स्वामी विवेकानंद में थीं ये महानताएं, ऐसे बने युवाओं के लिए प्रेरणा के स्त्रोत
12 जनवरी 2021 को हमारे देश में स्वामी विवेकानंद की 157वीं जयंती बनाई जाएगी. उनकी जयंती को युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है.
नई दिल्ली:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज दिल्ली स्थित जवाहर लाल यूनिवर्सिटी में महान दार्शनिक स्वामी विवेकानंद की मूर्ति की अनावरण करने जा रहा हैं. आज से ठीक दो महीने बाद यानी 12 जनवरी 2021 को हमारे देश में स्वामी विवेकानंद की 157वीं जयंती बनाई जाएगी. उनकी जयंती को युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है, क्योंकि बचपन से वेद और दर्शन शास्त्र में रूचि रखने वाले स्वामी विवेकानंद आगे चलकर दुनियाभर के युवाओं के लिए मार्गदर्शक बने. वह आज भले ही हमारे बीच नहीं है, लेकिन स्वानमी विवेकानंद आज भी दुनिया के करोड़ों युवाओं के लिए प्रेरणा के स्त्रोत हैं.
यह भी पढ़ें: पीएम मोदी आज JNU में स्वामी विवेकानंद की मूर्ति का करेंगे अनावरण
स्वामी विवेकानंद का शिकागो भाषण आज भी लोगों के जहन में जिंदा है. साल 1892 में शिकागो में हुए विश्व धर्म सम्मेलन में स्वामी विवेकानंद ने जो भाषण दिया था, उसकी आज भी लोग चर्चा करते हैं. मालूम हो कि स्वामी ने अपने भाषण की शुरुआत की थी तो पहले 5 मिनट केवल तालियां ही बजती रही थीं. दरअसल, उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत टमाई डियर ब्रदर एंड सिस्टर्स ऑफ अमेरिका.. से की.' इसे सुनते ही वहां बैठे हर व्यक्ति ने उनकी प्रशंसा में खूब तालियां बजाईं, क्योंकि इसके जरिए उन्होंने अमेरिका में हिंदू संस्कृति का परचम लहराया था.
यह भी पढ़ें: स्वामी विवेकानंद की कर्मभूमि से पीएम मोदी ने ममता बनर्जी की चुनौती का दिया जवाब
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ. उनका नाम नरेंद्रनाथ दत्ता था. उनके पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाईकोर्ट में वकील थे, जबकि उनकी मां भुवनेश्वरी देवी धार्मिक महिला थीं. 1884 में विवेकानंद के पिता विश्वनाथ दत्त का निधन हो गया था, जिसके बाद परिवार की सारी जिम्मेदारी विवेकानंद के कंधों पर आ गई थी. विवेकानंद के अंदर कुछ विशिष्ट गुण थे, जिनकी वजह से वह एक महान व्यक्ति बने. विवेकानंद में अतिथियों का सम्मान करने की काफी अच्छी आदत थी. वे अपने अतिथियों की सेवा में खुद को भूल जाते थे. अतिथि भूखे न रहे, इसलिए वह उन्हें भोजन कराते थे और खुद भूखे पेट सो जाते थे.
25 साल की उम्र में स्वामी विवेकानंद ने अपने गुरू रामकृष्ण परमहंस से प्रेरणा ली. जिसके बाद वह मोह-माया त्याग करके संन्यासी बन गए. 11 सितंबर 1893 को अमेरिका के शिकागो में हुई धर्म संसद में उनके ओजपूर्ण और बेबाक भाषण ने पूरी दुनिया को दीवाना बना दिया. दुनियाभर के युवा उन्हें अपना गुरू मानने लगे. ये दिन भारत के लिए काफी महत्वपूर्ण था, जो इतिहास में दर्ज हो गया.
1 मई 1897 को स्वामी विवेकानंद ने कोलकाता में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी और इसके साल उन्होंने 9 दिसंबर 1898 को बेलूर स्थित गंगा नदी के तट पर रामकृष्ण मठ की स्थापना की थी. इस बीच स्वामी विवेकानंद को शुगर की बीमारी हो गई और आखिरकार इस बीमारी की वजह से 39 साल की उम्र में 4 जुलाई 1902 को उनका निधन हो गया.
वीडियो
IPL 2024
मनोरंजन
धर्म-कर्म
-
Dharma According To Ramayana: रामायण के अनुसार धर्म क्या है? जानें इसकी खासियत
-
Principles Of Hinduism : क्या हैं हिंदू धर्म के सिद्धांत, 99% हिंदू हैं इससे अनजान
-
Akshaya Tritiya 2024: अक्षय तृतीया के दिन शुभ मुहूर्त में खरीदें सोना-चांदी, भग्योदय होने में नहीं लगेगा समय
-
Types Of Kaal Sarp Dosh: काल सर्प दोष क्या है? यहां जानें इसके प्रभाव और प्रकार के बारे में