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जानें भारत-पाक युद्ध में दुश्मनों के छक्के छुड़ाने वाला मार्शल ऑफ एयरफोर्स अर्जन सिंह के बारे में

आज ही के दिन सेना के इतिहास में अपनी बहादुरी का परचम लहराने वाले मार्शल ऑफ द एयर फोर्स अर्जन सिंह दुनिया में अवतरित हुए थे.अर्जन सिंह को देश आज भी उनकी वीरता और ताकत के लिए याद करता है. बता दें कि उनका जन्म 15 अप्रैल 1919 में हुआ था, जबकि 16 सितंबर 2

Updated on: 15 Apr 2020, 09:02 AM

नई दिल्ली:

आज ही के दिन सेना के इतिहास में अपनी बहादुरी का परचम लहराने वाले मार्शल ऑफ द एयर फोर्स अर्जन सिंह का जन्म हुआ था. अर्जन सिंह को देश आज भी उनकी वीरता और ताकत के लिए याद करता है. बता दें कि उनका जन्म 15 अप्रैल 1919 में हुआ था, जबकि 16 सितंबर 2017 को उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया था. उनका पूरा नाम अर्जन सिंह औलख था और उन्होंने भारत-पाकिस्तान युद्ध (Indo-Pak War) में बहुत ही अहम रोल निभाया था. वहीं वो भारतीय वायुसेना में प्रमुख पद पर 1964-69 तक आसीन रहे.

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19 वर्ष की उम्र में उन्होंने रॉयल एयरफ़ोर्स कॉलेज में प्रवेश लिया और पायलट ऑफ़िसर के रूप में ग्रेजुएट हुए. इसके तुरंत बाद ही उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बर्मा (मौजूदा म्यांमार) में फ़ाइटर पायलट और कमांडर के रूप में युद्ध लड़ा और साथ ही अंग्रेज़ों के मिशन इंफ़ाल में महत्वपूर्ण योगदान दिया था. 1944 में उन्हें इसी भयमुक्त और असाधारण सेवा के लिए डीएफ़सी (Distinguished Flying Cross) से सम्मानित किया गया.

वायुसेना के इस माहिर और बहादुर अधिकारी ने 1969 में अपने रिटायरमेंट तक 60 अलग- अलग विमानों को उड़ा लिया था. इससे उनकी क्षमता का अंदाज़ा लगाया जा सकता है. 15 अगस्त 1947 में भारत को आज़ादी मिलने के बाद अर्जन सिंह के नेतृत्व में ही वायुसेना के 100 से ज़्यादा विमानों ने दिल्ली के लाल किले के ऊपर से फ़्लाइंग पास्ट किया था.

भारतीय सैन्य इतिहास के परीक्षा की घड़ी यानि कि 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध में चीफ़ ऑफ़ एयर स्टाफ़ अर्जन सिंह ने अपनी बहादुरी का एक अलग ही नमूना पेश किया था. उन्होंने ख़ुद सीमा पार घुसकर पाकिस्तान के कई वायुसेना ठिकानों को गिरा दिया था.

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अर्जन सिंह को मिला कई सम्मान

भारतीय वायु सेना के एकमात्र अधिकारी थे जिन्हें मार्शल ऑफ द एयर फोर्स (पांच सितारा रैंक) पर पदोन्नत किया गया था. सन् 1965 के भारत-पाक युद्ध के समय वायु सेना की कमान को सफलतापूर्वक संभालने के लिए उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था. इसके साथ ही सन 1966 में अर्जन सिंह को एयर चीफ मार्शल पद पर पदोन्नत किया गया था.  1949 में उनकी क़ाबिलियत को देखते हुए भारतीय वायुसेना ने उन्हें पश्चिमी एयर कमांड का एओसी (Air Officer Commanding) एयर कोमोडोर नियुक्त कर दिया. इस पद पर वे 1949-52 और दोबारा 1957-61 तक रहे.

1962 में चीन के साथ युद्ध के बाद अर्जन सिंह को एयर स्टाफ़ का डिप्टी चीफ़ बनाया गया और 1963 में ही एयर स्टाफ़ के वाइस चीफ़ बन गए. फिर उनकी नेतृत्व क्षमता को देखते हुए वायुसेना ने उन्हें 1 अगस्त 1964 को चीफ़ ऑफ़ एयर स्टाफ़ (CAS) के रूप में नियुक्त कर दिया.जो कि एयर मार्शल के रैंक का अधिकारी होता है.

इन क्षेत्र में किया कार्य

वायुय सेना से सेवानिवृत्ति के बाद अर्जन सिंह ने भारत सरकार के राजनयिक, राजनीतिज्ञ और परामर्शदाता के रूप में काम किया. सन् 1989 से 1990 तक वो दिल्ली के उपराज्यपाल पद पर आसिन रहे. इसके बाद साल 2002 में भारतीय वायु सेना के मार्शल के पद पर कार्यरत रहे. ये पहला मौका था कि जब भारतीय वायु सेना का कोई अधिकारी पांच सितारा स्तर पर पहुंचा हो.

दुश्मनों के छक्के छुड़ाने के लिए जाने जाते थे अर्जन सिंह

मार्शल ऑफ इंडियन एयरफोर्स अर्जन सिंह के बहादुरी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 1965 में जब पाकिस्तानी सेना ने टैंको के साथ अखनूर शहर पर हमला कर दिया तो रक्षा मंत्रालय ने तुरंत वायुसेना प्रमुख अर्जन सिंह को तलब किया. सरकार ने उनसे पूछा कि वो कितनी देर में पाकिस्तान पर जवाबी कार्रवाई के लिए एयरफोर्स को तैयार कर सकते हैं. अर्जन सिंह ने सरकार से सिर्फ 1 घंटे का समय मांगा.  उसके बाद उन्होंने अपने नेतृत्व में 1 घंटे से भी कम समय में पाकिस्तानी सेना और टैंकों पर बम बरसाना शुरू कर दिया.