दिल्ली पुलिस के एएसआई ने 15 वर्ष बाद हत्या और अपहरण के आरोपी को ऐसे किया गिरफ्तार
दिल्ली पुलिस के सहायक उपनिरीक्षक (एएसआई) संजीव तोमर की 15 साल पुरानी तलाश 28 मई को आरोपी की गिरफ्तारी के साथ समाप्त हुई. दरअसल, 47 वर्षीय एएसआई तोमर बदरपुर पुलिस स्टेशन में 2007 में कांस्टेबल के पद पर तैनात थे.
highlights
- अपहरणकर्ता की तलाश 15 साल के इंतजार के बाद हुई समाप्त
- पुलिस वेष बदलकर रख रही थी आरोपी की हरकत पर नजर
- मुखबिरों का गांव में बिछा रखा था जाल, पहुंचते ही मिली जानकारी
नई दिल्ली:
दिल्ली पुलिस के सहायक उपनिरीक्षक (एएसआई) संजीव तोमर की 15 साल पुरानी तलाश 28 मई को आरोपी की गिरफ्तारी के साथ समाप्त हुई. दरअसल, 47 वर्षीय एएसआई तोमर बदरपुर पुलिस स्टेशन में 2007 में कांस्टेबल के पद पर तैनात थे. इसी दौरान 45 वर्षीय महेश चौधरी के 22 वर्षीय बेटे राकेश चौधरी ने 4 अप्रैल, 2007 को पिता की गुमशुदगी की शिकायत दर्ज कराई थी. चौधरी के परिवार से एकमात्र सुराग यह मिला था कि चौधरी ने अपनी पत्नी से हरिओम नाम के शख्स के लिए अंडा करी पकाने के लिए कहा था, जो उसके साथ कानपुर जाने वाला था. इस केस को सुलझाते-सुलझाते इलता वक्त लग गया कि पीड़ितों ने न्याय मिलने की आस भी छोड़ दी थी. लेकिन दिल्ली पुलिस के सहायक उपनिरीक्षक (एएसआई) संजीव तोमर केस को सुलझाने पर अड़े रहे और आखिरकार 15 साल बाद उन्हें सफलता हाथ लगी.
कॉल रिकॉर्ड से संदिग्ध तक पहुंची पुलिस
मामले की जांच के दौरान तोमर ने चौधरी के सेल फोन का कॉल विवरण रिकॉर्ड खंगाला तो कानपुर के पास अकबरपुर में उसके अंतिम स्थान का पता चला था. इसके साथ ही यह भी पता चला कि कानपुर यात्रा शुरू करने से पहले चौधरी को एक नंबर से तीन या चार कॉल आए थे, जो बाद में कानपुर देहात जिले के जठियापुर गांव के मूल निवासी हरिओम नाम के एक व्यक्ति का था. इसलिए, हरिओम को मुख्य संदिग्ध माना गया. जांच से पता चला कि उसे टवेरा को अपने पैतृक गांव और फिर कानपुर में अपनी पत्नी के घर जाते हुए देखा गया था.
संदिग्ध को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस वालों ने बदले कई रूप
इसके बाद अगले कुछ हफ्तों में हरिओम के गांव में पुलिस ने कई छापे मारे, लेकिन वह पुलिस की पकड़ में नहीं आया. अगले दो वर्षों में उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और गुजरात में उनसे जुड़े स्थानों पर पुलिस ने छापेमारी की, लेकिन संदिग्ध आरोपी का कोई पता नहीं चला. तोमर ने बताया कि उन्होंने और टीम के अन्य सदस्यों ने ओम के बारे में जानकारी इकट्ठा करने के लिए फेरीवालों, अनाज व्यापारियों, सर्वेक्षकों और यहां तक कि बिजली विभाग के कर्मचारियों के रूप में भी भेष बदलकर काम किया. उन्होंने बताया कि जून 2008 में हमने ओम के गांव के बाहर एक सप्ताह से अधिक समय बिताया. यह जानकारी मिलने के बाद कि वह अपने परिवार के सदस्यों से मिलने आएगा. मैंने 400 रुपए में एक पुरानी साइकिल खरीदी और एक फेरीवाले की तरह कपड़े पहने और उसके गांव में मूंगफली बेची. उन्होंने बताया कि हमारी जानकारी सही थी, लेकिन ओम ने लगभग 3 बजे एक घंटे के लिए अपने परिवार के पास जाकर हमें चौंका दिया. जब तक हम उसके घर पहुंचे, तब तक वह फरार हो चुका था.
2009 में बंद कर दिया गया था मामला
गौरतलब है कि अप्रैल 2007 और जुलाई 2009 के बीच चौधरी अपहरण का मामला चार जांच अधिकारियों को सौंपा गया था. इस दौरान संदिग्ध की गिरफ्तारी के लिए विभिन्न टीमों द्वारा कई छापे मारे गए थे. जुलाई 2009 में, हरिओम को घोषित अपराधी (पीओ) घोषित किया गया था. मामले को अनसुलझा करार दिए जाने के बाद बंद कर दिया गया था, हालांकि पुलिस ने उसकी गिरफ्तारी के लिए 50,000 रुपए नकद इनाम की भी घोषणा की थी. यूं तो यह मामला कागजों पर दम तोड़ चुका था, लेकिन यह एएसआई तोमर के लिए एक मिशन बन गया था.
