भूतों के कब्जे में है ये कोयले की खदान, रात में आती हैं डरावनी आवाजें.. रहस्य जान कांप जाएगी रूह
रोजगार की कमी और जंगली जानवरों के साथ भूतों के खौफ से धीरे-धीरे पूरा गांव खाली हो चला है.
कोरिया:
छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले में आने वाले चिरमिरी निगम क्षेत्र के ग्राम साजापहाड़ की कोल माइंस भूतों के बसेरे के नाम से जाना जाता है. अक्सर यहां के मांइस को लेकर कई किस्से चर्चा में रहे हैं. आज भी लोग इस माइंस के सामने से गुजरते वक्त सहम जाते हैं. लोगों का मानना है कि दशकों पहले यहां खान दुर्घटना हुई थी. हादसे में मौजूदा शिफ्ट के सभी मजदूर यहां दब गए थे, जिन्हें बाहर नहीं निकाला गया था. जिनकी चीखें और काम करने की आवाजें आज भी यहां आती हैं. देर रात माइंस के आस-पास से अजीब आवाजें आती हैं. जो लोग बाइक से जाते हैं, उनकी बाइक खिंचने लगती है. यही सारी ऐसी वजहें हैं जिनसे लोगों में डर बैठा हुआ रहता है.
आज का दौर, विज्ञान का दौर है. विज्ञान तरक्की पर तरक्की किए जा रहा है लेकिन कई जगहें ऐसी भी हैं जहां के रहस्य का पता लगाना विज्ञान की पहुंच से काफी दूर है. रोजगार की कमी और जंगली जानवरों के साथ भूतों के खौफ से धीरे-धीरे पूरा गांव खाली हो चला है. हालांकि मांइस में अब पानी भर चुका है. इसके मुहाने को भी अब दीवार से बंद कर दिया गया है. गांव वालों के मुताबिक यहां काम करने वाले मजदूर उत्तर प्रदेश के गाजीपुर, बलिया, मऊ, गोरखपुर जिले के थे. ठेकेदार और मैनेजर के बीच किसी बात को लेकर झगड़ा हो गया था, जिसका खामियाजा यहां काम करने वालें मजदूरों को भुगतना पड़ा. खान हादसे को लेकर ऐसा आरोप है कि ठेकेदार और मैनेजर के बीच अनबन के कारण ब्लास्ट कर मजदूरों को दबा कर मार डाला गया.
668 लोगों की आबादी वाले इस गांव के ग्रामीणों ने बताया कि हादसे के बाद कुछ मजदूरों के शवों को निकाल लिया गया था लेकिन 30 से 35 मजदूर मांइस में ही रह गए थे. मांइस की छत बैठने के बाद ठेकेदार द्वारा मांइस का दरवाजा भी बंद कर दिया गया. अब ग्रामीणों का कहना है कि उन्हें वहां हर पल ऐसा अनुभव होता है कि आज भी खदानों में मजदूर काम कर रहें है, लेकिन गांव वाले किसी को भी यह बात बताने में डरते है.
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मिर्जापुर के रहने वाले बुजुर्ग ग्रामीण नन्कूराम ने बताया कि वह 1968 में यहां मालकट्टा का काम करते थे. एक गाड़ी भरने पर उन्हें 9 रुपये मिलते थे. मैनेजर सैगल साहब और शहडोल के धोड़ी ठेकेदार कोयला निकलवाने का काम करते थे. ग्रामीण मनोज यादव ने बताया कि रात के समय मजदूरों द्वारा काम करने की आवाजें सुनाई देती हैं. शाम ढलते ही गाय-भैंसो का सहारा लेकर आ जाते हैं लेकिन उसके बाद कोई भी इस इलाके में नहीं जाता.
साजापहाड़ कोल माइंस से जुड़ी कुछ खास बातें-
- 1945 में शुरु हुआ था साजापहाड़ में कोयला निकालने का काम.
- 1960 के पहले यहां हादसा हुआ.
- राष्ट्रीयकरण होने के बाद 1973 में साजापहाड़ की सभी मांइस को बंद कर दिया गया था.
- ठेकेदार और मैनेजर के बीच विवाद हुआ था, ऐसा आरोप है कि जिसके बाद ब्लास्ट कर खदान के बाहर स्टॉपर लगा दिया गया. दबे मजदूरों को वहां से नहीं निकाला गया. स्टॉपर से खदान के मुहांने को बंद कर दिया गया था.
- 16 खाने थीं, सभी बंद हो गईं.
- कई मुहाड़ों में पानी भर चुका है.
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