केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) स्पेशल कोर्ट मुंबई में आज से सोहराबुद्दीन के कथित फेक एनकाउंटर मामले की सुनवाई शुरू करेगी।
इस मामले में 22 आरोपियों के ख़िलाफ़ चार्जशीट दायर की गई है। जिनमें से 20 लोगों को कोर्ट में उपस्थित होने के लिए समन जारी किया गया है।
सोहराबुद्दीन के भाई नईमुद्दीन भी गवाह के तौर पर बुधवार को कोर्ट में मौज़ूद रहेंगे।
22 नवम्बर को विशेष सीबीआई अभियोजक बी पी राजू ने कहा, 'अदालत ने सोहराबुद्दीन के भाई नयमुद्दीन और कुछ अन्य को समन जारी किया है और 29 नवंबर से साक्ष्यों को दर्ज किया जाएगा।'
अदालत ने पिछले महीने 22 आरोपियों पर आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत आरोप तय किये थे। सभी आरोपियों ने खुद को निर्दोष बताया था।
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इससे पहले 1 अगस्त को सीबीआई की विशेष अदालत ने गुजरात के पूर्व शीर्ष पुलिस अधिकारी डी.जी.बंजारा तथा एम.एन.दिनेश को साल 2005 में शोहराबुद्दीन शेख 'फर्जी मुठभेड़' मामले में बरी कर दिया था।
भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के अधिकारी बंजारा अहमदाबाद पुलिस में अपराध शाखा के प्रमुख थे और बाद में पुलिस उपनिरीक्षक बने, जबकि आईपीएस अधिकारी दिनेश राजस्थान पुलिस में कार्यरत थे और बाद में गुजरात आतंकवाद-रोधी दस्ते के प्रमुख बनाए गए।
अदालत के इस फैसले से सीबीआई को जोरदार झटका लगा, जिसने मामले में बंजारा पर मुख्य साजिशकर्ता होने का आरोप लगाया था, जबकि दिनेश ने उस मुठभेड़ का नेतृत्व किया था, जिसमें बंजारा को 12 साल पहले मार गिराया गया था।
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इस मामले को लेकर राजनीतिक गलियारों में काफी घमासान हुआ, जिसमें एक संदिग्ध बदमाश सोहराबुद्दीन शेख को गुजरात में नवंबर 2005 में एक मुठभेड़ में मार गिराया गया था।
मामले की जांच करने वाली सीबीआई के मुताबिक, शेख तथा उसकी पत्नी कौसर बी को गुजरात एटीएस की टीम ने कथित तौर पर तब पकड़ा था, जब वे बस से आंध्र प्रदेश के हैदराबाद से महाराष्ट्र के सांगली जा रहे थे।
शेख को गांधीनगर के निकट मुठभेड़ में मार गिराया गया था, जबकि उसकी पत्नी को कुछ दिनों बाद मारा गया था। शेख को वैश्विक आतंकवादी संगठन से जुड़ा बताया गया और कहा कि वह 'हमले की साजिश' कर रहा था।
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दंपत्ति के साथ यात्रा कर रहे एक सह यात्री तुलसीराम प्रजापति को दिसंबर 2006 में बनासकांठा जिले के छापरी गांव में मुठभेड़ में पुलिस ने मार गिराया था। प्रजापति इस मामले का एकमात्र चश्मदीद था।
वंजारा साल 2007 से लेकर फरवरी 2015 तक न्यायिक हिरासत में रहे। फरवरी 2015 में उन्हें जमानत मिली, लेकिन साल 2013 में उन्होंने सेवा से इस्तीफा दे दिया, जबकि दिनेश साल 2014 में रिहा हुए।
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Source : News Nation Bureau