सरकारी कंपनियों के शेयरधारकों को 6 साल में हुआ सबसे ज्यादा नुकसान, जानिए वजह
प्रबंधकों का कहना है कि सरकार नागरिकों को नियमों के मुताबिक कर चुकाने और पूरी तरह अनुपालन में रहने पर जोर देती है लेकिन खुद सरकार जिन कंपनियों की मालिक है उन कंपनियों की कार्यक्षमता बढ़ाने के मामले में उसके पास कहने को कुछ नहीं है.
मुंबई:
सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के शेयरधारकों को पिछले छह साल के दौरान सबसे ज्यादा संपत्ति का नुकसान हुआ. एकाधिकार अथवा बाजार के बड़े हिस्से पर काबिज रहने के बावजूद इन कंपनियों ने संपत्ति का नाश ही किया है. म्यूचुअल फंड उद्योग के कुछ जाने माने प्रबंधकों ने अपनी यह राय व्यक्त की है. इन प्रबंधकों का कहना है कि सरकार नागरिकों को नियमों के मुताबिक कर चुकाने और पूरी तरह अनुपालन में रहने पर जोर देती है लेकिन खुद सरकार जिन कंपनियों की मालिक है उन कंपनियों की कार्यक्षमता बढ़ाने के मामले में उसके पास कहने को कुछ नहीं है. इन संपत्ति प्रबंधकों का कहना है कि यह समय है सरकार को दर्पण दिखाने का.
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उन्होंने कहा है कि पिछले दो दशक से विनिवेश कार्यक्रम जारी रहने के बावजूद सरकार विभिन्न सार्वजनिक उपक्रमों पर बड़े हिस्से के साथ काबिज है. बार बार यह कहा जाता है कि सरकार को उद्योगों धंधे चलाने से बाहर होना चाहिये, उसे केवल बेहतर परिवेश, सुविधायें उपलब्ध कराने वाला ही होना चाहिये, इसके बावजूद सरकार तमाम सार्वजनिक उपक्रमों में बहुमत हिस्सेदार है. फ्रेंकलिन टेम्पलटन के मुख्य निवेश अधिकारी (सीआईओ) आनंद राधाकृष्णन का कहना है, आप यदि पिछले छह साल के दौरान संपत्ति का विध्वंस करने वालों पर नजर डालंगे तो यह सरकार के स्वामित्व वाली कंपनियां रही हैं ... (सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम) रहे हैं. इनमें सरकारी बैंक, सार्वजनिक उपक्रम और सरकारी क्षेत्र की तेल कंपनियां शामिल रही हैं.
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सार्वजनिक उपक्रमों से जुड़ा सूचकांक मार्च 2009 के स्तर पर बरकरार: नवनीत मुनोट
उन्होंने कहा कि यह कहना अच्छा लगता है कि सुधार होना चाहिये, हमें इनमें से कुछ की तरफ भी आइना दिखाना चाहिए. छोटे कारोबार से जुड़ी लॉबी आईएमसी द्वारा आयोजित एक वेबिनार को संबोधित करते हुये राधाकृष्णन ने कहा कि सरकार को या ता इन उद्योगों की दक्षता को बेहतर करना चाहिये या फिर इन्हें व्यवसाय से बाहर हो जाना चाहिये. उन्होंने कहा कि कोनकोर और बीपीसीएल का रणनीतिक विनिवेश अभी तक आगे नहीं बढ़ पाया है. एसबीआई म्यूचुअल फंड के सीआईओ नवनीत मुनोट ने कहा कि सार्वजनिक उपक्रमों से जुड़ा सूचकांक मार्च 2009 से उसी स्तर पर बना हुआ है. वहीं दूसरी तरफ कई अन्य श्रेणियों में इस दौरान पांच गुणा तक रिटर्न हासिल किया गया है. उन्होंने कहा कि इस तरह का संपत्ति का नुकसान इनमें हुआ है. इनमें कई कंपनियों का तो अपने कार्यक्षेत्र में एकाधिकार है या फिर उस क्षेत्र में गिनी चुनी कंपनियां ही कारोबार कर रही है.
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कंपनियों के पास विपुल मात्रा में संपत्ति और नकदी का प्रवाह है। मेरा मानना है कि इस हिस्से को सही किया जाना चाहिये. कोटक म्युचअल फंड के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी नीलेश शाह ने महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड (एमटीएनएल) के मामले पर कहा. उन्होंने कहा कि एक समय शेयर बाजार में एमटीएनएल मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज से बड़ी हैसियत रखती थी. आज रिलायंस इंडस्ट्रीज का मूल्यांकन सार्वजनिक क्षेत्र की सभी सूचीबद्ध कंपनियों को जोड़ कर भी उनसे ज्यादा है. नीलेश शाह प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अंश-कालिक सदस्य भी हैं. राधाकृष्णन ने कहा कि यदि सरकार इन कंपनियों में सुधारों को आगे बढ़ाती है तो इन व्यवसायों में काफी मूल्य है. इससे शेयरधारकों को काफी मूल्य प्राप्त हो सकता है, खुद सरकार को भी इसका फायदा होगा. उन्होंने कहा कि सरकारी बैंकों को यदि छोड़ दिया जाये तो पिछले छह साल के दौरान सरकारी कंपनियों में सुधारों को लेकर ‘शून्य’ प्रयास हुये हैं, यदि कामजोर कार्य प्रदर्शन के लिहाज से आकलन किया जाता है तो मैं सरकारी कंपनियों को पहला स्थान पर रखूंगा.
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