द्वादश ज्योतिर्लिंग में प्रथम सोमनाथ मंदिर, यहां कण-कण में केवल महादेव नहीं, भगवान कृष्ण का भी वास

द्वादश ज्योतिर्लिंग में प्रथम सोमनाथ मंदिर, यहां कण-कण में केवल महादेव नहीं, भगवान कृष्ण का भी वास

द्वादश ज्योतिर्लिंग में प्रथम सोमनाथ मंदिर, यहां कण-कण में केवल महादेव नहीं, भगवान कृष्ण का भी वास

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IANS
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द्वादश ज्योतिर्लिंग में प्रथम सोमनाथ मंदिर, यहां कण-कण में केवल महादेव नहीं, भगवान कृष्ण का भी वास

(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)

नई दिल्ली, 30 जून (आईएएनएस)। भारत के गुजरात के वेरावल के प्रभास पाटन में स्थित सोमनाथ बारह ज्योतिर्लिंगों में प्रथम ज्योतिर्लिंग है और ये स्वयंभू हैं। सोमनाथ केवल महादेव के ज्योतिर्लिंग के लिए ही मशहूर नहीं है, लेकिन यह वही स्थान है, जहां भगवान श्रीकृष्ण ने प्राण त्यागा था।

इस ज्योतिर्लिंग के बारे में शास्त्रों में वर्णित है, सौराष्ट्रदेशे विशदेऽतिरम्ये ज्योतिर्मयं चन्द्रकलावतंसम्। भक्तिप्रदानाय कृपावतीर्णं तं सोमनाथं शरणं प्रपद्ये।

यहां मंदिर परिसर में समुद्र के किनारे दक्षिण में एक बाण स्तंभ है, जो छठी शताब्दी से मौजूद है। यह बाण स्तंभ एक दिशादर्शक स्तंभ है, जिसके ऊपरी सिरे पर एक तीर बना हुआ है, जिसका मुख समुद्र की तरफ है। इस बाण स्तंभ पर आसमुद्रांत दक्षिण ध्रुव, पर्यंत अबाधित ज्योतिमार्ग लिखा हुआ है, जिसका मतलब है कि समुद्र के इस बिंदु से दक्षिण ध्रुव तक सीधी रेखा में किसी भी तरह की बाधा नहीं है यानी जब विज्ञान इतना प्रभावी नहीं था तब भी हमारे पुरातन शास्त्रों में यह वर्णित है।

गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में यह मंदिर स्थित है और इसकी ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्ता अनादिकाल से बनी हुई है। इस क्षेत्र को प्रभास क्षेत्र भी कहा जाता था। कहते हैं कि यहीं भगवान श्रीकृष्ण ने जरा नामक व्याध के बाण के पैर के तलवे में लगने के बाद प्राण त्याग दिया था। इस प्रभास क्षेत्र और यहां स्थित भगवान सोमनाथ के ज्योतिर्लिंग का वर्णन महाभारत, शिवपुराण, श्रीमद्भागवत तथा स्कंदपुराण में मिलता है। इसके साथ ही ऋग्वेद में भी सोमेश्वर यानी सोमनाथ का जिक्र मिलता है।

इस स्थान के बारे में साफ वर्णित है कि चंद्रमा का एक नाम सोम है और उन्होंने भगवान शिव की यहां तपस्या कर श्राप से मुक्ति पाई थी और भगवान शिव यहां ज्योति रूप में विराजमान हुए थे। ऐसे में इस ज्योतिर्लिंग का नाम सोम के नाथ यानी सोमनाथ पड़ा। कहते हैं इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन-पूजन से भक्तों के जन्म-जन्मांतर के सारे पाप और दुष्कृत्य का विनाश हो जाता है।

अरब सागर के तट पर स्थित इस ज्योतिर्लिंग के पास त्रिवेणी संगम (तीन नदियों - कपिला, हिरण और सरस्वती का संगम) है। मान्यता है कि इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से कई रोगों से मुक्ति मिल जाती है। इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि अगर कुष्ठ रोगी सोमनाथ महादेव के दर्शन करते हैं और मृत्युंजय मंत्र का जाप करते हैं तो उनको कुष्ठ रोग से मुक्ति मिलती है।

