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जीएसटी के 1 साल बाद भी सरल, समान कर व्यवस्था दूर की कौड़ी

बताया जा रहा है कि भारत में जटिल कर प्रणाली समाप्त हो चुकी है और दर्जन भर से ज्यादा अलग-अलग तरह के करों और कई उपकरों को मिलाकर एकल कर प्रणाली बनाई गई है।

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Deepak Kumar
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जीएसटी के 1 साल बाद भी सरल, समान कर व्यवस्था दूर की कौड़ी

जीएसटी का एक साल

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वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को स्वतंत्र भारत का सबसे बड़ा सुधार कार्यक्रम मानते हुए बताया जा रहा है कि इससे देश की जटिल प्रत्यक्ष कर प्रणाली को सरल बनाते हुए समान कर व्यवस्था कायम की गई है। 

जीएसटी को 30 जून को एक साल पूरा हो गया है। बताया जा रहा है कि भारत में जटिल कर प्रणाली समाप्त हो चुकी है और दर्जन भर से ज्यादा अलग-अलग तरह के करों और कई उपकरों को मिलाकर एकल कर प्रणाली बनाई गई है। मगर अब तक जीएसटी आदर्श कर व्यवस्था नहीं बन पाई है। 

जीएसटी की एक साल की यात्रा भी सुगम नहीं रही और पहले ही दिन से इसमें गड़बड़ी व समस्याएं बनी रहीं। हालांकि सरकार की सक्रियता के कारण कतिपय खामियों का समाधान किया गया, फिर भी रिटर्न दाखिल करने में सरलीकरण और करों को तर्कसंगत बनाना जैसे कुछ समस्याओं का समाधान अभी तक नहीं हो पाया है। 

नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार के अनुसार, 'जीएसटी ने अर्थव्यवस्था में अब अलग प्रतिमान स्थापित किया है, क्योंकि लोगों पर जीएसटी के तहत पंजीकरण करने और उनकी आर्थिक गतिविधियों को औपचारिक क्षेत्र में लाने के लिए ज्यादा दबाव होगा।'

जीएसटी की एक साल की यात्रा का विश्लेषण करने के बजाय भविष्य की योजना को समझना ज्यादा महत्वपूर्ण होगा। 

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कई अर्थशास्त्रियों का तर्क है कि आदर्श जीएसटी व्यवस्था में सार्वभौमिक कवरेज और और एकल कर प्रणाली होनी चाहिए, जबकि अधिकांश लोग इस बात से भी सहमत होंगे कि भारत जैसे बड़ी आर्थिक असमानता वाले देश के लिए यह व्यावहारिक नहीं है।

सरकार भी अक्सर कहती रही है कि बीएमडब्ल्यू कार और हवाई चप्पल पर एक समान कर की दर नहीं होनी चाहिए।

जीएसटी में कर की छह दरें क्रमश: 5, 12, 18 और 28 फीसदी रखी गई हैं। इसके अलावा कुछ मदों पर कर की दर शून्य है तो सोने पर तीन फीसदी कर लगाया गया है। इस तरह भारत की यह कर प्रणाली दुनिया में सबसे जटिल है। यह बात विश्व बैंक ने भारत पर अपनी छमाही रिपोर्ट इंडिया डेपवलमेंट अपडेट में स्वीकार की है। 

रिपोर्ट के अनुसार, बदतर स्थिति यह है कि पेट्रोलियम उत्पादन, बिजली और रियल स्टेट को जीएसटी के दायरे से अलग रखा गया है। 

विश्व बैंक ने कहा, 'भारत की टैक्स की पट्टियों की संख्या ही सबसे बड़ी नहीं है, बल्कि 28 फीसदी कर एशिया में जीएसटी की सबसे ऊंची और दुनिया में चिली के बाद दूसरी सबसे ऊंची दर है।' 

नई अप्रत्यक्ष कर प्रणाली के लागू होने के तुरंत बाद नीति आयोग के सदस्य और प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाह परिषद के अध्यक्ष बिबेक देबराय ने बातचीत में कहा, 'भारत आदर्श जीएसटी व्यवस्था से काफी दूर है और यह निकट भविष्य में आदर्श नहीं बन पाएगा।'

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सभी मदों पर जीएसटी की अधिकतम तीन दरों के पक्षधर देबराय ने कहा कि सात दरों से शुरू करके भारत को ऐसी स्थिति में ला दिया है कि आदर्श जीएसटी नहीं बन सकता है। 

