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(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)
नई दिल्ली, 9 दिसंबर (आईएएनएस)। इन दिनों कई अफ्रीकी देशों में अजीब से रिवायत चली है और वो तख्तापलट की है। 10 दिसंबर का दिन भी एक ऐसे तानाशाह की याद दिलाता है जिसने क्रूरता की सभी हदें पार कर बरसों राज किया। इसी दिन 2006 को चिली के पूर्व तानाशाह जनरल अगस्तो पिनोशे की मौत हुई।
पिनोशे की मौत के साथ ही लैटिन अमेरिका की राजनीति में एक बड़ा अध्याय समाप्त हो गया। 91 वर्ष की आयु में उनका निधन सैन्टियागो के एक सैन्य अस्पताल में हुआ, जहां वे दिल की तकलीफ और उम्र संबंधी परेशानियों के चलते कई दिनों से भर्ती थे। उनकी मृत्यु ने चिली ही नहीं, पूरे क्षेत्र में दशकों से जारी बहस को फिर से जीवित कर दिया कि पिनोशे को इतिहास किस रूप में याद करे?
एक सख्त सैन्य शासक के रूप में जिसने देश को आर्थिक स्थिरता दी, या उस तानाशाह के रूप में जिसके शासनकाल में हजारों लोग गायब हुए, मारे गए या यातना झेली।
1973 में हुए सैन्य तख्तापलट के बाद पिनोशे ने लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई साल्वादोर आयेंदे की समाजवादी सरकार को हटाकर सत्ता संभाली और 1990 तक आइरन फीस्ट से चिली पर शासन किया। उनके शासनकाल में मानवाधिकार उल्लंघनों के हजारों दर्ज मामले सामने आए—जिनमें से कई बाद में आधिकारिक आयोगों द्वारा पुष्टि भी किए गए। हालांकि समर्थक उन्हें एक ऐसे नेता के रूप में पेश करते रहे जिसने चिली की अर्थव्यवस्था को मुक्त-बाजार सुधारों की ओर मोड़ा, वहीं आलोचक कहते रहे कि आर्थिक विकास की कहानी दमन के साये में लिखी गई।
उनकी मृत्यु ने न्याय की बहस को और जटिल बना दिया, क्योंकि पिनोशे पर जीवन के अंतिम वर्षों में कई मामलों में मुकदमे चल रहे थे—मानवाधिकार हनन, भ्रष्टाचार और अवैध धन जमा करने से जुड़े मामले। लेकिन पूर्ण न्याय का मार्ग उनके मरने से पहले कभी पूरा नहीं हो सका।
पिनोशे के जीवन और शासन की वास्तविकता को गहराई से समझने के लिए ब्रिटिश लेखक ह्यूग ओशॉघ्नेसी की किताब “पिनोशे: द पॉलिटिक्स ऑफ टॉर्चर” एक महत्वपूर्ण स्रोत मानी जाती है। यह पुस्तक न सिर्फ उनके शासन के राजनीतिक निर्णयों को उजागर करती है, बल्कि उन व्यवस्थित अत्याचारों को भी सामने लाती है जिन पर वर्षों तक पर्दा डालने की कोशिश की गई।
10 दिसंबर 2006 का दिन दुनिया के लिए सिर्फ एक सैन्य शासक की मृत्यु नहीं था, बल्कि यह याद दिलाने वाला क्षण भी था कि अत्याचार और सत्ता का दुरुपयोग चाहे कितने ही वर्षों तक क्यों न चले, उसका हिसाब इतिहास अवश्य मांगता है।
--आईएएनएस
केआर/
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