सेप्सिस (Sepsis) एक खतरनाक इंफेक्शन है. इसमें शरीर की इम्यूनिटी (Immunity) किसी संक्रमण के प्रति अत्याधिक प्रतिक्रिया करती है. इससे शरीर के अलग-अलग अंगों और टिश्यू (tissue) को नुकसान हो सकता है. सेप्सिस बैक्टीरिया या फंगल संक्रमण के कारण ये होता है. यह बीमार अंगों पर असर डाल सकती है. इसका असर किडनी पर भी होता है. इस बीमारी को नियंत्रित करना एक कठिन काम है. आयुर्वेद के तरीकों में फाइटोकॉन्स्टिट्यूएंट्स (Phytoconstituents) से अब इसको नियंत्रित किया जा सकता है. इसको लेकर पतंजलि शोध संस्थान ने एक रिसर्च की है. इस रिसर्च को बायोमेडिसिन और फार्माकोथेरेपी एकडेमिक जर्नल ने पब्लिश किया गया है.
रिसर्च में कहा गया है कि सेप्सिस के दौरान सूजन और ऑक्सीडेटिव (Oxidative) तनाव किडनी को नुकसान पहुंचा सकता है. इसकी वजह से ब्लड फ्लो (Blood Flow) में कमी किडनी की ऑक्सीजनेशन और पोषण पर असर डालती है. फाइटोकॉन्स्टीट्यूएंट्स (Phytoconstituents) जैसे कि पौधों से प्राप्त यौगिक, सेप्सिस से होने वाली किडनी की बीमारी को काबू में किया जा सकता है. फाइटोकॉन्स्टीट्यूएंट्स सूजन को कम करने में सहायता कर सकते हैं. इस रिसर्च में सेप्सिस की पैथोफिजियोलॉजी (Pathophysiology), बायोमार्कर (Biomarker) और फाइटोकॉन्स्टीट्यूएंट्स (Phytoconstituents) की भूमिका की विस्तृत रिसर्च की गई है.
आयुर्वेद से सेप्सिस को किया जा सकता है काबू
रिसर्च में जानकारी दी गई है कि कई प्रकार की आयुर्वेदिक औषधि और जड़ी बुटियों से सेप्सिस की बीमारी काबू में लाई जा सकती है. रिसर्च में अदरक और क्वेरसेटिन जैसी चीजों का जिक्र है. ये शक्तिशाली एंटी-इंफ्लेमेटरी (Anti-Inflammatory) और एंटीऑक्सीडेंट (Antioxidant) है. यह एंटीऑक्सीडेंट है जो सेप्सिस के इलाज में उपयोग में लाया जा सकता है.
रिसर्च के अनुसार, फाइटोकॉन्स्टीट्यूएंट्स जैसे कि कर्क्यूमिन (Curcumin), रेसवेराट्रोल (Resveratrol), बाइकेलिन (Bikelin), क्वेरसेटिन (Quercetin), और पॉलीडेटिन (Polydatin) सेप्सिस के कारण किडनी से संबंधित संक्रमण और बीमारियों को रोक सकते हैं. यह सेप्सिस से होने वाली एक्यूट (Acute) किडनी इंजरी से रोकथाम कर सकता है.
किडनी को बचाने के तरीके
रिसर्च में सेप्सिस से किडनी को बचाने के तरीके बताए गए हैं. इस बीमारी के दौरान नेफ्रोटॉक्सिक (Nephrotoxic) दवाओं का उपयोग सावधानी से किया जाना चाहिए. खासकर जब जरूरी हो तभी देनी चाहिए. रिसर्च के अनुसार, प्रोटोकॉलाइज्ड फ्लुइड रिससिटेशन (Protocolized Fluid Resuscitation) सेप्सिस के इलाज में अहम भूमिका अदा करता है. कुछ केस में वासोप्रेसर्स (Vasopressors) का उपयोग सेप्सिस के इलाज के लिए होता है. मगर कभी-कभी यह किडनी की इंजरी को बढ़ाता है. ऐसे में इसे सावधानी से इस्तेमाल करना चाहिए.