छत्तीसगढ़ में सत्तारुढ़ कांग्रेस में बदलाव के आसार, बीजेपी भी तलाश रही नया चेहरा
सत्तारुढ़ छत्तीसगढ़ कांग्रेस में बदलाव के आसार नजर आ रहे हैं. जून जुलाई में पीसीसी चीफ बदले जाने के साथ ही कार्यकारिणी में भी बड़े फेरबदल हाेने के संकेत है.
नई दिल्ली:
छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में सत्तारुढ़ कांग्रेस में बदलाव के आसार नजर आ रहे हैं. जून जुलाई में पीसीसी चीफ बदले जाने के साथ ही कार्यकारिणी में भी बड़े फेरबदल हाेने के संकेत है. पार्टी सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल (Bhupesh Baghel) सरकार चलाने के लिए संगठन की जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहते हैं. बताया गया है कि संगठन में फेरबदल चुनाव परिणाम के आधार पर तय किए जाएंगे. क्योंकि 68 सीटें जीतने के बाद लोकसभा की 11 सीटों में प्रदर्शन के आधार पर ही नई जिम्मेदारी तय की जाएगी. वहीं यह भी कहा जा रहा है कि जिसके प्रभार वाले क्षेत्र में लीड कम हुआ या हार का सामना करना पड़ा, उनसे जवाब-तलब भी किया जा सकता है. वहीं भारतीय जनता पार्टी (BJP) भी अपना नया प्रदेश अध्यक्ष तलाश रही है.
पीसीसी में बदलाव के संकेत विधानसभा चुनाव के बाद से ही मिलने लगे थे, लेकिन 4 महीने बाद ही लोकसभा चुनाव के लिए नए अध्यक्ष को जिम्मेदारी देने में एआईसीसी तैयार नहीं हुआ. इसलिए सीएम को भी प्रदेश संगठन की जिम्मेदारी संभालने के लिए कहा गया था. चूंकि सरकार को पूरे चार साल बचे हैं और ऐसे में सीएम अपना पूरा समय राज्य के विकास की प्लानिंग और उसके क्रियान्वयन पर ही देना चाहते हैं. इसलिए वे पीसीसी की कमान किसी दूसरे नेता को सौंपने के लिए आसानी से तैयार हो जाएंगे. लोकसभा चुनाव (Loksabha Election) के बाद साल के अंत में राज्य में निकाय चुनाव होने वाले हैं. इसके लिए नए पीसीसी चीफ को काफी समय मिल जाएगा.
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इसे देखते हुए नए पीसीसी चीफ को नई टीम के साथ इन चुनावों में जीत हासिल करने की बड़ी जिम्मेदारी भी होगी. चुनाव को देखते हुए बहुत सारे पद बांट दिए गए थे. कई पदों पर काबिज पदाधिकारी पार्टी के लिए काम ही नहीं कर रहे हैं, ऐसे लोगों को बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है. इसके साथ ही कुछ नए और कर्मठ कार्यकर्ताओं को नई जिम्मेदारी दी जा सकती है. छत्तीसगढ़ कांग्रेस (Congress) का नया चीफ सीएम बघेल की पसंद का ही होगा. क्योंकि जिस तरह पिछले पांच साल से बघेल ने संगठन को बैकफुट से फ्रंटफुट पर लाए और राज्य में दो तिहाई बहुमत के साथ सरकार बनाई, इसे देखते हुए बघेल पीसीसी चीफ की नियुक्ति अपने मुताबिक ही करेंगे. ऐसा माना जा रहा है कि चूंकि ओबीसी वर्ग से सीएम खुद आते हैं इसलिए संगठन की कमान किसी आदिवासी नेता को सौंपी जा सकती है. इसके लिए बस्तर और सरगुजा के दो बड़े आदिवासी नेताओं के नाम सबसे उपर हैं. लेकिन बघेल की पसंद कौन है यह तो समय ही बताएगा. हालांकि कांग्रेस कभी कुछ भी साफ नहीं कह रही है.
लोकसभा चुनाव निपटते ही प्रदेश बीजेपी को नया प्रदेशाध्यक्ष मिलने के संकेत हैं. राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से मिले संकेतों के आधार पर प्रभारी अनिल जैन ने विक्रम उसेंडी की जगह नए अध्यक्ष की तलाश शुरु कर दी है. इसके पीछे लोकसभा के नतीजों के साथ निकाय चुनावों से पहले जातिय समीकरण को साधने की कवायद भी माना जा रहा है. विस चुनाव में हार के बाद बीजेपी में मचे घमासान के बाद नेतृत्व ने लोकसभा चुनाव का आचार संहिता लगने के बाद धरमलाल कौशिक को बदलकर कांकेर के सांसद रहे विक्रम उसेंडी को अध्यक्ष बनाया था. कौशिक को रमन-सौदान सिंह के करीबी माने जाते हैं. पर इतनी बड़ी हार के बाद उनको बदलकर नेतृत्व ने अपनी नाराजगी के संकेत दिए थे.
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लोकसभा चुनाव में जातिगत समीकरण का लाभ लेने के लिए विक्रम उसेंडी अध्यक्ष बनाया गया था. उसेंडी अध्यक्ष बनाने के पीछे बीजेपी की नजर प्रदेश के 45 लाख गोंड़ आदिवासियों के वोट बैंक पर भी थी. इसके साथ ही सरगुजा की बजाए बस्तर को तवज्जो देकर भी अमित शाह (Amit Shah) ने नया संदेश दिया था. शाह को भरोसा था कि उसेंडी की ताजपोशी से चुनाव में फायदा होगा. आदिवासी सीटों पर उसकी जीत की संभावनाएं बढ़ जाएंगी. सीधे सरल स्वभाव के उसेंडी कांग्रेस के मुकाबले आक्रामक रिजल्ट में सफल होते नहीं दिख रहे, इसी इनपुट के बाद नेतृत्व ने नई तलाश का जिम्मा डा. जैन को सौंपा है. लोस प्रचार के दौरान वे पार्टी के अलग अलग खेमे के नेताओं से इस बारे में चर्चा कर चुके हैं.
सूत्रों का दावा है कि केंद्र में मोदी सरकार (Modi Govt) के गठन के बाद शाह प्रदेश में बड़ा बदलाव करने की तैयारी में है. प्रदेश इकाई को पुराने नेताओं की छाया से निकालने की भी बातें हो रही है. कहा जा रहा है कि इस बदलाव से पार्टी को नुकसान कम फायदा ज्यादा हो सकता है. इसे देखते हुए निकाय चुनावों से पहले नए अध्यक्ष के साथ पूरी कार्यकारिणी का गठन कर नया लुक दे दिया जाएगा. गौरतलब है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के सरकार पर ज्यादा ध्यान देना होगा. जिसके चलते कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बदलेगी, लेकिन भारतीय जनता पार्टी को आने वाले साढ़े 4 साल बेहद आक्रामक रुख में रहना होगा. जिसके लिए उसी आक्रामक तेवर के प्रदेश अध्यक्ष की जरूरत बीजेपी के लिए महसूस की जा रही है.
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