Samvidhan Divas: 26 नवंबर के दिन भारत ने अपनाया था संविधान, जानें क्या है खास

आजाद भारत के इतिहास में आज की तारीख की एक खास अहमियत है. दरअसल यही वह दिन है, जब गुलामी की जंजीरों से आजाद होकर अपने स्वतंत्र अस्तित्व को आकार देने का प्रयास कर रहे राष्ट्र ने संविधान को अंगीकार किया था.

आजाद भारत के इतिहास में आज की तारीख की एक खास अहमियत है. दरअसल यही वह दिन है, जब गुलामी की जंजीरों से आजाद होकर अपने स्वतंत्र अस्तित्व को आकार देने का प्रयास कर रहे राष्ट्र ने संविधान को अंगीकार किया था.

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Vineeta Mandal
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Samvidhan Divas: 26 नवंबर के दिन भारत ने अपनाया था संविधान, जानें क्या है खास

Samvidhan Divas 2019( Photo Credit : फाइल फोटो)

आजाद भारत के इतिहास में 26 नवंबर की तारीख की एक खास अहमियत है. दरअसल यही वह दिन है, जब गुलामी की जंजीरों से आजाद होकर अपने स्वतंत्र अस्तित्व को आकार देने का प्रयास कर रहे राष्ट्र ने संविधान को अंगीकार किया था. इसी दिन संविधान सभा ने इसे अपनी स्वीकृति दी थी. इस वजह से इस दिन को 'संविधान दिवस' के तौर पर मनाया जाता है.संविधान सभा की 2 साल 11 महीने और 17 दिनों की कड़ी मेहनत और हजारों संशोधन से बनकर तैयार हुए भारतीय संविधान पर साल 1949 में इसी दिन सहमति बनी, जिसके बाद 26 जनवरी 1950 से भारत में संविधान लागू हुआ. समाज को निष्पक्ष न्याय प्रणाली मिली. नागरिकों को मौलिक अधिकारों की आजादी मिली और कर्तव्यों की जिम्मेदारी भी.

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कैसे बने संविधान निर्माण के हालात?

अंग्रेजी शासन में देखें तो 1857 की क्रांति के दौरान ही भारत में संविधान की मांग उठ चुकी थी. उसी दौरान हरीशचंद्र मुखर्जी ने संसद की मांग की थी. 1914 में गोपाल कृष्ण गोखले ने भी संविधान को लेकर अपनी बात रखी. अंग्रेजों ने इसे लेकर अपनी सहमति तो दी, लेकिन बात आगे नहीं बढ़ सकी. 1922 में महात्मा गांधी ने भारत का संविधान भारतीयों द्वारा ही बनाने पर जोर दिया. 1928 में मोतीलाल नेहरू इसे लेकर स्वराज रिपोर्ट पेश की. इस बीच 1935 में अंग्रेजों ने 'गर्वमेंट ऑफ इंडिया एक्ट' बनाया, जिसे कमजोर करार दिया गया. इसके चलते कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच की दूरियां भी बढ़ीं. इसके करीब 10 साल बाद डॉ. तेजबहादुर सप्रू ने सभी दलों के साथ मिलकर एक संविधान का खाका बनाने की पहल की.

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दूसरे विश्व युद्ध से बदले हालात

इधर दूसरे विश्व युद्ध में चर्चिल की हार के बाद तत्कालीन सरकार ने 3 मंत्री भारत भेजे, इसे 'कैबिनेट मिशन' का नाम दिया गया, लेकिन कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों के ही विरोध के चलते ये सफल नहीं हो सका. इस दौरान मुस्लिम लीग की बंटवारे की राजनीति और हिंसा को बढ़ावा मिला. इस सबके बीच ही आगे चलकर संविधान सभा का गठन हुआ. डॉ. सच्चिदानन्द सिन्हा को संविधान सभा का कार्यकारी अध्यक्ष चुना गया जबकि डॉ. राजेन्द्र प्रसाद संविधान सभा के स्थायी अध्यक्ष चुने गए. इस संविधान सभा के वजूद और मकसद पर चर्चिल और मुस्लिम लीग समेत बाकियों ने सवाल भी उठाए, लेकिन सभी सवाल बेबुनियाद निकले. संविधान सभा ने गंभीरता और लगन से अपना काम किया और आकार दिया दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के संविधान को, जो ​दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान भी था.

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