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World heritage day 2020: जानें 'विश्व विरासत दिवस' मनाने के पीछे का इतिहास और महत्व

आज 'विश्व विरासत दिवस' और 'विश्व धरोहर दिवस' (World Heritage Day 2020) है, जिसे हर साल 18 अप्रैल को मनाया जाता है. इसे मनाने की पीछे का मुख्य उद्देश्य ये था कि लोग अपनी धरोहर को लेकर जागरूक रह सकें और उसकी सुरक्षा कर सके.

Updated on: 18 Apr 2020, 12:36 PM

नई दिल्ली:

CoronaVirus (Covid-19): आज 'विश्व विरासत दिवस' और 'विश्व धरोहर दिवस' (World Heritage Day 2020) है, जिसे हर साल 18 अप्रैल को मनाया जाता है. इसे मनाने की पीछे का मुख्य उद्देश्य ये था कि लोग अपनी धरोहर को लेकर जागरूक रह सकें और उसकी सुरक्षा कर सके. पूरे विश्व में मानव सभ्यता से जुड़े ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थलों के संरक्षण के प्रति जागरूकता लाना बेहद जरूरी है इसलिए भी ये दिन बहुत खास होता है.

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विश्व विरासत दिवस पर केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने ट्वीट करते हुए कहा, 'इस बार World Heriatage Day 2020 की थीम 'साझा संस्कृति, साझा विरासत और साझा संस्कृति ' है, जो वैश्विक एकता के लिए अभिव्यक्ति है. आप घर में रहकर Heriatage साइट्स पर अपनी पसंद की जगह के वीडियो देखकर मना  सकते हैं. '

हर साल विश्व विरातस दिवस की अलग-अलग थीम होती है. यूनेस्कों के मुताबिक दुनिया भर में आज 1121 वर्ल्ड हैरिटेज साइज मौजूद है. इसमें 869  सांस्कृतिक, 213 प्राकृतिक और 39 दोनों का मिक्स यानि की मिला जुला है.

क्या है इसका इतिहास-

संयुक्त राष्ट्र (UN) की संस्था यूनेस्को (Unesco) की पहल पर एक अंतर्राष्ट्रीय संधि की गई ज्योति विश्व के सांस्कृतिक प्राकृतिक धरोहर के संरक्षण के हेतु प्रतिबद्ध है यह संधि सन 1972 में लागू की गई थी.

शुरू में मुख्य तीन श्रेणियों में धरोहर स्थलों को शामिल किया गया था. पहला तहरी- इसमें प्राकृतिक रूप से संबद्ध हो अर्थात प्राकृतिक धरोहर स्थल शामिल किया था. वहीं दूसरें में सांस्कृतिक धरोहरों को और तीसरे में मिश्रित धरोहर को शामिल किया गया.

साल1982 में इकोमार्क नामक संस्था ने ट्यूनिशिया में अंतर्राष्ट्रीय स्मारक और स्थल दिवस का आयोजन किया था, उस सम्मेलन में यह भी बात उठी कि विश्व भर में किसी प्रकार के दिवस का आयोजन किया जाना चाहिए.

यूनेस्को की महासम्मेलन में इसके अप्रूवल के बाद 18 अप्रैल को विश्व धरोहर दिवस के रूप में मनाने के लिए घोषणा की गई. इससे पहले 18 अप्रैल को विश्व स्मारक और पुरातत्व स्थल दिवस के रूप में मनाए जाने की परंपरा थी.