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Munshi Premchand की 84वीं बरसी: महान साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद से जुड़े वो किस्से जिन्हें शायद ही आप जानते होंगे

हिंदी और उर्दू साहित्य की बात हो तो हर किसी को सबसे पहले महान साहित्यकार और रचनाकार मुंशी प्रेमचंद की ही याद आती है। 8 अक्टूबर 1936 को कलम के जादूगर, हिंदी साहित्य को अपनी रचनाओं से पूर्णतः विकसित करने वाले मुंशी प्रेमचंद ने दुनिया को अलविदा कह दिया

Updated on: 08 Oct 2020, 02:31 PM

नई दिल्ली:

हिंदी और उर्दू साहित्य की बात हो तो हर किसी को सबसे पहले महान साहित्यकार और रचनाकार मुंशी प्रेमचंद की ही याद आती है. 8 अक्टूबर 1936 को कलम के जादूगर, हिंदी साहित्य को अपनी रचनाओं से पूर्णतः विकसित करने वाले मुंशी प्रेमचंद ने दुनिया को अलविदा कह दिया था. 8 अक्टूबर को उनकी 84वीं बरसी है. आज हम उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें कोटिशः नमन करते हुए उनसे जुड़े दिलचस्प किस्सों का जिक्र करेंगे. प्रेमचंद की कहानियां उस दौर का और आज के समाज का आइना लगती हैं. मानो उनकी कथाओं के पात्र हमारे बीच ही हैं. क्या आप जानते हैं कि प्रेमचंद का असल नाम धनपत राय श्रीवास्तव है? प्रेमचंद को कई और नाम भी दिए गए. जैसे कि 'नवाब', जिसके बाद उनका पहला पैन नेम 'नवाब राय' पड़ गया. वहीं शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें 'उपन्यास सम्राट' की उपाधि से नवाज़ा. जो जगह अंग्रेजी साहित्य में शेक्सपियर को दी गई है वही जगह हिंदी साहित्य के प्रेमियों के बीच मुंशी प्रेमचंद को मिली है.

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जीवन की तमाम परेशानियों, समस्याओं समेत हर जरूरी कड़ी से ताना-बाना बुनती उनकी कहानियां हर इंसान को कहीं न कहीं खुद से जोड़ लेती हैं। अपनी कहानियों में उन्होंने असहनीय दर्द, मानव जीवन से जुड़ी पीड़ा और उदासी से भरी ऐसी कसक है जिससे पढ़कर कोई भी तारतम्य स्थापित कर लेता है. कहा जाता है कि कबीर के बाद प्रेमचंद एक ऐसे लेखक थे जिन्होंने सामाजिक कुप्रबंध को अपनी कलम के ज़रिये उठाया. उन्होंने जाति, परिवारवाद, महिलाएं और मजदूरों की बात बेबाक अंदाज में बिना मोड़े-तोड़े उठाई. लिहाजा उनकी कई किताबें बैन कर दी गईं थी लेकिन उन्होंने लिखना बंद नहीं किया.

प्रेमचंद की 'पूस की रात', 'गोदान', 'गबन', 'कर्मभूमि', 'प्रतिज्ञा' और 'कायाकल्प' जैसी रचनाओं को लोग बार-बार पढ़ना चाहते हैं. आज भी अगर लोग उन कहानियों से मिले सबक को समझकर, सूझ-बूझ के साथ अपनाएं तो सारी समस्या खुद ब खुद हल हो जाएं. उनकी समकालिक रचनाएं आज भी जिंदा हैं और समाज में होने वाली अनुचित चीजों को कटघरे में खड़ा करती हैं. 'ईदगाह' पढ़ चुके पाठक ये बात बहुत अच्छे से समझ पाते हैं कि जब भी कहीं से यह ख़बर मिलती है कि किसी ने अपने माता-पिता को वृधावस्था आश्रम में छोड़ दिया है तो लगता है कि उस बच्चे का जिक्र हो रहा है जिसने इदी में मिले पैसों से खिलौने या मिठाई की जगह चिमटा ख़रीदना सही समझा.