चौधरी के परिवार ने की एसआई तोमर के काम की तारीफ
इस मामले पर मृतक के बेटे राकेश चौधरी ने कहा कि घटना के एक साल तक मैंने पिता की हत्या की जांच में पुलिस की सहायता की और उनके साथ कई छापेमारी में भी गया. लेकिन फिर मैंने सहनशक्ति खो दी. पांच भाई-बहनों में सबसे बड़ा होने के नाते मेरी जिम्मेदारी थी कि मैं उनकी और अपनी मां की देखभाल करूं,. लिहाजा, मैंने मामले पर ध्यान देना छोड़ दिया और आजीविका कमाने पर ध्यान केंद्रित किया. लेकिन तोमर सर बिल्कुल अलग व्यक्ति हैं. उन्होंने कभी हार नहीं मानी और पूरे समय मेरे परिवार के संपर्क में रहे. वहीं, चौधरी के बेटे राकेश ने कहा कि हरिओम एक बार उनके पिता से मिलने उसकी दुकान पर आया था. उनके पिता उन्हें पिछले कुछ हफ्तों से एक ड्राइवर के रूप में जानते थे, लेकिन परिवार को यह नहीं पता था कि हरी ओम कहां रहता है.
डेढ़ दशक के बाद ऐसे मिली सफलता
अपहरण और हत्या के संदिग्ध आरोपी की गिरफ्तारी के बाद एएसआई तोमर ने बताया कि अपराध शाखा के कर्मियों को अनसुलझे मामलों पर काम करने और वर्षों से फरार भगोड़े अपराधियों को गिरफ्तार करने के लिए कहा गया था. इसे चौधरी मामले को आधिकारिक रूप से आगे बढ़ाने के अवसर के रूप में देखते हुए उन्होंने अपने वरिष्ठ अफसरों को इसके बारे में बताया. ऊपर से आदेश मिलने के बाद उसने अपने चार सहयोगियों के साथ मिलकर संदिग्ध के गांव में अपने मुखबिरों को फिर से सक्रिय कर दिया. उन्होंने बताया कि मैंने अपने मुखबिरों को कभी भी 'नॉन-ऑपरेशनल' होने नहीं दिया, क्योंकि मैं लगातार संपर्क में रहा और हर संभव तरीके से उनका समर्थन किया. उन्होंने भी मुझे निराश नहीं किया. 10 मई को उनमें से एक ने मुझे गांव में संदिग्ध व्यक्ति की गतिविधि के बारे में बताया. हमने संदिग्ध के परिवार के सदस्यों, विशेष रूप से उसके भाई के सेल फोन पर निगरानी रखी. इसी दौरान 27 मई को उसकी अगली यात्रा के बारे में जानकारी मिली. इसके बाद हम उसी दिन गांव के लिए रवाना हुए. उस रात आरोपी हरिओम अपने घर की छत पर सो रहा था. पंद्रह साल बाद जब उसने पहली बार उसकी तलाश शुरू की, तोमर और उसके आदमियों ने उसे उस समय पकड़ने में कामयाबी हासिल की, जब उसकी गिरफ्तारी की बहुत कम उम्मीद थी. उन्होंने बताया कि हरिओम को गिरफ्तार करने के साथ आखिरकार मामला सुलझ गया, लेकिन सबसे मुश्किल काम पीड़ित परिवार को यह बताना था कि चौधरी की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी.
जांच में उगले अपहरण और हत्या के राज
जब छापेमारी टीम ने चौधरी और उनकी एसयूवी के बारे में जांच के दौरान हरिओम से पूछा तो उसने बताया कि उस दिन क्या हुआ था. इसके जवाब में आरोपी हरिओम ने कहा कि उन्होंने चौधरी को मार डाला और कानपुर में एक सड़क पर अपनी एसयूवी को छोड़ दिया था. इसके साथ ही हरिओम ने पुलिस को बताया कि उसने कानपुर में अपने ससुराल जाने और घरेलू झगड़े के बाद वहां गई पत्नी को वापस लाने के बहाने चौधरी की टैक्सी किराए पर ली थी. उसने कहा कि वह चौधरी की कार चोरी करना चाहता था. इसी के इरादे से हरिओम और उसके दोस्त राकेश ने अलीगढ़ में शराब की एक बोतल खरीदी और चौधरी को शराब पीने के लिए उस वक्त तक उकसाता रहा, जब तक कि वह नशे में धुत नहीं हो गया. अपने गाँव से कुछ किलोमीटर पहले, स्थानीय नहर के पास, ओम ने चौधरी को यह कहते हुए कार रोकने के लिए कहा कि उसे पेशाब करने की ज़रूरत है. जैसे ही वाहन रुका, राकेश ने पीछे की सीट से चौधरी के गले में कपड़ा डाल दिया, जबकि ओम ने उसके सिर पर ईंट से वार किया, जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गई. फिर उन्होंने चौधरी के शव को नहर में फेंक दिया, एसयूवी से खून धोया और गांव की ओर चल पड़े.
विभाग ने एएसआई तोमर के काम को सराहा
तोमर के प्रयासों को पुलिस उपायुक्त (अपराध) अमित गोयल सहित कई वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने स्वीकार किया है, जिन्होंने हरिओम को गिरफ्तार करने वाली अपराध शाखा की टीम का नेतृत्व किया था. डीसीपी गोयल ने इस मामला सुलझाने के बाद 29 मई को कहा कि एएसआई तोमर ने मामले में पिछले एक साल से अहम भूमिका निभाई है.
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