पिछले साल एक जुलाई को जीएसटी लागू होने के पहले दिन से ही जीएसटी नेटवर्क पोर्टल में तकनीकी खामियां रहने से करदाताओं को इसपर पंजीकरण करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, जिसके कारण सरकार को रिटर्न दाखिल करने की समय-सीमा कई बार बढ़ानी पड़ी। 

इन खामियों के कारण निर्यात रिफंड (वापसी) काफी बढ़ गया और निर्यातकों के पास नकदी का संकट उत्पन्न हो गया क्योंकि उनकी पूंजी फंस गई। 

हालांकि सरकार की ओर से इसके लिए चलाए गए 15 दिनों के दो अभियानों से कारोबारियों को फंसी हुई पूंजी का एक बड़ा हिस्सा मिलना मुमकिन हुआ, मगर अभी तक कुछ बचा हुआ है। 

जीएसटी नेटवर्क की समस्याओं के समाधान और इसकी कार्यप्रणाली को सुगम बनाने के लिए बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी की अध्यक्षता में पांच मंत्रियों की एक समिति का गठन किया गया है। 

नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने बातचीत में कहा, 'जीएसटी बड़ा और जटिल काम है, इसलिए पूरी तरह सोच-समझकर इसकी कवायद करने पर इसे बेहतर ढंग से लागू किया जा सकता था।'

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जीएसटी लागू करने को लेकर जो आशंका थी, वह तब सच साबित हुई जब जीएसटी संग्रह सितंबर के 92,000 (बाद में संशोधित आंकड़ा 95,132) करोड़ रुपये से घटकर अक्टूबर में 83,346 (बाद में संशोधित आंकड़ा 85,931) करोड़ रुपये और नवंबर में 80,808 (बाद में संशोधित आंकड़ा 83,716) रुपये रह गया।

वस्तुओं के अंतर्राज्यीय परिवहन के लिए एक फरवरी से ई-वे बिल लागू करने के लिए आनन-फानन में दिसंबर में जीएसटी परिषद की बैठक बुलाई गई। 

ई-वेल बिल पोर्टल पहले ही दिन खराब हो गया और सरकार को आखिरकार इसे लागू करने की तिथि बढ़ाकर एक अप्रैल करनी पड़ी। 

नीति आयोग के उपाध्यक्ष ने कहा कि भारत जैसे देश, जिसे आईटी क्षेत्र पर गव है, उसमें आईटी सिस्टम के काम नहीं करने का कोई बहाना नहीं हो सकता है। 

हालांकि एक अप्रैल को जब ई-वे बिल शुरू किया गया तब तक तकनीकी खामियों को दूर कर अवसंरचना को सुचारु ढंग से चलने के लिए पूरी तरह दुरुस्त कर लिया गया।

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इस बीच मार्च में राजस्व प्राप्ति एक लाख करोड़ रुपये के स्तर को पार कर गई, हालांकि इसमें वित्त वर्ष की समाप्ति का भी असर था। इसके बाद अप्रैल में 94,000 करोड़ रुपये अधिक जीएसटी संग्रह हुआ। 

कुमार ने कहा कि जीएसटी में अब स्थिरता आ गई है और इससे आर्थिक गतिविधियों को काफी प्रोत्साहन मिलेगा। 

वित्त सचिव हसमुख अधिया ने इसी सप्ताह कहा कि जीएसटी अब सुचारु चरण में प्रवेश कर गया है और कर का अनुपालन अच्छी तरह हो रहा है। उन्होंने कहा कि अब कर वापसी (रिटर्न) फार्म को सरल बनाना सरकार की प्राथमिकता होगी।

डेलॉयट इंडिया के पार्टनर प्रशांत देशपांडे ने कहा कि जीएसटी ने बहु कर प्रणाली और दोहरे कराधान की समस्याओं को दूर कर दिया है, मगर कुछ मसले अभी बने हुए हैं, जिनका समाधान करने की जरूरत है। 

देशपांडे ने बातचीत में कहा, 'जीएसटी का दायरा बढ़ाकर इसमें पेट्रोलियम उत्पादों, बिजली, भूमि, भवन को शामिल किया जा सकता है, जो पूराने कानून के अनुसार अभी इसके दायरे से बाहर हैं। सूचीकरण की समस्याओं को दूर करने के लिए कर की श्रेणियों की संख्या कम करने की जरूरत है।'

इसके अलावा उन्होंने जीएसटी अनुपालन व्यवस्था को सरल और मजबूत बनाने की जरूतर बताई।

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Source : News Nation Bureau

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