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Happy Teacher's Day 2020: जानें डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के नाम पर क्यों मनाया जाता है शिक्षक दिवस

5 सिंतबर के दिन महान शिक्षाविद और विचारक डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्‍णन का जन्म हुआ था. भारत के शिक्षा क्षेत्र में राधाकृष्‍णन का बहुत बड़ा योगदान रहा है. राधाकृष्णन का मानना था कि 'एक शिक्षक का दिमाग देश में सबसे बेहतर दिमाग होता है'.

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Vineeta Mandal
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Happy Teacher s Day 2020( Photo Credit : (फाइल फोटो))

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'गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय, बलिहारी गुरु अपने गोविन्द दियो बताय' अर्थात आपके सामने जब गुरु (टीचर) और गोविंद (भगवान) दोनों एक साथ खड़े हो तो किसे पहले प्रणाम करना चाहिए? ऐसी स्थिति में गुरु के आगे सिर झुकाकर प्रणाम करना चाहिए क्योंकि उनके बताएं गए रास्ते और ज्ञान की वजह से ही आपको भगवान के दर्शन का रास्ता और मौका मिला. कबीर के इस दोहे ने साबित किया है कि गुरु का कद भगवान से भी ऊपर माना जाता हैं. गुरु के बिना ज्ञान पाने का रास्ता अधूरा है और ज्ञान के बिना इंसान का जीवन खोखला है. 

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आज यानि 5 सितंबर को शिक्षक दिवस (Teacher's Day 2020) मनाया जा रहा है. ऐसे में हर कोई अपने गुरुओं का आभार जता रहा हैं. हर किसी के जीवन में कोई ऐसी चीज या लोग होते हैं जिनसे वो हर दिन बहुत कुछ सीखते हैं. आज उन्हें धन्ययवाद करने का बहुत खास मौका है तो आप सब मैसेज, कार्ड, गिफ्ट या फोन कर के अपने जीवन के शिक्षकों को टीचर्स डे की शुभकामनाएं देते हुए उन्हें दिल से शुक्रिया जरूर कहें.

वहीं बता दें कि आज यानि 5 सिंतबर के दिन महान शिक्षाविद और विचारक डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्‍णन का जन्म हुआ था. भारत के शिक्षा क्षेत्र में राधाकृष्‍णन का बहुत बड़ा योगदान रहा है. राधाकृष्णन का मानना था कि 'एक शिक्षक का दिमाग देश में सबसे बेहतर दिमाग होता है'.

कहा जाता है कि एक बार डॉ. राधाकृष्णन के कुछ विद्यार्थियों और दोस्तों ने उनसे उनके जन्मदिन मनाने की इच्छा ज़ाहिर की. जिसके जवाब में डॉ. राधाकृष्णन ने अपने जन्मदिन को अलग से मनाने की बजाए इसे शिक्षक दिवस के रूप में मनाने की बात कही. इसके बाद ही सन् 1962 में 5 सितंबर के दिन भारत में शिक्षक दिवस मनाने का ऐलान किया गया. 

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राधाकृष्णन एक महान शिक्षाविद्, विचारक, भारत के पहले उप-राष्ट्रपति (1952-57) और दूसरे राष्ट्रपति (1962-67) थे. साधारण रहन सहन और उच्च विचार राधा कृष्णन के जीवन का मूल मंत्र था जिसकी वजह से वो एक श्रेष्ठ गुरु कहलाए. 

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन कहते थे मात्र जानकारी देना शिक्षा नहीं है. शिक्षा का लक्ष्य है ज्ञान के प्रति समर्पण की भावना और निरन्तर सीखते रहने की प्रवृत्ति. बहुत कम ही लोग जानते हैं कि महान शिक्षक माने जाने वाले डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को 27 बार नोबेल पुरस्कार के लिए नॉमिनेट किया गया था. जिसमें वह 16 बार लिटरेचर और 11 बार नोबेल पीस प्राइज के लिए नॉमिनेट हुए थे.

जानिए इनके बारे में कुछ जरूरी बातें-

1. स्कूल के दिनों में ही डॉक्टर राधाकृष्णन ने बाइबिल के कई महत्वपूर्ण अंश कंठस्थ कर लिए थे, इसके लिए उन्हें विशिष्ट योग्यता के सम्मान से नवाजा गया था.

2. इनके नाम में सर्वपल्ली शब्द के पीछे भी रोचक कहानी है. इनका परिवार पहले जहां रहता था उस गांव का नाम सर्वपल्ली था जिसके बाद इनका परिवार तिरूतनी गांव में बस गया था. लेकिन वह चाहते थे कि उनका गांव का नाम उनके नाम के साथ होना चाहिए.

3. वह फिलॉस्फी के टीचर थे. उन्होंने लिखा था कि 'पुस्तकें वो साधन हैं जिनके माध्यम से हम विभिन्न संस्कृतियों के बीच पुल का निर्माण कर सकते हैं.' उनके द्वारा लिखी गई फेमस किताब है 'द रीन ऑफ रिलीजन इन कंटेंपररी फिलॉस्फी.'

4. 1915 में डॉ राधाकृष्णन की मुलाकात महात्मा गांधी से हुई थी. गांधी के विचारों से प्रभावित होकर ही राधाकृष्णन ने आंदोलन के समर्थन में कई लेख लिखे थे.

5. राधाकृष्णन अपने छात्रों के बीच काफी लोकप्रिय थे. जब वह मैसूर से कोलकात जा रहे थे तब मैसूर स्टेशन डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जय-जयकार से गूंज उठा था. नम आंखों से स्टूडेंट्स ने उन्हें विदाई थी.

6. डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने राष्ट्रपति पद के कार्यकाल में कई देशों की यात्राएं की हैं. बता दें कि वह अमेरिका के व्हाईट हाउस में हेलिकॉप्टर से पहुंचने वाले विश्व के पहले व्यक्ति थे.

7. 1954 में डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन को भारत के सबसे बड़े सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया.

8. डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन को संविधान निर्माता समिति का सदस्य बनाया गया था. 1952 में जवाहरलाल नेहरू के आग्रह पर सोवियत संघ के विशिष्ट राजदूत बने और फिर इसी साल उन्होंने उपराष्ट्रपति का पद संभाला.

9. डॉ राधाकृष्णन 1962 से 1967 तक भारत के राष्ट्रपति रहे हैं. इस कार्यकाल को पूरा कर वे मद्रास चले गए थे जहां पर उन्होंने पूर्ण अवकाशकालीन जीवन व्यतीत किया.

10. सबके प्यारे शिक्षक ने लंबी बीमारी के बाद 17 अप्रैल 1975 को सुबह अपने अमूल्य जीवन की आखिरी सांस ली. देश के लिए यह अपूर्णीय क्षति थी.

Source : News Nation Bureau

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