कभी ताला नगरी के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले शहर अलीगढ़ के इस व्यवसाय पर भी समय की मार नजर आने लगी है। नोटबंदी ने हालात और भी मुश्किल बना दिए है।
मुगलकाल से ही ताले की निर्माण में अलीगढ़ की एक विशेष पहचान रही है। दिल्ली से 150 किलोमीटर से भी कम दूर अलीगढ़ में देश का 75 फीसदी ताला बनता है।
अब निष्क्रिय हो चुकी ऑल इंडिया मैनुफैक्चर्स एशोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष और मौजूदा विधायक जफर आलम के मुताबिक 90 फीसदी छोटे और कुटीर इकाई या तो बंद हो चुके हैं या फिर बंद होने के कगार पर हैं।
जफर आलम ने कहा, 'शहर में करीब एक लाख लोग ऐसे हैं जो नगदी पर चलने वाले इस काम में लगे हैं। यह सोच कर ही कोई कांप जाएगा कि कल जब यही लोग बेरोजगार होंगे तो क्या स्थिति होगी।'
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एक आंकड़े के मुताबिक हर साल ताले और तांबे के दूसरी चीजों के निर्यात से 210 करोड़ रुपये का व्यापार इस शहर में होता है। यही इस शहर की अर्थव्यवस्था का आधार भी है।
लेकिन हाल के वर्षों में अन्य एशियाई देशों जैसे चीन, ताइवान और कोरिया से आने वाले सस्ते तालों की वजह से अलीगढ़ के ताला व्यवसाय पर काफी असर पड़ा है। साथ ही धातुओं के दाम में बढ़ोतरी ने भी इस व्यवसाय को काफी प्रभावित किया है।
बाजार की बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण कई छोटे ताला निर्माताओं को अपने ही काम पर ताला लगाना पड़ा है।
अलीगढ़ के ताला निर्माता लंबे समय से शहर में स्पेशल इकोनॉमिक जोन (SEZ) की मांग करते रहे हैं। इस प्रोजेक्ट को केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय से हरी झंडी मिल चुकी है लेकिन काम अब भी पूरी तरह शुरू नहीं हो सका है।
वाणिज्य मंत्रालय यह आरोप लगाता रहा है कि यूपी सरकार जमीन अधिग्रहण और उसे मुहैया कराने में देरी कर रही है।
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अलीगढ़ मुगल काल से ही अपने तालों के लिए जाना जाता रहा है। पहले यह संगठित नहीं था फिर ब्रिटिश काल में अंग्रेजो ने इसे विस्तार देने का काम किया।
HIGHLIGHTS
- नोटबंदी से अलीगढ़ की ताला फैक्ट्रियां मुश्किल में
- 1 लाख से ज्यादा लोग जुड़े हैं ताले के कारोबार में
Source : News Nation Bureau