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ओवैसी के मजार पर सजदे से मचा बवाल, जानें कौन था सालार मसूद

ग़ज़नवी के साथ उनका संबंध केवल बाद के स्रोतों में दिखाई देता है. उनकी जीवनी का मुख्य स्रोत 17वीं शताब्दी की ऐतिहासिक कल्पित कथा मिरात-ए-मसूदी है.

Updated on: 10 Jul 2021, 11:26 AM

highlights

  • बहराइच में है सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी की मजार
  • भारत पर 17 बार आक्रमण करने वाला है मसूद
  • महमूद सुल्तान यानी गजनवी का था भांजा सालार

नई दिल्ली:

एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव के माहौल में भारतीय जनता पार्टी को विरोध का एक मौका प्रदान कर दिया है. विगत दिनों ओवैसी महाराज सुहेलदेव की धरती बहराइच में पूर्वी यूपी कैंप कार्यालय का उद्घाटन करने पहुंचे थे. इस दौरान वह गाजी की मजार पर भी सजदा कर आए. भारतीय जनता पार्टी ने इसे लेकर ओवैसी और ओमप्रकाश राजभर पर जोरदार हमला बोल दिया. बीजेपी का आरोप है कि ओवैसी ने एक देशभक्त राहाज सुहेलदेव का अपमान किया है. बीजेपी का आरोप है कि भारत पर 17 बार आक्रमण करने वाले सैयद सालार मसूद गाजी के आगे सिऱ झुकाना किसी राष्ट्रद्रोह से कम नहीं है. हालांकि ऐसे में यह जानना बेहतर रहेगा कि आखिर मसूद गाजी था कौन...

गजनवी सेना का मुखिया था
कहते हैं कि सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी या गाज़ी मियां ग़ज़नवी सेना के मुखिया थे, जिसे सुल्तान महमूद यानी महमूद गजनवी का भांजा कहा जाता है. माना जाता है कि वह 11वीं शताब्दी की शुरुआत में भारत विजय अभियान में अपने मामा के साथ आए थे. हालांकि ग़ज़नवी इतिहास में उसका उल्लेख नहीं है. 12वीं शताब्दी तक सालार मसूद एक संत के रूप में प्रतिष्ठित हो गए और भारत के उत्तर प्रदेश बहराइच में उनकी दरगाह तीर्थयात्रा का स्थान बन गई. हालांकि ग़ज़नवी के साथ उनका संबंध केवल बाद के स्रोतों में दिखाई देता है. उनकी जीवनी का मुख्य स्रोत 17वीं शताब्दी की ऐतिहासिक कल्पित कथा मिरात-ए-मसूदी है.

हिंदू मां की संतान था गाजी
सन् 1011 में अजमेर के मुस्लिम जिनके अधिकारों का स्थानीय हिंदू शासकों द्वारा उल्लंघन किया जा रहा था. ऐसे में गज़नी के सुल्तान महमूद से मदद की मांग की. महमूद के सेनापति सालार साहू ने अजमेर और आस-पास के क्षेत्रों के हिंदू शासकों को हराया. एक इनाम के रूप में महमूद ने अपनी बहन का सालार साहू से विवाह किया. मसूद इसी विवाह का बालक था. मसूद का जन्म अजमेर में 10 फरवरी सन् 1014 में हुआ था. फौजी और धार्मिक उत्साह से प्रेरित मसूद ने ग़ज़नवी सम्राट से भारत आने और इस्लाम फैलाने की अनुमति मांगी. 16 साल की उम्र में उसने सिंधु नदी पार करते हुए भारत पर हमला किया. उसने मुल्तान पर विजय प्राप्त की और अपने अभियान के 18वें महीने में वह दिल्ली के पास पहुंचा. गज़नी से बल वृद्धि के बाद उसने दिल्ली पर विजय प्राप्त की और 6 महीने तक रहा. उसके बाद उसने कुछ प्रतिरोध के बाद मेरठ पर विजय प्राप्त की. इसके बाद वह कन्नौज चला गया.

मसूद ने बोला था बहराइच पर हमला
मसूद ने सतरिख में अपना मुख्यालय स्थापित किया और बहराइच, हरदोई और बनारस का कब्जा करने के लिए अलग-अलग बलों को भेज दिया. बहराइच के राजा समेत स्थानीय शासकों ने उसकी सेना के खिलाफ गठबंधन बनाया. उसके पिता सालार साहू तब बहराइच पहुंचे और दुश्मनों को हराया. उसके पिता सालार साहू का 4 अक्तूबर 1032 को सतरिख में निधन हो गया. मसूद ने अपने अभियानों को जारी रखा. बहराइच के हिंदू प्रमुख पूरी तरह से अधीन नहीं हुए थे, इसलिए मसूद स्वयं सन् 1033 में बहराइच पहुंचा.

सूर्य कुंड के पास दफन होने से बना संत
सुहेलदेव नामक शासक के आगमन तक बहराइच में अपने हिंदू दुश्मनों को मसूद हराता चला गया. वह 15 जून 1034 को सुहेलदेव के खिलाफ लड़ाई में पराजित और घातक रूप से घायल हो गया. मरने के दौरान उसने अपने अनुयायियों से पवित्र जलाशय के तट पर सूर्य कुंड के निकट दफनाने के लिए कहा, क्योंकि उसने हज़ारों हिंदुओं की हत्या की थी इसलिए उसे गाज़ी (धार्मिक योद्धा) के रूप में जाना जाने लगा. हालांकि कुछ इतिहासकार इन तथ्यों की पुष्टि नहीं करते हैं.