अब सरकार से बड़े आर्थिक सुधार की उम्मीद होगी बेमानी: एसोचैम
गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजों से ठीक पहले औद्योगिक संगठन एसोचैम ने कहा है कि आने वाले दिनों में भारतीय कारोबारी जगत को किसी बड़े आर्थिक सुधार की उम्मीद नहीं लगानी चाहिए।
highlights
- गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनावी नतीजे से पहले एसोचैम की रिपोर्ट
- रिपोर्ट में कहा गया है कि आने वाले दिनों राजनीतिक कारण अर्थव्यवस्था पर ज्यादा प्रभावी होंगे
नई दिल्ली:
गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजों से ठीक पहले औद्योगिक संगठन एसोचैम ने कहा है कि आने वाले दिनों में भारतीय कारोबारी जगत को किसी बड़े आर्थिक सुधार की उम्मीद नहीं लगानी चाहिए।
एसोचैम की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि 2018 में गुजरात समेत देश के अन्य प्रमुख राज्यों में विधानसभा चुनावों के खत्म होने के बाद भारतीय कारोबारी जगत को राजनीतिक वास्तविकताओं को ध्यान में रखना होगा।
इसमें कहा गया है कि इन दोनों चुनावों के नतीजों का असर न सिर्फ सरकार के आर्थिक फैसलों पर होगा, बल्कि आगामी बजट पर भी होगा, जो एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) का अंतिम पूर्ण बजट होगा। 2019 में अगला लोकसभा चुनाव होना है, जिसे लेकर देश के प्रमुख दलों ने अपनी कमर कस ली है।
गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजे 18 दिसंबर को आने हैं। राजनीतिक दलों के साथ बाजार की नजर इस पर टिकी हुई है।
गौरतलब है कि एग्जिट पोल्स में दोनों राज्यों में बीजेपी की सरकार बनती दिखाई दे रही है और बाजार पर इस खबर का सकारात्मक असर देखने को मिला था।
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एग्जिट पोल्स में जहां गुजरात में बीजेपी में सत्ता में बनी दिखाई दे रही है वहीं हिमाचल में 5 सालों के अंतराल के बाद उसकी वापसी हो रही है।
इन चुनावों के बाद और 2019 के आम चुनाव के पहले चार राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं, जिनमें तीन में बीजेपी की सरकार है जबकि दक्षिणी राज्य कर्नाटक में वह वापसी की पुरजोर कोशिश कर रही है।
बयान में कहा गया है, '2019 के लोकसभा चुनावों से पहले 2018 में राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। निश्चित रूप से केंद्र और राज्य सरकार की नीतियों पर मतदातओं की भावना का असर होगा। जिसके नतीजे में कोई भी कठिन सुधार जैसे श्रम कानून को लचीला बनाना संभव नहीं होगा। इसलिए इस मोर्चे पर भारतीय कारोबारी जगत को ज्यादा उम्मीदें नहीं लगानी चाहिए।'
रिपोर्ट में कहा गया है कि मौजूदा राजनीतिक-आर्थिक परिवेश में जीएसटी (गुड्स एंड सर्विस टैक्स) के आगे और सुव्यवस्थित होने की उम्मीद है। एक जुलाई से इस व्यवस्था के लागू होने के बाद इसमें कई अहम बदलाव किए जा चुके हैं।
हालिया फैसले में जहां सरकार ने सबसे ऊपरी 28 फीसदी वाले स्लैब में मौजूद 225 सामानों की संख्या को कम कर महज 50 कर दिया है वहीं आने वाले दिनों 12 और 18 फीसदी के टैक्स स्लैब को मिलाए जाने पर विचार किया जा रहा है।
रिपोर्ट के मुताबिक आने वाले दिनों में जीएसटी की दरों को और अधिक तर्कसंगत बनाया जा सकता है।
चैंबर ने कहा, 'जीएसटी से व्यापारियों को काफी समस्याएं आई हैं और गुजरात चुनावों के दौरान यह राजनीतिक दलों के लिए प्रमुख चुनावी मुद्दा रहा। इसके अलावा छोटे और मझोले कारोबार को बजट प्रस्तावों में बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। अल्पकालिक अवधि में रोजगार के अवसर पैदा करने में उनकी भूमिका को पहचाना जा रहा है और रोजगार सृजन 2019 के आम चुनावों में एक मुद्दा होगा।'
एसोचैम ने कहा, 'आगे साल 2018 और 2019 में हम ग्रामीण परिदृश्य पर बड़ा ध्यान देने की उम्मीद रखते हैं, जिसमें किसानों, ग्रामीण और खेती से जुड़े बुनियादी ढांचे को समर्थन देना शामिल है। इसकी प्रकार से जो कंपनियां कृषि अर्थव्यवस्था से सीधे जुड़ी होंगी, उनको फायदा मिलने की उम्मीद है। आनेवाले बजट में इसकी व्यापक उम्मीद की जा रही है।'
जिन कारकों पर खासतौर से ध्यान दिया जाना चाहिए, उसमें महंगाई प्रमुख है, जो कि चुनावी साल में सरकार की शीर्ष प्राथमिकता होने जा रही है।
गौरतलब है कि पिछले तीन-चार महीनों से महंगाई में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। नवंबर महीने में महंगाई भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के तय किए गए अनुुमान 4 फीसदी को भी पार कर चुकी है।
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