें: Vijay Diwas : 13 दिनों में पाकिस्तान ने टेक दिया था घुटना, बांग्लादेश बना था आजाद देश
बताया जाता है कि 1971 के युद्ध के दौरान फील्ड मार्शन ने पाकिस्तानी सैनिकों को कड़ी चेतावनी दी थी. उन्होंने पाक से कहा था कि या तो आप सरेंडर कर दीजिए नहीं तो हम आपको पूरी तरह खत्म कर देंगे. इसी चेतावनी के कुछ दिन बाद एक लाख पाक सैनिकों ने भारत के सामने घुटने टेकते हुए अपने हथियार डाल दिए. ये घटना भारतीय मिलिट्री के इतिहास की सबसे बड़ी घटना मानी जाती है.
सैम मानेकशॉ का निजी जीवन
मानेकशॉ की शुरुआती शिक्षा अमृतसर में हुई थी. बाद में वह नैनीताल के शेरवुड कॉलेज में दाखिल हो गए. वह देहरादून के इंडियन मिलिट्री एकेडमी के पहले बैच (1932) के लिए चुने गए 40 छात्रों में से एक थे. वहां से वह कमीशन प्राप्ति के बाद 1934 में भारतीय सेना में भर्ती हुए.
1937 में एक सार्वजनिक समारोह के लिए लाहौर गए सैम की मुलाकात सिल्लो बोडे से हुई. दो साल की यह दोस्ती 22 अप्रैल 1939 को शादी में बदल गई. 1969 को उन्हें सेनाध्यक्ष बनाया गया और 1973 में फील्ड मार्शल का सम्मान प्रदान किया गया. 1973 में सेना प्रमुख के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद वह तमिलनाडु में बस गए थे. वृद्धावस्था में उन्हें फेफड़े संबंधी बिमारी हो गई थी और वह कोमा में चले गए. उनकी मृत्यु वेलिंगटन के सैन्य अस्पताल के आईसीयू में 27 जून 2008 को हुई थी.
1937 में एक सार्वजनिक समारोह के लिए लाहौर गए सैम की मुलाकात सिल्लो बोडे से हुई. दो साल की यह दोस्ती 22 अप्रैल 1939 को शादी में बदल गई. 1969 को उन्हें सेनाध्यक्ष बनाया गया और 1973 में फील्ड मार्शल का सम्मान प्रदान किया गया. 1973 में सेना प्रमुख के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद वह तमिलनाडु में बस गए थे. वृद्धावस्था में उन्हें फेफड़े संबंधी बिमारी हो गई थी और वह कोमा में चले गए. उनकी मृत्यु वेलिंगटन के सैन्य अस्पताल के आईसीयू में 27 जून 2008 को हुई थी.
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को 'मैडम' कहने से इनकार
मानेकशॉ खुलकर अपनी बात कहने वालों में से थे. उन्होंने एक बार तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को 'मैडम' कहने से इनकार कर दिया था. उन्होंने कहा था कि यह संबोधन 'एक खास वर्ग' के लिए होता है. मानेकशॉ ने कहा कि वह उन्हें प्रधानमंत्री ही कहेगे.
15 जनवरी 1973 को फील्ड मार्शल के पद से सेवानिवृत्त हुए
7 जून 1969 को सैम मानेकशॉ ने जनरल कुमार मंगलम के बाद भारत के 8वें चीफ ऑफ द आर्मी स्टाफ का पद ग्रहण किया, उनके इतने सालों के अनुभव के इम्तिहान की घड़ी तब आई जब हजारों शरणार्थियों के जत्थे पूर्वी पाकिस्तान से भारत आने लगे और युद्घ अवश्यंभावी हो गया, दिसम्बर 1971 में यह आशंका सत्य सिद्घ हुई, सैम के युद्घ कौशल के सामने पाकिस्तान की करारी हार हुई और बांग्लादेश का निर्माण हुआ, उनके देश प्रेम और देश के प्रति निस्वार्थ सेवा के चलते उन्हें 1972 में पद्मविभूषण और 1 जनवरी 1973 को फील्ड मार्शल के पद से अलंकृत किया गया. चार दशकों तक देश की सेवा करने के बाद सैम बहादुर 15 जनवरी 1973 को फील्ड मार्शल के पद से सेवानिवृत्त हुए.
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