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वन बेल्ट वन रोड प्रोजेक्ट पर अलग-थलग पड़ा भारत, शिखर बैठक का किया बहिष्कार

भारत ने शनिवार को चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) पर अपनी आपत्ति का जिक्र करते हुए चीन के वन बेल्ट वन रोड शिखर बैठक में भाग लेने से इंकार कर दिया। भारत ने साफ तौर पर कहा है कि वह ऐसी किसी परियोजना को स्वीकार नहीं कर सकता, जो संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन करता हो।

Updated on: 14 May 2017, 09:25 AM

highlights

  • भारत ने सीपीईसी पर आपत्ति जताते हुए खुद को चीन के वन बेल्ट वन रोड शिखर बैठक में भाग लेने से अलग कर लिया
  • भारत ने साफ तौर पर कहा है कि वह ऐसी किसी परियोजना को स्वीकार नहीं कर सकता, जो क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन करता हो
  • हालांकि एशिया, यूरोप और अफ्रीका को जोड़ने वाली चीन की इस महत्वाकांक्षी परियोजना में चीन भारत पर रणनीतिक रूप से बढ़त बनाने में सफल रहा है

New Delhi:

भारत ने शनिवार को चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) पर आपत्ति जताते हुए खुद को चीन के वन बेल्ट वन रोड शिखर बैठक में भाग लेने से अलग कर लिया।

भारत ने साफ तौर पर कहा है कि वह ऐसी किसी परियोजना को स्वीकार नहीं कर सकता, जो संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन करता हो।

बीजिंग में आयोजित दो दिवसीय शिखर बैठक के शुरू होने से एक दिन पहले भारत ने शनिवार को कहा कि वह वन बेल्ट, वन रोड पहल पर चीन से एक सार्थक बातचीत चाहता है।

बयान में कहा गया है, 'तथाकथित चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के संदर्भ में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय भारत के रुख से अच्छी तरह वाकिफ है। कोई भी देश किसी ऐसी परियोजना को स्वीकार नहीं कर सकता, जो संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की उसकी प्रमुख चिंताओं को नजरअंदाज करता हो।'

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सार्क में अकेला पड़ा भारत

हालांकि एशिया, यूरोप और अफ्रीका को जोड़ने वाली चीन की इस महत्वाकांक्षी परियोजना में चीन भारत पर रणनीतिक रूप से बढ़त बनाने में सफल रहा है।

एशिया, यूरोप और अफ्रीका को जोड़ने वाले ओबीओआर परियोजना को लेकर चीन दुनिया के अन्य बड़ी शक्तियों के साथ सार्क में भारत के करीबी माने जाने वाले नेपाल और बांग्लादेश को इस परियोजना में शामिल होने के लिए राजी कर चुका है।

माना जा रहा कि सम्मेलन के दौरान श्रीलंका भी इस परियोजना से जुड़ने की घोषणा कर सकता है।

वहीं पाकिस्तान पहले से ही इस परियोजना से जुड़ा गया है। वन बेल्ट वन रोड परियोजना का एक हिस्सा चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा तैयार हो चुका है, जो गिलगित बाल्तिस्तान में मौजूद है। भारत इसे लेकर ओबीओआर पर आपत्ति जताता रहा है।

वहीं वैश्विक स्तर पर अमेरिका और रूस भी इस बैठक में शामिल हो रहे हैं। मोदी सरकार के बाद से अमेरिका और भारत के रिश्तों में नए बदलाव आए हैं लेकिन आपत्तियों के बावजूद अमेरिका का इस सम्मेलन में शामिल होना भारत के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है।

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अमेरिका चीन की इस परियोजना में उत्तर कोरिया के शामिल होने का विरोध करता रहा है।

इकनॉमिक सुपरपावर की राह पर चीन

ओबीओआर लगभग 1,400 अरब डॉलर की परियोजना है, जिसे 2049 तक पूरा कर लिए जाने की उम्मीद है। दरअसल चीन इस परियोजना की मदद से हान शासन के दौरान इस्तेमाल किए जाने वाले व्यापारिक रुट को फिर से जिंदा करने की जुगत में है।

करीब 2000 साल पहले सिल्‍क रूट के जरिए पश्चिमी और पूर्वी देशों के बीच कारोबार होता था। चीन इस रूट की मदद से यूरोप को अपना रेशम बेचता था और बदले में धातुओं का आयात करता था। तब भारत भी इस व्यापारिक मार्ग का हिस्सा हुआ करता था।

हालांकि अब चीन की महत्वाकांक्षा दूसरी है। वास्तव में वन बेल्ट वन रोड प्रोजेक्ट चीन की सामरिक नीति का हिस्ता है, लेकिन इसका मुखौटा व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ाना है।

चीन की अर्थव्यवस्था पिछले एक दशक में तेजी से सिकुड़ रही है। 2015 में चीन का निर्यात घटकर 2.27 ट्रिलियन डॉलर का रह गया था जो 2014 में 2.34 ट्रिलियन डॉलर था।वहीं 2015 में चीन की आर्थिक वृद्धि दर 7.0 फीसदी से घटकर 6.5 फीसदी हो चुकी है।

चूंकि चीन की अर्थव्यवस्था निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था है, ऐसे में उसकी पूरी कोशिश दुनिया के अन्य बाजारों को अपनी अर्थव्यवस्था से जोड़ने की है, जिसमें वन बेल्ट वन रोड की अहम भूमिका होगी।

हालांकि इस पहल से चीन को दुनिया के उन बाजारों में भी पहुंच का मौका मिल जाएगा, जो कम विकसित और अपेक्षाकृत बंद अर्थव्यवस्था हैं।

भारत की चिंता यही से शुरू होती है। चूंकि इस पहल की शुरुआत चीन ने की है, इसलिए टैक्स और इंफ्रास्ट्रक्चर पर चीन का नियंत्रण होगा, जिसका सीधा फायदा चीन की इकनॉमी को होगा। वहीं भारत को व्यापारिक स्तर पर भी इस योजना का उतना लाभ नहीं मिलेगा, क्योंकि भारत की अर्थव्यवस्था चीन की तरह निर्यात आधारित नहीं है।

चीन ने जिस सधी हुई रणनीति से अपनी इस परियोजना से दुनिया के अन्य देशों के साथ भारत के पड़ोसी देशों को जोड़ने में सफल रहा है, वैसी स्थिति में अब उसके पास बेहद सीमित विकल्प ही बचते हैं। इससे पहले चीन सीपीईसी में भारत के शामिल होने की परोक्ष अपील कर चुका है। हालांकि भारत इसे लेकर लगातार आपत्ति जताता रहा है।

रणनीतिक तौर पर भारत भले ही इस परियोजना को खारिज कर दिया है लेकिन वाणिज्यिक स्तर पर उसके लिए इसे लंबे समय तक टालना मुश्किल होगा।

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