बदलते भारत के अनुकूल हो सिविल सेवा का पाठ्यक्रमः जितेंद्र सिंह
केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने शनिवार को लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी (एलबीएसएनएए) में कहा कि सिविल सेवाओं के लिए पाठ्यक्रम भारत के बदलते परिदृश्य के अनुरूप होना चाहिए.
नई दिल्ली:
केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने शनिवार को लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी (एलबीएसएनएए) में कहा कि सिविल सेवाओं के लिए पाठ्यक्रम भारत के बदलते परिदृश्य के अनुरूप होना चाहिए. मंत्री ने कहा कि वर्तमान परिस्थतियों में आवश्यकता है कि लगातार तथा समय-समय पर इसे संशोधित किया जाए. संयुक्त सिविल के समापन सत्र को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, यह वर्तमान और भविष्य के प्रशासकों को उस दूरदर्शी रोडमैप के लिए फिर से उन्मुख करने के लिये भी महत्वपूर्ण है, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अगले 25 वर्षों के लिए स्वतंत्र भारत के 100 वर्ष होने तक हमारे सामने रखा है.
शनिवार को अकादमी में संयुक्त नागरिक-सैन्य कार्यक्रम (जेसीएम) के समापन सत्र को संबोधित करते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने एलबीएसएनएए, राष्ट्रीय सुशासन केंद्र (एनसीजीजी), भारतीय लोक प्रशासन संस्थान (आईआईपीए), सचिवीय प्रशिक्षण और प्रबंधन संस्थान (आईएसटीएम) जैसे उन संस्थानों द्वारा संयुक्त कार्यक्रमों का आह्वान किया. उन्होंने मसूरी अकादमी में विजिटिंग फैकल्टी का दायरा बढ़ाने और गेस्ट फैकल्टी को वैज्ञानिक विशेषज्ञों, औद्योगिक उद्यमियों, सफल स्टार्ट-अप तथा उपलब्धि हासिल करने वाली महिलाओं को और अधिक समावेशी बनाने का भी सुझाव दिया.
प्रमुख सुधारों की दिशा में कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) द्वारा उठाए गए एक कदम के बारे में जानकारी देते हुए केंद्रीय मंत्री ने कहा, मिशन कर्मयोगी की स्थापना की जा रही थी, जिसे परिभाषित करने पर नियम से भूमिका के कामकाज पर जोर दिया जाएगा. एक सप्ताह के संयुक्त नागरिक-सैन्य कार्यक्रम के सफलतापूर्वक संचालन के लिए अकादमी के पाठ्यक्रम समन्वयक एवं कर्मचारियों को बधाई देते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने कार्यक्रम में भाग लेने वाले अधिकारियों की भी सराहना की. इसका उद्देश्य सिविल सेवा अधिकारियों और सशस्त्र बलों के अधिकारियों के बीच संरचनात्मक इंटरफेस प्रदान करना है. इसका मकसद संयुक्त कर्तव्यों के दौरान एक बेहतर और साझा समझ, समन्वय तथा सहयोग व देश की राष्ट्रीय सुरक्षा सेवा करना है.
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि यह कार्यक्रम 2001 में कारगिल युद्ध के बाद शुरू किया गया था और प्रतिभागियों को बाहरी एवं आंतरिक सुरक्षा की चुनौतियों से परिचित कराने में एक लंबा सफर तय किया है तथा भाग लेने वाले अधिकारियों को अनिवार्य नागरिक-सैन्य सेना के सामने लाने में व्यापक भूमिका निभाता है. डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि भारत अपनी आजादी के 75 साल में प्रवेश कर रहा है और अगले 25 वर्षों की योजना बना रहा है, तो ऐसे कार्यक्रम हमें नागरिक तथा सैन्य अधिकारियों को आंतरिक एवं बाहरी रूप से विभिन्न संघर्ष स्थितियों में संयुक्त रूप से काम करने के लिए तैयार करने में सक्षम बनाते हैं.
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