कैग रिपोर्ट का दावा, दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने दिये झूठे विज्ञापन
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट के अनुसार अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली दिल्ली की आम आदमी पार्टी (सरकार) ने विज्ञापनों में झूठे दावे किये।
highlights
- दिल्ली के बाहर केजरीवाल सरकार ने 29 करोड़ रुपये विज्ञापन पर खर्च किये
- आप सरकार ने कम लागत में बनी फ्लाईओवर संबंधी भी गलत डाटा दिया
- कैग रिपोर्ट में खुलासा, फरवरी 2016 में 14 राज्यों के 26 राष्ट्रीय और 37 प्रादेशिक अखबारों में विज्ञापन दिए
नई दिल्ली:
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट के अनुसार अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली दिल्ली की आम आदमी पार्टी (सरकार) ने विज्ञापनों में झूठे दावे किये। कैग की रिपोर्ट के अनुसार, ''दिल्ली सरकार ने अपने टीवी विज्ञापनों में 'दिल्ली सरकार' की जगह केजरीवाल सरकार लिखा गया और इन विज्ञापनों पर 5.38 करोड़ खर्च किये गए।''
रिपोर्ट में कहा गया है कि 'सरकार ने फरवरी 2016 में 14 राज्यों के 26 राष्ट्रीय और 37 प्रादेशिक अखबारों में विज्ञापन दिए।'
विज्ञापनों में दिया गया गलत डाटा
कैग रिपोर्ट के अनुसार, 'दिल्ली विज्ञापनों में तथ्य गलत दिए गए। सरकार ने फ्लाईओवर निर्माण में पैसे बचने का दावा किया, जबकि निर्माण काम बाकि था और जो फाइनल लागत बतायी गयी वो अनुमान था न कि कुल लागत।'
इसी तरह से एक के विज्ञापन में दावा किया गया कि डिस्पेंसरी पहले 5 करोड़ बनती थी, वो अब 20 लाख में बनने लगी है, जबकि इसके सपोर्ट में कोई तथ्य नहीं दिए गए। जब हेल्थ डायरेक्टरेट से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि 2015-16 में कोई नई डिस्पेंसरी नहीं बनी, इसलिए कोई तुलना नहीं की जा सकती।
दिल्ली सरकार ने विज्ञापन जारी करते वक्त उसके प्रभाव का अध्ययन नहीं किया, बिना उसके फायदे सोचे विज्ञापन दिए गए।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर भी किये करोड़ो खर्च
प्रिंट, टीवी, रेडियो पर 33.40 करोड़ के विज्ञापनों में दिल्ली से सम्बंधित विज्ञापनों पर सिर्फ 4.69 करोड़ का खर्चा हुआ, जबकि दूसरे राज्यों में दिए विज्ञापनों पर 28.71 करोड़ खर्च हुए।
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दिल्ली के तीनों नगर निगमों ने डेंगू की रोकथाम के चलते न कोई प्रयोगशाला का गठन किया और न ही इसकी रोकथाम को लिये कोई मानक प्रचालन प्रकिया तैयार की।
नगर निगमों ने घरों में लार्वा मानिटरिंग के लिये 104.93 करोड़ का खर्च किया और सिर्फ 3358 ऐसे लोगों को इसके लिये काम पर लगाया जो इस काम में कुशल नही थे और इनके कामों की कोई मॉनिटरिंग कहीं भी नहीं की गयी।
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अप्रैल 2013-2016 के दौरान मच्छरों को नियंत्रित करने के लिये जरूरी उपकरण और कीटनाशकों के लिये 88.26 करोड़ रूपये का खर्च किया गया। लेकिन इसकी निगरानी के चलते निश्चित नीति तैयार नही की गयी। कीटनाशकों के इस्तेमाल के लिये सही मोहल्ले या परिसरों को मार्क भी नहीं किया गया।
दिल्ली छावनी बोर्ड में साल 2013-14 से साल 2015-16 के दौरान मच्छरों के नियंत्रण के 1.80 करोड़ आवंटित किये गये जिसमें से 74% निधियों का उपयोग नहीं हुआ। इसके लिये निगम ने न कोई योजना तैयार की और न ही ठीक प्रकार से इलाके में फॉगिंग की गयी।
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सीएजी रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण दिल्ली नगर परिषद ने 22436 मामलों की ही जानकारी दी जबकि अस्पतालों में डेंगू के 67578 पॉज़िटिव मामले सामने आये। साल 2015 में 409 डेंगू से मौत का आँकड़ा दिया। जबकि समीक्षा समिति ने 60 मौतों की ही पुष्टि की।
दिल्ली सरकार ने 2013-14 से 2015-16 के दौरान डेंगू की रोकथाम के लिये जागरूकता अभियानों पर 10.04 करोड़ रूपये खर्च किये लेकिन ये विज्ञापन सितंबर और नवंबर महीने के बीच यानी डेंगू बीमारी बढ़ने के बाद जारी किये गये। जिनका फिर कोई मतलब नही निकलता। इसी तरह दिल्ली नगर निगम ने भी हर साल मानसून के बाद अक्टूबर में जनजागरूक अभियानों की शुरूआत की।
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