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(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)
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हल्द्वानी, 25 मई (आईएएनएस)। चीड़ की छाल को लोग आमतौर पर बेकार समझते हैं, लेकिन उत्तराखंड की हल्द्वानी के रहने वाले जीवन चंद्र जोशी अपनी कास्ट कला से लकड़ी में जान डालने का काम कर रहे हैं। बिना किसी आधुनिक औजार के पूरी तरह अपने हाथों से वह छाल पर ऐसी जीवंत आकृतियां उकेरते हैं जिन्हें देखकर लोग दंग रह जाते हैं। बद्रीनाथ, केदारनाथ जैसे तीर्थस्थलों की झलक, पारंपरिक ढोल-नगाड़े, वाद्य यंत्र, शंख, शिवलिंग, भारत का नक्शा जैसी अनेक कलाकृतियां वह इस छाल से बना चुके हैं।
पोलियो से ग्रसित जीवन जोशी की इस कला का रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात कार्यक्रम में जिक्र कर उनकी तारीफ की। खुद पीएम मोदी से सार्वजनिक रूप से अपनी कला की तारीफ सुनकर वह गौरवान्वित हैं।
उनकी इस उपलब्धि पर पूर्व केंद्रीय मंत्री और नैनीताल-उधमसिंह नगर से सांसद अजय भट्ट ने भी उनके सेंटर पर पहुंचकर उन्हें बधाई दी है। भाजपा सांसद ने कहा कि जीवन चंद्र जोशी की जो भी समस्या है, उसे सरकार द्वारा दूर करने का प्रयास किया जाएगा।
कटघरिया निवासी 65 वर्षीय जीवन चंद्र जोशी ने अपनी शारीरिक असमर्थता को कभी अपनी कला पर हावी नहीं होने दिया। आज वह एक ऐसी कला में माहिर हैं, जिसे न सिर्फ देश बल्कि विदेशों में भी सराहा जा रहा है। जोशी भारत के पहले व्यक्ति हैं, जिन्हें चीड़ के बगेट यानी चीड़ के पेड़ की सूखी छाल पर काम करने के लिए भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा सीनियर फेलोशिप से नवाजा जा चुका है। यह उपलब्धि न केवल उनकी कला को मान्यता देती है, बल्कि एक मिसाल भी कायम करती है कि सच्ची मेहनत और लगन का कोई विकल्प नहीं होता।
जोशी पोलियो से पीड़ित हैं। बचपन से ही चलने-फिरने में दिक्कत रही है, लेकिन अपने हौसले की ऊंची उड़ान के बदौलत आत्मनिर्भर बनने के साथ-साथ दूसरों के लिए प्रेरणा बन रहे हैं। उन्होंने लकड़ी और छाल से जुड़ी कला अपने पिता से सीखी। घर से बाहर न जा पाने की मजबूरी ने उन्हें घर के भीतर ही एक अलग दुनिया की खोज करने पर मजबूर किया। इस सफर ने उन्हें एक मास्टर क्राफ्ट्समैन बना दिया।
जोशी बताते हैं कि उन्हें इस कला की साधना करते हुए अब 25 से 30 साल हो चुके हैं। उन्होंने न केवल खुद इस कला को अपनाया, बल्कि अब कुछ स्थानीय बच्चों को भी इसका प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया है। उन्होंने इस बात पर दुख जाहिर किया है कि इस परंपरागत और रोजगारोन्मुखी कला को सीखने के लिए युवा अब उतने इच्छुक नहीं हैं।
वह मानते हैं कि अगर सरकार इस कला को बढ़ावा दे, तो पहाड़ों से हो रहा पलायन रुकेगा और स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा। उनका कहना है कि स्वरोजगार की राह इसी तरह की लोक कलाओं से निकलती है, जरूरत है इन्हें संरक्षित और प्रचारित करने की।
वहीं, स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता नरेंद्र शर्मा ने कहा, जीवन चंद्र जोशी जैसे कलाकार हमारी धरोहर हैं। सरकार को चाहिए कि ऐसे लोगों को मंच दे, जिससे उनकी कला नई पीढ़ी तक पहुंचे, उनकी कहानी सिर्फ प्रेरणा नहीं, परिवर्तन की कहानी है।
पीएम मोदी ने मन की बात कार्यक्रम में कहा, बचपन में पोलियो ने उनके पैरों की ताकत छीन ली थी, लेकिन पोलियो, उनके हौसलों को नहीं छीन पाया। उनके चलने की रफ्तार भले कुछ धीमी हो गई, लेकिन उनका मन कल्पना की हर उड़ान उड़ता रहा। इसी उड़ान में, जीवन जी ने एक अनोखी कला को जन्म दिया - नाम रखा ‘बगेट’। इसमें वह चीड़ के पेड़ों से गिरने वाली सूखी छाल से सुंदर कलाकृतियां बनाते हैं। वह छाल, जिसे लोग आमतौर पर बेकार समझते हैं - जीवन जी के हाथों में आते ही धरोहर बन जाती है। उनकी हर रचना में उत्तराखंड की मिट्टी की खुशबू होती है। कभी पहाड़ों के लोक वाद्ययंत्र, तो कभी लगता है जैसे पहाड़ों की आत्मा उस लकड़ी में समा गई हो।
--आईएएनएस
एएसएच/एकेजे
डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ न्यूज नेशन टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.