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जयंती: महान क्रांतिकारी ज्योतिबा फुले आखिर कैसे बनें महिलाओं के मसीहा, यहां जानें सबकुछ

आज भारतीय समाज सुधारक, समाजसेवी, लेखक, दार्शनिक और क्रांतिकारी कार्यकर्ता जोतिराव गोविंदराव फुले जयंती है. इनका जन्म 11 अप्रैल 1824 में हुआ था और इन्हें 'महात्मा फुले' एवं 'जोतिबा फुले' के नाम से जाना जाता है.महिलाओं और दलितों के उत्थान के लिए इन्होंने कई अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए थे.

Updated on: 11 Apr 2020, 01:02 PM

नई दिल्ली:

आज भारतीय समाज सुधारक, समाजसेवी, लेखक, दार्शनिक और क्रांतिकारी कार्यकर्ता जोतिराव गोविंदराव फुले जयंती है. इनका जन्मे 11 अप्रैल 1824 में हुआ था और इन्हें 'महात्मा फुले' और 'ज्योतिबा फुले' के नाम से जाना जाता है.महिलाओं और दलितों के उत्थान के लिए इन्होंने कई अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए थे. फुले समाज के सभी वर्गो को शिक्षा प्रदान करने के ये प्रबल समथर्क थे. उन्होंने भारतीय समाज में प्रचलित जाति पर आधारित विभाजन और भेदभाव के हमेशा विरुद्ध थे. सितंबर 1873 में जोतिबा फुले ने महाराष्ट्र में सत्य शोधक समाज नामक संस्था का गठन किया था.

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ज्योतिबा फुले का बचपन

महात्मा ज्योतिबा फुले का जन्म 1827 ई. में पुणे में हुआ था और एक वर्ष की अवस्था में इनकी माता का निधन हो गया. इनका लालन-पालन एक बाईं ने किया था. उनका परिवार कई पीढ़ी पहले सतारा से पुणे आकर फूलों के गजरे आदि बनाने का काम करने लगा था इसलिए माली के काम में लगे ये लोग 'फुले' के नाम से जाने जाते थे. ज्योतिबा ने कुछ समय पहले तक मराठी में अध्ययन किया, बीच में पढाई छूट गई और बाद में 21 वर्ष की उम्र में अंग्रेजी की सातवीं कक्षा की पढाई पूरी की. इनका विवाह 1840 में सावित्री बाई से हुआ, जो बाद में स्‍वयं एक प्रसिद्ध समाजसेवी बनीं. दलित और स्‍त्री शिक्षा के क्षेत्र में दोनों पति-पत्‍नी ने मिलकर काम किया वह एक कर्मठ और समाजसेवी की भावना रखने वाले व्यक्ति थे.

महिलाओं के लिए बने मसीहा-

फुले का मुख्य उद्देश्य औरतों को शिक्षा का अधिकार प्रदान करना और बाल विवाह, विधवा विवाह का विरोध करना रहा है. महात्मा फुले समाज की कुप्रथा,अंधश्रद्धा की जाल से समाज को मुक्त करना चाहते थे. अपना सम्पूर्ण जीवन उन्होंने स्त्रियों को शिक्षा प्रदान कराने में, स्त्रियों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने में व्यतीत किया. बता दें कि 19वीं सदी में स्त्रियों को शिक्षा नहीं दी जाती थी और वो उन्हें महिला-पुरुष भेदभाव से बचाना चाहते थे. उन्होंने बच्चियों के लिए भारत देश की पहली पाठशाला पुणे में बनाई.

स्त्रियों की तत्कालीन दयनीय स्थिति से महात्मा फुले जी बहुत व्याकुल और दुखी होते थे इसीलिए उन्होंने दृढ़ निश्चय किया कि वे समाज में क्रांतिकारी बदलाव लाकर ही रहेंगे. उन्होंने अपनी धर्मपत्नी सावित्रीबाई फुले जी को खुद शिक्षा प्रदान की. मालूम हो की सावित्रीबाई फुले जी भारत की प्रथम महिला अध्यापिका थी.

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कैसे मिली महात्‍मा की उपाधि-

जोतिराव फुले व सावित्रीबाई फुले के पुतले, औरंगपुरा, औरंगाबाद, महाराष्ट्र गरीबो और निर्बल वर्ग को न्याय दिलाने के लिए ज्योतिबा ने 'सत्यशोधक समाज' 1873 मे स्थापित किया. उनकी समाजसेवा देखकर 1888 ई. में मुंबई की एक विशाल सभा में उन्हें 'महात्मा' की उपाधि दी.

लिखी कई किताबें-

ज्योतिबा ने ब्राह्मण-पुरोहित के बिना ही विवाह-संस्कार आरम्भ कराया और इसे मुंबई हाईकोर्ट से भी मान्यता मिली. अपने जीवन काल में उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखीं-गुलामगिरी, तृतीय रत्न, छत्रपति शिवाजी, राजा भोसला का पखड़ा, किसान का कोड़ा, अछूतों की कैफियत.

महात्मा ज्योतिबा औरउनके संगठन के संघर्ष के कारण सरकार ने 'एग्रीकल्चर एक्ट' पास किया. धर्म, समाज और परम्पराओं के सत्य को सामने लाने के लिए उन्होंने अनेक पुस्तकें भी लिखी.