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यूपी: सरकारी विद्यालयों को गोद लेंगे प्राइवेट विद्यालय, अध्यापकों ने उठाए ये सवाल

इस आदेश के तहत प्राइवेट स्कूलों के 5 से 8 किलोमीटर  के दायरे में जो भी सरकारी प्राइमरी या जूनियर स्कूल होंगे, उनके साथ उनकी ट्यूनिंग की जाएगी.

Updated on: 07 Oct 2022, 01:04 PM

highlights

  • सरकारी प्राइमरी और जूनियर स्कूलों को गोद लेने का आदेश
  • दोनों स्कूलों के प्रधानाचार्य और शिक्षक विचार विमर्श कर रणनीति बनाएंगे
  • कम्प्यूटर लैब, टीएलएम और खेल की गतिविधियों को साझा किया जाएगा

नई दिल्ली:

उत्तर प्रदेश के सरकारी प्राइमरी और जूनियर स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था में बड़ा बदलाव करने के लिए सरकार ने एक और प्रयोग किया है, जिसका नतीजा जल्द देखने को मिल सकता है. योगी सरकार ने प्रदेश के निजी विश्वविद्यालय, कालेज और सभी प्राइवेट स्कूलों को, अपने आसपास के सरकारी प्राइमरी और जूनियर स्कूलों को गोद लेने का आदेश जारी किया है. यह आदेश राष्ट्रीय शिक्षा नीति के ट्यूनिंग के सिद्धांत का पालन करने के लिए जारी किया गया है. इस आदेश के तहत प्राइवेट स्कूलों के 5 से 8 किलोमीटर के दायरे में जो भी सरकारी प्राइमरी या जूनियर स्कूल होंगे, उनके साथ उनकी ट्यूनिंग की जाएगी. इस योजना के तहत दोनों स्कूलों के प्रधानाचार्य और शिक्षक विचार विमर्श कर रणनीति बनाएंगे और दोनों स्कूल के बच्चों के ग्रुप लर्निंग के लिए एक वातावरण तैयार करने के लिए कार्ययोजना तैयार की जाएगी. इसमें प्राइवेट स्कूल के पुस्तकालय, खेल का मैदान, कम्प्यूटर लैब, टीएलएम और खेल की गतिविधियों को साझा किया जाएगा.

दोनों स्कूलों या संस्थानों के विद्यार्थी और शिक्षक महीने में एक बार मिलेंगे और विद्यालय के भ्रमण में दो घंटे का ठहराव अनिवार्य होगा. सरकार की कोशिश है कि इसके जरिए प्राइमरी स्कूल के बच्चे प्राइवेट स्कूल में जाकर वहां का बेहतर माहौल देखेंगे और वहां से उन्हें काफी कुछ सीखने को मिलेगा लेकिन गोरखपुर के प्राइमरी स्कूल के अध्यापक सरकार की इस कोशिश से खुश नजर नहीं आ रहे हैं. गोरखपुर प्राथमिक शिक्षक संघ के जिला अध्यक्ष राजेश धर दूबे का कहना है कि यह एक तरीके से उनके सरकारी अध्यापकों की प्रतिभा को नजरअंदाज करने की कोशिश है, क्योंकि प्राइवेट स्कूलों के टीचरों और सरकारी स्कूलों के टीचरों की शिक्षा में जमीन आसमान का अंतर होता है. प्राइवेट स्कूलों में बी.ए. या एम.ए. पास लोगों को ही अध्यापक के रूप में रखा जाता है, जबकि सरकारी विद्यालयों के अध्यापक पूरी पढ़ाई और ट्रेनिंग लेकर बच्चों को पढ़ाने के लिए आते हैं. इसके साथ ही प्राइवेट स्कूल के बच्चों का कोर्स भी सरकारी स्कूल के बच्चों से काफी अलग और भारी भरकम होता है.

इनको डर इस बात का भी है जब इनके बच्चे प्राइमरी स्कूल के संसाधनों को देखेंगे और वहां के बच्चों से मिलेंगे तो उनके अंदर हीन भावना भी आएगी कि वह ऐसे स्कूल में पढ़ते हैं जहां पर इस तरह की कोई सुविधा उनको नहीं मिल पा रही है. गोरखपुर सहित उत्तर प्रदेश के अधिकतर सरकारी स्कूलों में अभी तक बच्चों को किताबें नहीं मिल पाई है. ऐसे में अध्यापक यह मान रहे हैं कि सरकार की इस योजना का बहुत अधिक असर शिक्षण व्यवस्था पर नहीं पड़ेगा. गोरखपुर के जंगल सिकरी प्राथमिक स्कूल के प्रधानाध्यापक अशोक का मानना है कि सरकार अगर प्राइवेट स्कूल के स्तर का संसाधन इनको भी मुहैया कराएं तो इस तरह के किसी एक्सपेरिमेंट की जरूरत नहीं पड़ेगी.