IIT JEE Coaching tips: जेईई परीक्षा के लिए कब से करें तैयारी, 10वीं के छात्रों के लिए जरूरी टिप्स

आजकल हमारे देश में कोचिंग कल्चर काफी बढ़ चुका है. कई कोचिंग संस्थान बच्चों को विज्ञापनों के जरिए अपने पास बुलाते हैं, और अभिभावक यह सोचते हैं कि अगर उनका बच्चा अच्छे संस्थान से कोचिंग करेगा, तो वह जीवन में सफल होगा.

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Priya Gupta
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IIT JEE Coaching tips: हर साल लाखों बच्चे जेईई मेन्स एग्जाम में शामिल होते हैं. लेकिन इसकी तैयारी बच्चे काफी लंबे समय से करते हैं.  हर साल लाखों अभिभावक इस सवाल का सामना करते हैं: "क्या मेरे बच्चे को IIT या JEE की कोचिंग कितनी जल्दी शुरू करवा दें?" कुछ अभिभावक तो क्लास 6 से ही बच्चों को कोचिंग क्लासेस भेजना शुरू कर देते हैं, जबकि कुछ दूसरों को इस बात पर चिंता होती है कि अगर जल्द कोचिंग न भेजी तो उनका बच्चा पीछे रह जाएगा. इससे कुछ बच्चों की परफॉर्मेंस में सुधार तो होता है, लेकिन कई बच्चे अत्यधिक प्रेशर में आकर मानसिक रूप से थक जाते हैं. इस पूरे मुद्दे पर जानी-मानी कोचिंग सुपर 30 के फाउंडर आनंद कुमार ने अपनी एक खास राय दी है.

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कोचिंग कल्चर पर सवाल उठाते हुए आनंद कुमार की सलाह

आजकल हमारे देश में कोचिंग कल्चर काफी बढ़ चुका है. कई कोचिंग संस्थान बच्चों को विज्ञापनों के जरिए अपने पास बुलाते हैं, और अभिभावक यह सोचते हैं कि अगर उनका बच्चा अच्छे संस्थान से कोचिंग करेगा, तो वह जीवन में सफल होगा. कुछ वर्किंग पेरेंट्स के लिए तो यह एक आसान रास्ता बन गया है, क्योंकि उनके पास बच्चों को पढ़ाने के लिए समय नहीं होता. इसलिए वे बच्चों को छोटे उम्र से ही कोचिंग भेजने लगते हैं.

लेकिन आनंद कुमार इस कोचिंग कल्चर के खिलाफ हैं. उनका मानना है कि बच्चों को बहुत कम उम्र से जेईई की कोचिंग भेजना ठीक नहीं है. वह कहते हैं कि बच्चों पर कभी भी पढ़ाई का इतना दबाव नहीं डालना चाहिए कि उनकी सोचने की क्षमता कम हो जाए. 

कोचिंग का दबाव और बच्चों की सोचने की क्षमता पर असर

आनंद कुमार ने एक इंटरव्यू में कहा, "आजकल ज्यादातर स्टूडेंट्स आईआईटी की तैयारी के लिए कोचिंग जाते हैं, जहां उन्हें बहुत अधिक मात्रा में समस्याओं को हल करने के लिए कहा जाता है. यह प्रक्रिया इतनी तेज होती है कि बच्चे सोचने की बजाय सिर्फ सवालों का उत्तर देते जाते हैं. इस तरह से वह सिर्फ एक ही प्रकार के सवालों को हल करना सीखते हैं, और किसी समस्या को नए तरीके से हल करने की क्षमता कम हो जाती है. आनंद कुमार का यह भी कहना है कि कोचिंग में बच्चों को सटीकता से ज्यादा स्पीड पर काम करने के लिए कहा जाता है, जिससे वे नए विचार और नए तरीके सीखने के बजाय बस तकनीकी तरीके से सवालों को हल करना सीखते हैं.

सही उम्र में कोचिंग का महत्व

आनंद कुमार का मानना है कि बच्चों को 10वीं के बाद कोचिंग भेजना सबसे सही है. जब तक बच्चा 10वीं तक स्कूल और होमवर्क के साथ पढ़ाई कर रहा है, तब तक उसे कोचिंग की जरूरत नहीं होती. 10वीं तक बच्चों के पास पर्याप्त समय होता है ताकि वे अपनी मूलभूत पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित कर सकें और मानसिक दबाव से मुक्त रह सकें.  

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