मुंशी प्रेमचंद का साहित्य उनके बचपन पर आधारित था. उन्होंने सौतेली मां का व्यवहार, बाल विवाह, किसानों के दुखी जीवन और धार्मिक कर्मकांड के साथ धर्म के कथित ठेकेदारों का कर्मकांड अपनी किशोरावस्था में ही देख लिया था. यही अनुभव आगे चलकर उनके लेखन का विषय बन गया. नवाब राय के नाम से लिखा उनका पहला उर्दू लघु उपन्यास 'असरार ए मा आबिद (देवस्थान रहस्य)' मंदिरों के पुजारियों के द्वारा गरीब महिलाओं पर हो रहे दुष्कर्म पर आधारित था.

उनकी शादी महज 15 साल की उम्र में हो गई थी और उनकी पत्नी की उम्र भी उनसे ज्यादा थी. प्रेमचंद ने पहली पत्नी के गुजरने के बाद एक बाल विधवा से शादी की जो उस समय के लिए एक क्रांतिकारी कदम था, इस वजह से उन्हें कई तरह के सामाजिक विरोधों का सामना भी करना पड़ा और यकीन मानिए उस वक्त ऐसा कदम प्रेमचंद जैसा व्यक्ति ही उठा सकता था. प्रेमचंद की पहली नौकरी किताब बेचने की थी. उन्हें पढ़ने का बहुत शौक था तो उन्होंने ये नौकरी सिर्फ इसलिए की ताकि उन्हें पढ़ने के लिए किताबें मिल सकें. उनकी पहली किताब जो कभी प्रकाशित नहीं हो सकी, एक ऐसे अविवाहित पुरुष पर आधारित थी जो अपने से नीची जाती की महिला से प्यार करता था. इस उपन्यास में जो नायक था वह उनके चाचा थे जो उन्हें किताबें पढ़ने पर मारा करते थे. उनकी दूसरी नौकरी एक वकील के बेटे को पढ़ाने की मिली. इसके लिए उन्हें 5 रूपए महीने मिलते थे. 

मुंशी प्रेमचंद के जीवन से जुड़े तथ्य

1900 में उन्हें सहायक अध्यापक के तौर पर सरकारी स्कूल में नौकरी मिली.
1909 में उन्होंने एक उपन्यास 'सोज़-ए-वतन' लिखा. जिसके बाद ब्रिटिश राज ने उनके घर छापा मारा और उपन्यास की 500 कापियां जला दी. इसके बाद से ही उन्होंने प्रेमचंद के नाम से लिखना शुरू किया.
1921 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन के आवाहन पर उन्होंने अपनी सरकारी नौकरी छोड़ दी और बनारस में खुद की प्रिंटिंग प्रेस 'सरस्वती प्रेस' की शुरुआत की. जहां उनकी महानतम संरचनाएं रंगभूमि, निर्मला, प्रतिज्ञा और गबन छपीं.
1934 में प्रेमचंद ने फिल्मों की दुनिया में कदम रखा. बतौर पटकथा लेखक उनकी पहली फिल्म मोहन भवनानी की 'मजदूर' रही जो मजदूरों की दर्द भरी स्थिति पर लिखी गई थी. प्रेमचंद की 9 कहानियों पर फिल्म बनी मगर उन्हें फिल्मी जगत रास नहीं आया और वह मायानगरी मुंबई छोड़कर इलाहाबाद (अब के प्रयागराज) में बस गए.
प्रेमचंद ने 15 उपन्यास, 300 कहानियां, 3 नाटक, 10 अनुवाद, 7 बाल पुस्तकें और पृष्ठों के लेख लिखे. मुंशी प्रेमचंद अपना अंतिम उपन्यास 'मंगलसूत्र' पूरा नहीं कर पाए और लम्बी बीमारी के बाद उनका 8 अक्टूबर 1936 को वाराणसी में स्वर्गवास हो गया. जिसके बाद 'मंगलसूत्र' को उनके पुत्र अमृत राय ने पूरा किया.

उनकी पुण्यतिथि पर उत्तर प्रदेश के सीएम योगी ने भी उनका स्मरण करते हुए ट्वीट किया.