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के बारे में स्कंद पुराण के प्रभास खंड में उल्लेखित है कि इस ज्योतिर्लिंग का नाम हर नई सृष्टि के साथ बदल जाता है। इस क्रम में जब वर्तमान सृष्टि का अंत हो जाएगा और ब्रह्मा जी नई सृष्टि निर्मित करेंगे तब सोमनाथ का नाम प्राणनाथ होगा। स्कंदपुराण के प्रभास खंड के अनुसार माता पार्वती के एक प्रश्न का उत्तर देते हुए महादेव कहते हैं कि अब तक सोमनाथ के आठ नाम हो चुके हैं।

अभी वर्तमान में जो सोमनाथ का मंदिर है, उससे सटे ही महारानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा स्थापित एक और सोमनाथ मंदिर है, जिसे पुराना सोमनाथ मंदिर कहते हैं और इसके बारे में मान्यता है कि इसमें जो शिवलिंग है, वह स्वयंभू है।

यहीं पास में भालका तीर्थ है, पौराणिक कथाओं के अनुसार, यहां भगवान कृष्ण ने अपना अंतिम समय बिताया था। यह स्थान कृष्ण भक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है और सोमनाथ के प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक है। कहा जाता है कि यहीं पर एक शिकारी ने गलती से भगवान कृष्ण के पैर में तीर मार दिया था, जिससे उनका देहांत हुआ। इस घटना के कारण इस स्थान को ‘देहोत्सर्ग’ के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है ‘शरीर का त्याग’।

इसके अलावा यहां पास में गोलोक धाम तीर्थ भी है। इसके बारे में मान्यता है कि यहां श्रीकृष्ण जी का निज धाम या निवास था और यहां एक बलदेव गुफा है। जिसके बारे में कहा जाता है कि कृष्ण के बड़े भाई बलदेव ने यहीं से अपने मूल नाग रूप में अपनी अंतिम यात्रा की थी।

यहीं पास में त्रिवेणी संगम है, जहां कपिला, हिरण और सरस्वती का संगम है। इसको लेकर मान्यता है कि यहां स्नान करने मात्र से लोगों को सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है।

वहीं, त्रिवेणी घाट के करीब सूर्य मंदिर स्थित है। यहां सूर्य देव के साथ माता छाया का भी विग्रह स्थित है। यह गुजरात के पुराने सूर्य मंदिरों में से एक है। यहीं पास में परशुराम मंदिर सोमनाथ के सबसे पुराने और पवित्र मंदिरों में से एक है। यह मंदिर भगवान विष्णु के छठे अवतार, भगवान परशुराम को समर्पित है। यह त्रिवेणी तीर्थ नदी के तट पर उसी स्थान पर स्थित है, जहां भगवान सोमनाथ ने भगवान परशुराम को आशीर्वाद दिया था और उन्हें क्षत्रिय हत्या के श्राप से मुक्ति दिलाई थी।

यहां गीता मंदिर भी स्थित है, जो सोमनाथ का एक अनूठा मंदिर है, जो पूरी तरह से भगवद्गीता के सिद्धांतों और शिक्षाओं को समर्पित है। यह मंदिर न केवल एक पूजा स्थल है, बल्कि एक शैक्षिक केंद्र भी है, जहां लोग गीता के ज्ञान को समझने और अपने जीवन में उतारने के लिए आते हैं।

यहीं पास में बाणगंगा भी है। यह सोमनाथ मंदिर से कुछ ही दूरी पर समुद्र में स्थित है। जहां कई शिवलिंग मौजूद हैं। ज्वार के दौरान ही इन शिवलिंग के दर्शन हो सकते हैं। यहां के बारे में कहा जाता है कि यहां कुल 5 शिवलिंग हैं, जिनमें से श्रद्धालुओं को दो या तीन शिवलिंग के ही दर्शन हो पाते हैं।

--आईएएनएस

जीकेटी/

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