निफ्टी और सेंसेक्स के लिए शानदार रहा 2017, इन कारणों से अर्थव्यवस्था में बढ़ा निवेशकों का भरोसा
2017 में भारतीय शेयर बाजार के लिए घरेलू राजनीतिक और आर्थिक कारण सबसे अहम ड्राइवर्स साबित हुए। ऐसा नहीं है कि शेयर बाजार की मजबूत छलांग में विदेशी कारणों की भूमिका नहीं रही, लेकिन मजबूत घरेलू कारणों ने कमजोर वैश्विक संकेतों को अवसर में बदलने का काम किया।
highlights
- सेंसेक्स और निफ्टी दोनों के लिए 2017 शानदार रहा है
- निफ्टी ने पहली बार 10,000 के ऐतिहासिक स्तर को पार कर किया
- बीएसई सेंसेक्स भी 32,374.30 की रिकॉर्ड ऊंचाई को छूने में सफल रहा
नई दिल्ली:
सेंसेक्स और निफ्टी दोनों के लिए 2017 शानदार रहा है। निफ्टी ने पहली बार 10,000 के ऐतिहासिक स्तर को पार कर निवेशकों की खुशी को दोगुना कर दिया है। वहीं सेंसेक्स भी 32,374.30 की रिकॉर्ड ऊंचाई को छूने में सफल रहा।
नैशनल स्टॉक एक्सचेंज का निफ्टी दुनिया के अन्य इंडेक्स के मुकाबले सबसे ज्यादा रिटर्न देने वाला साबित हुआ है।
2017 में भारतीय शेयर बाजार के लिए घरेलू राजनीतिक और आर्थिक कारण सबसे अहम ड्राइवर्स साबित हुए। ऐसा नहीं है कि शेयर बाजार की मजबूत छलांग में विदेशी कारणों की भूमिका नहीं रही, लेकिन मजबूत घरेलू कारणों ने कमजोर वैश्विक संकेतों को अवसर में बदलने का काम किया।
भारतीय शेयर बाजार को सबसे ज्यादा मजबूती देश में राजनीतिक स्थिरता और उसके दम पर होने वाले आर्थिक सुधारों से मिली।
राजनीतिक स्थिरता और आर्थिक सुधार
उत्तर प्रदेश, पंजाब, गोवा, मणिपुर और उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के नतीजों ने केंद्र की मोदी सरकार को और अधिक स्थिरता दी है। इन चुनावों के नतीजे पहली बार राज्यसभा के समीकरण बदलने जा रहे हैं, जो अभी तक मोदी सरकार के खिलाफ रही है।
राज्यसभा में मोदी सरकार के मुकाबले विपक्ष ज्यादा प्रभावी रहा है, जिसकी वजह से सरकार को कई अहम विधेयक पर आम राय बनाने के लिए मशक्तत करनी पड़ती है, जो गुड्स और सर्विस टैक्स (जीएसटी) को लेकर हुआ। विधेयक को अंतिम रुप देने से पहले सरकार को विपक्ष की कई अहम मांगों के आगे घुटने टेकने पड़े।
निफ्टी ने पहली बार पार किया 10,000 का ऐतिहासिक स्तर
हालांकि बाजार की मौजूदा छलांग ने जीएसटी के लागू होने की बड़ी भूमिका रही है। जीएसटी लागू होने के बाद देश एकीकृत बाजार में तब्दील हुआ है, जिसने न केवल कर चोरी पर रोक लगाई है बल्कि कर भुगतान के दायरे को भी बढ़ाया है।
मानसून से मजूबत उम्मीदें
देश में लगातार दो साल सूखे की स्थिति से ग्रामीण अर्थव्यवस्था में पैदा होने वाली मांग में भारी कटौती हुई थी, जिसका असर पूरे अर्थव्यवस्था में मांग और पूर्ति के समीकरण पर पड़ा।
हालांकि इस बार बेहतर मानसून ने अर्थव्सवस्था में उम्मीद जगाई है। साथ ही लगातार कम होती महंगाई दर ने सरकार की प्रतिबद्धता को लेकर निवेशकों के भरोसे में वृद्धि की है।
इस साल मानसून के सामान्य रहने की उम्मीद है और अभी तक देश में बारिश का स्तर सामान्य रहा है।
जून में महंगाई की दर 1.54 फीसदी रही जो 1999 के बाद से सबसे कम स्तर पर है। खुदरा महंगाई दर का नियंत्रण में होना इस लिहाज से भी अहम होता है, कि इसके आधार पर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ब्याज दरों में कटौती करता है, जो अर्थव्यवस्था की गोर्थ रेट के लिहाज से सबसे अहम फैक्टर होता है।
जून में आया महंगाई का आंकड़ा मौजूदा वित्त वर्ष के लिए आरबीआई के तय किए गए लक्ष्य से भी कम था। आरबीआई ने इस साल के लिए 2.0-3.5 फीसदी महंगाई का लक्ष्य रखा है।
मजबूत आर्थिक बुनियाद
इसके अलावा राजकोषीय घाटे में आई कमी ने भी अर्थव्यवस्था में निवेशकों के भरोसे को मजबूती दी है। माना जा रहा कि आने वादे दिनों राजकोषीय घाटे के साथ चालू खाता घाटा के भी कम होने की उम्मीद है।
2017-18 के केंद्रीय बजट में सरकार ने मौजूदा वित्त वर्ष के लिए कुल जीडीपी का 3.2 पर्सेंट राजकोषीय घाटे का लक्ष्य रखा है।
साथ ही डॉलर के मुकाबले रुपये में आई स्थिरता से बाजार को मजबूती मिली है। भारतीय मुद्रा एशिया की अन्य करेंसी के मुकाबले ज्यादा स्थिर रहा है।
मजबूत घरेलू कारणों के दम पर भारतीय शेयर बाजार में इस महीने निवेशकों ने करीब 2.5 अरब डॉलर का पूंजी निवेश किया।
गौरतलब है कि नोटबंदी ने भारतीय अर्थव्यवस्था की ग्रोथ रेट को लेकर कई तरह की आशंकाएं पैदा कर दी थीं। कई रेटिंग एजेंसियों ने मोदी सरकार के इस फैसले से अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले असर को देखते हुए ग्रोथ रेट के अनुमान में कटौती कर दी थी।
नोटबंदी की वजह से जनवरी-मार्च तिमाही में देश की जीडीपी ग्रोथ रेट कम होकर 6.1 फीसदी हो गई थी, जो पिछले दो सालों का न्यूनतम स्तर था।
हालांकि मजबूत आर्थिक बुनियाद, राजनीतिक स्थिरता और आर्थिक सुधारों के साथ देश की अर्थव्यवस्था में पारदर्शिता लाए जाने की मोदी सरकार की कोशिशों ने नोटबंदी के असर को खत्म करती दिखाई दे रही है।
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