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फंसे कर्जों के समाधान के मौजूदा प्रणाली पर विचार जारी: जेटली

केन्द्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने शनिवार को कहा है कि पुराने कानून कॉरपोरेट जगत में दिवाला और दिवालियापन की समस्या से निपटने में सिर्फ आंशिक रूप से प्रभावी हैं।

Updated on: 19 Aug 2017, 05:11 PM

highlights

  • पुराने कानून कॉरपोरेट जगत में दिवालियापन की समस्या से निपटने में नाकाफी
  • दिवाला एवं दिवालियापन संहिता, 2016 सरकार का एक महत्वपूर्ण आर्थिक सुधार है

नई दिल्ली:

केन्द्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने शनिवार को कहा है कि पुराने कानून कॉरपोरेट जगत में दिवाला और दिवालियापन की समस्या से निपटने में सिर्फ आंशिक रूप से प्रभावी हैं, इसलिए अभी इस मुद्दे से निपटने के लिए मौजूदा प्रणाली के प्रभावशीलता को आंकना होगा।

जेटली ने कहा, 'इससे पहले, यदि कंपनियां दिवालिया होना चाहती थीं, तो उनके मामले अनिश्चित काल के लिए अदालतों में फंस जाते थे। एसआईसीए ने देनदारों के खिलाफ केवल 'लोहे का परदा' प्रदान किया था, अन्यथा यह एक पूर्ण विफलता थी और जिस उद्देश्य के लिए इसका गठन किया गया था, उसका बहुत कम उद्देश्य ही हासिल किया जा सका।'

उन्होंने कहा, 'कर्ज रिकवरी ट्राइब्यूनल (डीआरटी) कुछ हद तक तेज था, लेकिन अनुमानित रूप से प्रभावी नहीं था, जबकि सिक इंडस्ट्रियल कंपनीज एक्ट (एसआईसीए) विफल रहा था और वित्तीय परिसंपत्तियों के प्रतिभूतिकरण और पुनर्निर्माण और सुरक्षा ब्याज अधिनियम (एसएआरएफईएसआई) के लागू करने से केवल सीमित उद्देश्य ही पूरा हुआ।'

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इस मुद्दे को फिलहाल दिवालिया और दिवालियापन बोर्ड (आईबीबीआई) देख रही है। वित्त मंत्री ने कहा कि दिवाला और दिवालियापन संहिता, 2016 द्वारा शुरुआती नौ महीनों के दौरान प्राप्त किए गए अनुभवों और सामने आई चुनौतियों पर भी चर्चा की जाएगी, जिन्हें दूर करने की जरूरत है।

जेटली ने दिवाला और दिवालियापन पर आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन 'दिवाला और दिवालियापन: बदलता प्रतिमान' में यह बातें कही, जिसका आयोजन कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय (एमसीए), नेशनल फाउंडेशन फॉर कॉरपोरेट गवर्नेस (एनएफसीजी) और भारतीय दिवाला एवं दिवालियापन बोर्ड (आईबीबीआई) द्वारा संयुक्त रूप से किया जा रहा है।

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दिवाला एवं दिवालियापन संहिता, 2016 ('कोड') सरकार का एक महत्वपूर्ण आर्थिक सुधार है, जो दिवालियेपन से जुड़ी समस्या के हल के लिए आवश्यक एकीकृत कानूनी ढांचा प्रदान करती है और इसके साथ ही कंपनियों को तेजी से एवं कुशलतापूर्वक बाहर निकलने की रूपरेखा मुहैया कराती है।

इस संहिता का उद्देश्य अपनी समयबद्ध प्रक्रियाओं के जरिए दिवालियापन प्रक्रिया के बारे में और अधिक निश्चितता प्रदान करना एवं भारतीय वैधानिक व्यवस्था को दुनिया के कानूनी तौर पर कुछ सर्वाधिक उन्नत अधिकार क्षेत्रों के समतुल्य करना है।

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