नई दिल्ली, 5 जून (आईएएनएस)। दिल्ली के द्वारका स्थित दिल्ली पब्लिक स्कूल (डीपीएस) से 31 छात्रों के निष्कासन के मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने स्कूल प्रशासन को कड़ी फटकार लगाई। यह मामला उस वक्त सामने आया जब फीस नहीं भरने के कारण स्कूल ने छात्रों के नाम काट दिए और उन्हें स्कूल में प्रवेश से रोकने के लिए बाउंसरों की तैनाती कर दी।
हाईकोर्ट ने नाराज़गी जताते हुए कहा कि किसी भी स्कूल को फीस वसूली के लिए इस प्रकार के अमानवीय और अपमानजनक तरीके नहीं अपना सकते। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि छात्रों की स्कूल में एंट्री रोकने के लिए बाउंसरों का इस्तेमाल करना पूरी तरह से निंदनीय और अनैतिक है। यह न सिर्फ बच्चों की गरिमा के प्रति असम्मान है, बल्कि यह दर्शाता है कि स्कूल प्रशासन को शिक्षण संस्था की मूलभूत भूमिका और जिम्मेदारी की समुचित समझ नहीं है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि फीस न भरने के कारण किसी छात्र को सार्वजनिक रूप से शर्मिंदा किया जाता है, धमकाया जाता है या उसके खिलाफ बल का इस्तेमाल किया जाता है, तो यह सीधे तौर पर मानसिक उत्पीड़न और आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाने के बराबर है। स्कूलों में बाउंसरों की मौजूदगी एक भय और बहिष्कार का माहौल बनाती है, जो किसी भी स्कूल के मूल चरित्र के बिल्कुल विपरीत है। शिक्षा संस्थानों को व्यावसायिक उद्यम की तरह संचालित नहीं किया जा सकता, भले ही वह फीस लेकर सेवाएं प्रदान करते हों। स्कूलों का उद्देश्य केवल मुनाफा कमाना नहीं, बल्कि बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देना, नैतिक मूल्यों का विकास करना और राष्ट्र निर्माण में योगदान देना है।
हाईकोर्ट ने यह आदेश उन छात्रों के अभिभावकों द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया, जिनके बच्चों को फीस न भरने के कारण स्कूल से निष्कासित कर दिया गया था। अदालत को बताया गया कि स्कूल प्रशासन ने अब 31 छात्रों के निष्कासन का फैसला वापस ले लिया है और उन्हें पुनः स्कूल में प्रवेश दे दिया गया है। इसके चलते कोर्ट ने माना कि अब विवाद की स्थिति समाप्त हो चुकी है और याचिका का निपटारा कर दिया गया।
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