पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी वैसे तो भारतीयों के जेहन में अकसर बने रहेंगे, लेकिन उनकी सरकार की ओर से लिए गए कई फैसलों को लेकर उन्हें खासतौर से याद किया जाएगा. चाहे वो पोखरण का परमाणु परीक्षण हो, सड़कों के माध्यम से भारत को जोड़ने की योजना हो, नदियों को लिंक करने की योजना हो संचार क्रांति का दूसरा चरण हो, देश में विनिवेश को तीव्र गति से बढ़ाना हो, आतंकवादियों के खिलाफ पोटा कानून हो या फिर संविधान समीक्षा आयोग का गठन हो. इन सबके अलावा भी कई ऐसे फैसले अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री रहते लिए गए, जिससे उस समय देश तीव्र गति से आगे बढ़ा. तत्कालीन वाजपेयी सरकार की ओर से लिए गए फैसलों पर एक नजर:
भारत को जोड़ने की योजना
- उन्होंने चेन्नई, कोलकाता, दिल्ली और मुंबई को जोड़ने के लिए स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क परियोजना लागू की.
- साथ ही ग्रामीण अंचलों के लिए प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना लागू की.
- उनके इस फ़ैसले ने देश के आर्थिक विकास को रफ़्तार दी.
निजीकरण को बढ़ावा-विनिवेश की शुरुआत
- वाजपेयी ने 1999 में अपनी सरकार में विनिवेश मंत्रालय के तौर पर एक अनोखा मंत्रालय का गठन किया था.
- इसके मंत्री अरुण शौरी बनाए गए थे.
- शौरी के मंत्रालय ने वाजपेयी जी के नेतृत्व में भारत एल्यूमिनियम कंपनी (बाल्को), हिंदुस्तान ज़िंक, इंडियन पेट्रोकेमिकल्स कॉर्पोरेशन लिमिटेड और विदेश संचार निगम लिमिटेड जैसी सरकारी कंपनियों को बेचने की प्रक्रिया शुरू की थी.
संचार क्रांति का दूसरा चरण
- 1999 में वाजपेयी ने भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) के एकाधिकार को ख़त्म करते हुए नई टेलिकॉम नीति लागू की.
- इसके पीछे भी प्रमोद महाजन का दिमाग़ बताया गया.
- रेवेन्यू शेयरिंग मॉडल के ज़रिए लोगों को सस्ती दरों पर फ़ोन कॉल्स करने का फ़ायदा मिला और बाद में सस्ती मोबाइल फ़ोन का दौर शुरू हुआ.
सर्व शिक्षा अभियान
- छह से 14 साल के बच्चों को मुफ़्त शिक्षा देने का अभियान वाजपेयी के कार्यकाल में ही शुरू किया गया था.
- 2000-01 में उन्होंने ये स्कीम लागू की. जिसके चलते बीच में पढ़ाई छोड़ देने वाले बच्चों की संख्या में कमी दर्ज की गई.
- 2000 में जहां 40 फ़ीसदी बच्चे ड्रॉप आउट्स होते थे, उनकी संख्या 2005 आते आते 10 फ़ीसदी के आसपास आ गई थी.
- उन्होंने स्कीम को प्रमोट करने वाली थीम लाइन 'स्कूल चले हम' ख़ुद से लिखा था.
पोखरण का परीक्षण
- मई 1998 में भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण किया था. ये 1974 के बाद भारत का पहला परमाणु परीक्षण था.
- वाजपेयी ने परीक्षण ये दिखाने के लिए किय़ा था कि भारत परमाणु संपन्न देश है.
- इस परीक्षण के बाद अमरीका, ब्रिटेन, कनाडा और कई पश्चिमी देशों ने आर्थिक पांबदी लगा दी थी लेकिन वाजपेयी की कूटनीति कौशल का कमाल था कि 2001 के आते-आते ज़्यादातर देशों ने सारी पाबंदियां हटा ली थीं.
पोटा क़ानून
- जब 13 दिसंबर, 2001 को पांच चरमपंथियों ने भारतीय संसद पर हमला कर दिया.
- ये भारतीय संसदीय इतिहास का सबसे काला दिन माना जाता है.
