नई दिल्ली, 16 जुलाई (आईएएनएस)। चांगेरी को आमतौर पर खट्टी घास भी कहते हैं। यह एक छोटा-सा पौधा है जो भारत में आसानी से पाया जाता है। इसका उपयोग विभिन्न रोगों के इलाज के लिए किया जाता है।
चांगेरी का वैज्ञानिक नाम ऑक्सालिस कॉर्निकुलाटाहै। यह एक बारहमासी पौधा है, जिसकी पत्तियां स्वाद में खट्टी होती हैं। यह आमतौर पर बगीचों, मैदानों और सड़क के किनारों में पाया जाता है। आयुर्वेद में, चांगेरी का उपयोग पाचन समस्याओं, दस्त, और बवासीर जैसी बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता है। इसके पत्तों का उपयोग चटनी, सूप और अन्य व्यंजनों में भी किया जाता है।
चरक और सुश्रुत संहिता में चांगेरी का वर्णन मिलता है। चरक संहिता में इसे शाक वर्ग और अम्लस्कन्ध, तथा सुश्रुत संहिता में इसे शाक वर्ग में उल्लेखित किया गया है। इसका मुख्य उपयोग दस्त (अतिसार) पाचन संबंधी समस्याओं के उपचार में किया जाता है। चांगेरी के पत्तों का काढ़ा (20-40 मिली) भुनी हुई हींग के साथ मिलाकर पीने से पेट दर्द और पाचन संबंधी समस्याओं में लाभ मिलता है। यह महिलाओं में पाचन तंत्र को मजबूत करने में सहायक है।
बताया जाता है इसका उपयोग महिलाओं में होने वाली ल्यूकोरिया (व्हाइट डिस्चार्ज) की समस्या में भी किया जाता है। इसके पत्तों का रस मिश्री के साथ सेवन करने से ल्यूकोरिया के कारण होने वाली दर्द और हड्डियों की कमजोरी में राहत मिलती है।
चांगेरी त्वचा के लिए फायदेमंद हो सकती है। इसमें मौजूद एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटीफंगल गुण मुंहासे, काले धब्बे और त्वचा की जलन को कम करने में मदद कर सकते हैं। वहीं, चांगेरी के फूलों को पीसकर चावल के आटे के साथ मिलाकर चेहरे पर लगाने से त्वचा का रंग निखरता है और दाग-धब्बों से छुटकारा मिलता है।
चांगेरी विटामिन-सी का एक अच्छा स्रोत है, जो प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने में मदद करता है और स्कर्वी जैसी बीमारियों को रोकता है।
चांगेरी के पत्तों का लेप जोड़ों के दर्द, गठिया और सूजन को कम करने में बहुत फायदेमंद है। इसके पीछे मुख्य कारण इसके सूजन-रोधी गुण हैं। ये गुण सूजन को कम करने और दर्द से राहत दिलाने में मदद करते हैं। हालांकि इसके प्रयोग से पहले चिकित्सकों से एक बार सलाह जरूर लें।
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