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खर्च करने में पीछे नहीं सरकार, 'प्रोत्साहन पैकेज' की अटकलोंं के बीच बढ़ा राजकोषीय घाटा

अगस्त महीने में जारी राजकोषीय घाटे के आंकड़ों ने यह साफ कर दिया है कि सरकार की तरफ से की जाने वाली खर्च में कमी नहीं आई है।

Updated on: 05 Oct 2017, 01:08 AM

highlights

  • मुश्किलों में फंसी भारतीय अर्थव्यवस्था को मिलने वाले प्रोत्साहन पैकेज की अटकलों के बीच बढ़ा राजकोषीय घाटा
  • अगस्त महीने में चालू वित्त वर्ष 2017-18 में राजकोषीय घाटा बजट अनुमान का 96.1 फीसदी हो चुका है

नई दिल्ली:

अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की कोशिश में जुटी सरकार खर्च बढ़ाने पर विचार कर रही है। अगस्त महीने में राजकोषीय घाटे के आंकड़ों ने यह साफ कर दिया है कि सरकार की तरफ से होने वाले खर्च में कमी नहीं आई है।

शुक्रवार को सीजीए (लेखा महानियंत्रक) की तरफ से जारी आंकड़ों के मुताबिक चालू वित्त वर्ष में अप्रैल से अगस्त के बीच देश का राजकोषीय घाटा 5.25 लाख करोड़ रुपये रहा, जो पूरे साल के बजट लक्ष्य 5.46 लाख करोड़ रुपये का 96.1 फीसदी है।

2016-17 के अप्रैल-अगस्त में राजकोषीय घाटा पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में बजट का 76.4 प्रतिशत था। लेकिन वित्त वर्ष 2017-18 के पहले पांच महीनों में राजकोषीय घाटा पूरे साल के लक्ष्य के 96 प्रतिशत से अधिक हो गया।

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आंकड़ों में देखा जाए तो चालू वित्त वर्ष में अगस्त तक देश का राजकोषीय घाटा 5.25 लाख करोड़ रुपये रहा जबकि सरकार ने पूरे वित्त वर्ष के लिए 5.47 लाख करोड़ रुपये के राजकोषीय घाटे का लक्ष्य रखा है।

जब सरकार का कुल खर्च उसकी कुल राजस्व आय से ज्यादा होता है, तो यह स्थिति राजकोषीय घाटे की होती है। मंदी जैसी स्थिति में राजकोषीय घाटे को अर्थव्यवस्था के लिए सही संकेत माना जाता है।

हालांकि कई अर्थशास्त्री यह मानकर चलते हैं कि सरकार को संतुलित बजट बनाने के लिए घाटे की स्थिति से बचना चाहिए।

बढ़ता घाटा बड़ी राहत की खबर!

सरकार के लिए अब बाकी बचे करीब 7 महीने में घाटे के लक्ष्य को पूरा करने की चुनौती होगी। हालांकि इसने सरकार की तरफ से दी जाने वाली प्रोत्साहन पैकेज की संभावना को कमजोर किया है।

पिछले वित्त वर्ष में 3.5 फीसदी के घाटे के लक्ष्य को पूरा करने में सफल रही सरकार ने 2017-18 के दौरान राजकोषीय घाटे को जीडीपी के मुकाबले 3.2 फीसदी रखने का लक्ष्य रखा हुआ है, जिसे पूरा करने में खासी मशक्कत करनी पड़ सकती है।

पिछले एक साल में अर्थव्यवस्था की तस्वीर पूरी तरह से बदल चुकी है। नोटबंदी की वजह से जहां असंगठित क्षेत्र को भारी नुकसान हुआ है वहीं चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में जीडीपी के आंकड़ों ने सरकार को घुटने पर ला खड़ा किया है।

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मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही में देश की जीडीपी (सकल घरेल उत्पाद) कम होकर 5.7 फीसदी हो गई, जो पिछले तीन सालों का निचला स्तर है।

पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा के सवालों के बाद तो अब यह आंकड़ा भी संदेह के घेरे में है।

प्रोत्साहन पैकेज पर हो रहा विचार

निजी क्षेत्र के घटते निवेश की वजह से लगातार कमजोर होती अर्थव्यवस्था को सरकार मान चुकी है और इससे बाहर निकलने के लिए करीब 500 अरब रूपये के प्रोत्साहन पैकेज को दिए जाने का विचार किया जा रहा है।

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खबरों के मुताबिक सरकार यह मानकर चल रही है कि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए उसे हर हाल में खर्च बढ़ाना होगा और इसके लिए वह चालू वित्त वर्ष के राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को संशोधित करने तक का मन बना चुकी है।

मौजूदा अर्थव्यवस्था की हालत में सरकार के सामने खर्च बढ़ाने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है और इसे लेकर वित्त मंत्री संकेत भी दे चुके हैं। 

घाटे का मौजूदा आंकड़ा बता रहा है कि सरकार उसी दिशा में कदम आगे बढ़ा रही है, जिसकी उससे उम्मीद की जा रही है।

हालांकि चालू वित्त वर्ष में सरकार के लिए राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को पूरा करने में भी मुश्किलें होंगी और ऐसा नहीं होने की स्थिति में रेटिंग एजेंसियों की तरफ से दी जाने वाली रेटिंग में कटौती का खतरा हो सकता है।

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