- इस हमले में भारत के किसी नेता को कोई नुकसान नहीं पहुंचा था लेकिन पांचों चरमपंथी और कई सुरक्षाकर्मी मारे गए थे.
- इससे पहले नौ सितंबर को अमरीका के वर्ल्ड ट्रेड टॉवर सबसे भयावह आतंकी हमला हो चुका था.
- इन सबको देखते हुए आतंरिक सुरक्षा के लिए सख़्त क़ानून बनाने की मांग ज़ोर पकड़ने लगी थी और वाजपेयी सरकार ने पोटा क़ानून बनाया, ये बेहद सख़्त आतंकवाद निरोधी क़ानून था, जिसे 1995 के टाडा क़ानून के मुक़ाबले बेहद कड़ा माना गया था.
- महज दो साल के अंदर इस क़ानून के तहत 800 लोगों को गिरफ़्तार किया गया और क़रीब 4000 लोगों पर मुक़दमा दर्ज किए गए.
- तमिलनाडु में एमडीएमके नेता वाइको को भी पोटा क़ानून के तहत गिरफ़्तार किया गया था.
- महज दो साल के दौरान वाजपेयी सरकार ने 32 संगठनों पर पोटा के तहत पाबंदी लगाई.
- 2004 में जब यूपीए सरकार सत्ता में आई तब ये क़ानून निरस्त कर दिया गया.
संविधान समीक्षा आयोग का गठन
- वाजपेयी सरकार ने संविधान में संशोधन की ज़रूरत पर विचार करने के लिए एक फरवरी, 2000 को संविधान समीक्षा के राष्ट्रीय आयोग का गठन किया था.
- हालांकि ऐसे आयोग के गठन का विरोध विपक्षी दलों के अलावा तत्कालीन राष्ट्रपति आरके नारायणन ने भी किया था.
- 26 जनवरी, 2000 को 50वें गणतंत्र दिवस के मौके पर अपने संबोधन में आरके नारायणन ने संविधान समीक्षा की ज़रूरत पर सवाल उठाते हुए कहा था कि जब संशोधन की व्यवस्था है ही तो भी फिर समीक्षा क्यों होनी चाहिए? लेकिन वाजपेयी सरकार ने आयोग का गठन किया और उसे छह महीने का वक्त दिया गया.
- तब इस बात पर अंदेशा जताया गया था कि जिस संविधान को तैयार करने में तीन साल के करीब वक्त लगा उसकी समीक्षा महज छह महीने में कैसे हो पाएगी.
- बहरहाल सुप्रीम कोर्ट के भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश एम एन वेंकटचलैया के अगुवाई वाले आयोग ने 249 सिफ़ारिशें की थीं, लेकिन इस आयोग और उनकी सिफ़ारिशों का बड़े पैमाने पर विरोध हुआ था, जिसके बाद वाजपेयी सरकार संविधान को संशोधित करने के काम को आगे नहीं बढ़ा पाई.
जातिवार जनगणना पर रोक
- 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के बनने से पहले एचडी देवगौड़ा सरकार ने जातिवार जनगणना कराने को मंजूरी दे दी थी जिसके चलते 2001 में जातिगत जनगणना होनी थी.
- मंडल कमीशन के प्रावधानों को लागू करने के बाद देश में पहली बार जनगणना 2001 में होनी थी, ऐसे मंडल कमीशन के प्रावधानों को ठीक ढंग से लागू किया जा रहा है या नहीं इसे देखने के लिए जातिगत जनगणना कराए जाने की मांग ज़ोर पकड़ रही थी.
- न्यायिक प्रणाली की ओर से बार बार तथ्यात्मक आंकड़ों को जुटाने की बात कही जा रही थी ताकि कोई ठोस कार्य प्रणाली बनाई जा सके.
- तत्कालीन रजिस्टार जनरल ने भी जातिगत जनगणना की मंजूरी दे दी थी. लेकिन वाजपेयी सरकार ने इस फ़ैसले को पलट दिया. जिसके चलते जातिवार जनगणना नहीं हो पाई.
- इसको लेकर समाज का बहुजन तबका और उसके नेता वाजपेयी की आलोचना करते रहे हैं, उनके मुताबिक वाजपेयी के फ़ैसले से आबादी के हिसाब से हक की मुहिम को धक्का पहुंचा.
Source : News Nation Bureau